क्या नर्मदा परियोजना से संबंधित बड़े-बड़े दावे खोखले साबित हो रहे हैं?

 

नर्मदा परियोजना को लेकर गुजरात में बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं। पिछले छह दशकों से नर्मदा परियोजना गुजरात में एक बड़ा मुद्दा रहा है। इस परियोजना के समर्थक कहते हैं कि गुजरात की सिंचाई और पेयजल से संबंधित समस्याओं का रामबाण इलाज नर्मदा परियोजना है।

नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब भी वे नर्मदा परियोजना को अपनी एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश करते थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वे नर्मदा परियोजना की सफलता का जिक्र अक्सर करते हैं।

पिछले कुछ दशकों में गुजरात में नर्मदा के पानी को गुजरात में चुनावी मुद्दा भी बनाया गया है। प्रदेश का एक बड़े हिस्से में पानी की कमी बनी रहती है। इस वजह से लोगों को पानी दिलाने के वादे का चुनावी लाभ भी गुजरात के राजनीतिक दलों को मिलता है।

इस परियोजना के अब तक के क्रियान्वयन से संबंधित जो अध्ययन हुए हैं, उनमें यह माना गया है कि इस परियोजना ने पेयजल से संबंधित समस्याओं का काफी हद तक समाधान करने में सफलता हासिल की है। खास तौर पर उत्तरी गुजरात और सौराष्ट्र में रहने वाले लोगों की पेयजल आपूर्ति संबंधित जरूरतों को इस परियाजना ने पूरा किया है।

लेकिन सिंचाई संबंधित जरूरतों को पूरा करने से संबंधित जो दावे किए गए थे, उन्हें अब तक पूरा नहीं किया जा सका है। अभी भी बड़ी संख्या ऐसे गांवों की है जिन्हें अब भी नर्मदा के पानी का इंतजार है।

इस परियोजना के तहत लक्ष्य यह रखा गया था कि 17.92 लाख हेक्टेयर को सिंचाई की सुविधा मुहैया कराई जाएगी। लेकिन अभी तक सिर्फ 6.4 लाख हेक्टेयर जमीन को ही सिंचाई की सुविधा मिल रही है। इसका मतलब यह हुआ कि कुल लक्ष्य के मुकाबले सिर्फ एक तिहाई जमीन की ही सिंचाई इस परियोजना के जरिए हो रही है।

नर्मदा नहर परियोजना द्वारा सिंचाई संबंधित जरूरतों को नहीं पूरा किया जाने की एक प्रमुख वजह यह बताई जा रही है कि नर्मदा नदी में जल का प्रवाह कम हुआ है। खास तौर पर पिछले दो साल में कम बारिश होने की वजह से यह कमी और अधिक दिख रही है।

वहीं इसकी दूसरी वजह यह बताई जा रही है कि मध्य प्रदेश ने अपने नहर नेटवर्क को बेहतर किया है। इस वजह से पहले जो पानी गुजरात के इस्तेमाल के लिए बच रहा था, उसके एक हिस्से का इस्तेमाल पहले ही मध्य प्रदेश कर ले रहा है।

हाल के अध्ययनों में यह बात भी सामने आई है कि सरदार सरोवर बांध और नर्मदा नहर का काम तो करीब-करीब पूरा हो गया है लेकिन सिंचाई के लिए खेतों तक पानी के लिए जो जल नेटवर्क विकसित किया जाना था, उसका काफी काम अब भी बचा हुआ है। इस वजह से भी मुख्य नहर से पानी गांवों तक नहीं पहुंच पा रहा है।

नर्मदा नदी गुजरात की जीवनरेखा है। अनुमान है कि प्रदेश की 6.5 करोड़ आबादी में से 4.5 करोड़ लोग नर्मदा के पानी पर आश्रित हैं। ऐसे में अगर नर्मदा का प्रवाह बाधित होता है और यह सूखने की ओर बढ़ती है तो इससे गुजरात को काफी नुकसान उठाना पड़ेगा। न सिर्फ सिंचाई के पानी का संकट पैदा होगा बल्कि जिन इलाकों में पेयजल की स्थिति सुधरी है, उन इलाकों में फिर से पीने के पानी का संकट पैदा हो सकता है। ऐसे में प्रदेश की एक बड़ी आबादी के सामने कई तरह की मुश्किलें पैदा हो जाएंगी।

असल सवाल यही है कि नर्मदा नदी की सेहत सुधारने के साथ नर्मदा परियोजना की समस्याओं को दूर करने के लिए सरकार क्या करती है। क्योंकि अगर जरूरी कदम नहीं उठाए गए तो यह जानबूझकर मुश्किलों को दावत देने सरीखा होगा।