क्या पीएम को किसानों से कनेक्ट कर पाएगी पीएम-किसान?

 

वित्त वर्ष 2019-20 के अंतरिम बजट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम किसान) की घोषणा की। इस योजना के तहत किसानों को हर साल 6,000 रुपये की आर्थिक मदद देगी। ये पैसे 2,000 रुपये के तीन किस्तों में दिए जाएंगे। मोदी सरकार ने भले ही इस योजना की घोषणा 1 फरवरी, 2019 को की हो लेकिन वह इसे 1 दिसंबर, 2018 से ही लागू कर रही है। सरकार ने इसके लिए 20,000 करोड़ रुपये आवंटित भी कर दिए हैं। यही वजह है कि लोकसभा चुनावों के पहले ही किसानों के खाते में 2,000 रुपये की पहली किस्त पहुंचने लगी है।
मोदी सरकार के मंत्री, भारतीय जनता पार्टी के नेता और कई स्वतंत्र विश्लेषक भी यह मानते हैं कि अगर पीएम-किसान योजना ठीक से लागू हो गई तो लोकसभा चुनावों में यह ‘गेमचेंजर’ साबित हो सकती है. यह बात कहे जाने के पीछे ठोस वजहें हैं। रियायती दर पर रसोई गैस का कनेक्शन देने वाली उज्जवला योजना के बारे में माना जाता है कि इसने 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा को जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आम तौर पर यह माना जाता है कि जिस योजना से जमीनी स्तर पर लोगों को प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ होता है, वह योजना चुनावों में उसे लागू करने वाली पार्टी का फायदा कराती है। यही वजह है कि पीएम-किसान योजना के बारे में भी कहा जा रहा है कि यह नरेंद्र मोदी के दोबारा सत्ता वापसी में उपयोगी साबित हो सकती है।
लेकिन इस योजना का चुनावी लाभ भाजपा और उसके सहयोगी दलों के उम्मीदवारों के कितना मिलेगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि इसका क्रियान्वयन कितनी सफलता से होता है। वैसे यह योजना है तो केंद्र सरकार की लेकिन इसका क्रियान्वयन काफी हद तक राज्य सरकारों की कार्यकुशलता और इच्छाशक्ति पर भी निर्भर करता है। क्योंकि इस योजना का लाभ लोगों तक पहुंचाने में जमीन से संबंधित रिकाॅर्ड का सही होना बेहद जरूरी है। इसमें राज्य सरकार की प्रमुख भूमिका होती है। क्रियान्वयन में और भी कई स्तर पर राज्य सरकारों की अहम भूमिका रहती है। इसलिए अगर राज्य सरकारों ने क्रियान्वयन में अपेक्षित सहयोग नहीं किया तो यह योजना उतनी प्रभावी नहीं साबित हो पाएगी जितनी उम्मीद केंद्र सरकार लगाए बैठी है।
पीएम-किसान के क्रियान्वयन में बैंकों की अहम भूमिका है। इसी तरह की एक योजना ओडिशा में भी चलाई जा रही है। जब उस योजना के तहत आर्थिक सहयोग किसानों के खाते में पहुंचा तो बैंकों ने यह पैसा किसानों पर बकाया कर्ज का हवाला देकर काट लिया। अगर बैंकों ने यही रुख पीएम-किसान योजना के लाभार्थियों के मामले में भी अपनाया तो पहले से कर्ज के बोझ तले दबे किसानों को इस योजना से कोई लाभ नहीं होगा और अंततः सरकार के प्रति उनका गुस्सा बढ़ेगा। अगर बैंकों के स्तर पर इन समस्याओं का समाधान नहीं किया गया तो चुनाव में इसका नुकसान भाजपा को हो सकता है।
पीएम-किसान योजना ने भी बटाई पर खेती करने वाले किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं किया है। इस योजना में अब तक स्पष्ट तौर पर इस बात का उल्लेख नहीं है कि इसका लाभ बटाई पर खेती करने वाले किसानों को मिलेगा या नहीं। जबकि ऐसे किसानों की बड़ी संख्या है। जिस जमीन पर ये किसान बटाई पर खेती करते हैं, उन पर अगर उनके मालिकों को इस योजना का लाभ मिलता है और खेती करने वाले बटाई किसानों को नहीं मिलता है तो इससे इन किसानों में इस योजना को लेकर गुस्सा बढ़ सकता है। इससे इस योजना से भाजपा को हो सकता है कि अपेक्षित लाभ नहीं मिले और फायदा के बजाए नुकसान उठाना पड़ा।
इन तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि अगर पीएम-किसान योजना का ठीक से क्रियान्वयन नहीं हो पाया तो यह योजना भी पहले से चल रही दूसरी योजनाओं की श्रेणी में जा सकती है और जरूरतमंद किसान इसके फायदे से वंचित रह सकते हैं।