क्या ‘गंगा‘ का हाल 2019 लोकसभा चुनावों में चुनावी मुद्दा बन पाएगा?
Ryan [CC BY 2.0 (https://creativecommons.org/licenses/by/2.0)]
2014 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में अपने चुनावी अभियानों की शुरुआत करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा था कि मुझे मां गंगा ने बुलाया है। वे अपनी चुनावी सभाओं में गंगा को ‘मां गंगा’ और ‘गंगा मईया’ कहकर संबोधित करते हुए इसकी बुरी हालत के लिए उस समय की सत्ताधारी पार्टियों पर हमले करते थे और यह दावा करते थे कि अगर उनकी सरकार बनी तो गंगा की सेहत ठीक कर देंगे।
केंद्र में सरकार बनते हुए जब उन्होंने जल संसाधन मंत्रालय के नाम के साथ ‘गंगा पुनरुद्धार’ भी जोड़ दिया तो लोगों को लगा कि वे वाकई मां गंगा की सेहत सुधारने को लेकर संजीदा हैं। लेकिन बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पांच साल के कार्यकाल में गंगा की स्थिति में खास सुधार नहीं दिखता।
यह बात केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की हालिया रिपोर्ट से भी साबित होती है। इसमें यह बताया गया है कि माॅनसून खत्म होने के बाद के दिनों में जिन क्षेत्रों का उसने अध्ययन किया, उनमें सिर्फ एक क्षेत्र ऐसा था जहां का पानी पीने लायक था। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के 36 जगहों से जानकारी जुटाकर बोर्ड ने यह रिपोर्ट तैयार की है। इनमें से 25 स्थान उत्तर प्रदेश में हैं। इनमें से कोई एक भी जगह ऐसी नहीं है जहां गंगा का पानी पीने लायक हो।
गंगा की स्थिति सुधारने में केंद्र सरकार की नाकाम ही वजह है कि न तो इस बार अपनी चुनावी सभाओं में नरेंद्र मोदी गंगा को लेकर अपनी कोई उपलब्धि गिनाते हुए दिख रहे हैं और न ही भविष्य से संबंधित दावे वे कर रहे हैं। भाजपा के दूसरे नेता भी गंगा को लेकर कोई बड़ी बातें नहीं कर रहे हैं।
इसी स्थिति को कांग्रेस कम से कम उत्तर प्रदेश में एक अवसर के तौर पर देख रही है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में अपने चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत गंगा नदी से ही की। प्रयागराज से बनारस की यात्रा प्रियंका गांधी ने गंगा नदी पर नाव से की।
अपनी इस यात्रा के दौरान गंगा के प्रदूषण पर तो वे बहुत आक्रामक होकर नहीं बोलीं लेकिन माना जा रहा है कि गंगा के जरिए यात्रा करके उन्होंने भाजपा को यह संकेत दे दिया है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस गंगा के प्रदूषण को मुद्दा बना सकती है।
हालांकि, उनके सामने भी दिक्कत यही है कि अगर गंगा की स्थिति की बात होगी और इसके इतने अधिक प्रदूषण की बात होगी तो सवाल सिर्फ मोदी सरकार के कार्यकाल पर नहीं उठेंगे बल्कि पहले की कांग्रेस सरकारों के कामकाज पर भी सवाल उठेंगे। भाजपा यह कहेगी कि कांग्रेस ने दशकों में गंगा में इतना प्रदूषण फैलने देने का काम किया कि उसे पांच सालों में साफ करना आसान नहीं है।
ऐसे में लोगों के मन में यही सवाल चल रहा है कि क्या गंगा का हाल इस बार के चुनावों में कोई मुद्दा बन भी पाएगा? क्या लोग राजनीतिक दलों से गंगा की इस स्थिति पर सवाल पूछेंगे? क्या लोग गंगा की इस हालत के लिए राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी तय करेंगे? क्या लोग गंगा के मुद्दे पर वोट देंगे? आने वाले दिनों में इनमें से कुछ सवालों के जवाब मिल सकते हैं।