हरियाणा में सरसों खरीद को लेकर किसान नाराज क्यों हैं?
योगेंद्र यादव फेसबुक पेज
हरियाणा में सरसों पैदा करने वाले किसान गुस्से में हैं। पिछले कई दिनों से इन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। सरसों की सरकारी खरीद को लेकर हरियाणा के किसानों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
हरियाणा में इस साल सरसों की अच्छी पैदावार हुई है। इसके बावजूद सरसों किसानों को अपनी फसल के बदले उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। दरअसल, केंद्र सरकार ने इस सीजन के लिए सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4,200 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। लेकिन किसानों को इस दर से प्रति क्विंटल 800 से 900 रुपये कम मिल रहे हैं।
दूसरी समस्या यह हो रही है कि किसानों की कुल पैदावार की सरकारी खरीद हरियाणा के मंडियों में नहीं हो पा रही है। सरकार ने अधिकतम खरीद की सीमा तय कर रखी है। यह सीमा प्रति एकड़ 6.5 क्विंटल की है। लेकिन हरियाणा से यह जानकारी मिल रही है कि इस साल वहां प्रति एकड़ औसतन 10 से 12 क्विंटल सरसों का उत्पादन हुआ है।
इस लिहाज से देखें तो किसानों से उनकी सरसों की कुल पैदावार को मंडियों में नहीं खरीदा जा रहा है। इसके अलावा मंडियों में एक दिन में एक किसान से 25 क्विंटल सरसों खरीदने की अधिकतम सीमा भी तय की गई है। इन दोनों वजहों से किसानों को खुले बाजार में औने-पौने दाम में सरसों बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है।
पिछले दिनों स्वराज इंडिया पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक योगेंद्र यादव ने हरियाणा की कुछ मंडियों का दौरा करके सरसों किसानों की समस्याओं को लेकर सरकार को घेरने की कोशिश की थी। उन्होंने आरोप लगाया है कि किसानों से खरीदी जा रही सरसों की फसल की तौल में भी किसानों के साथ धोखा किया जा रहा है। उनका आरोप है कि हर बोरी पर किसानों की फसल लूटी जा रही है। योगेंद्र यादव ने सरकार से मांग की कि इस समस्या को दूर करने के साथ खरीद पर तय की गई अधिकतम सीमा तत्काल हटाई जानी चाहिए।
सरसों किसानों की समस्या बढ़ाने का काम खरीद एजेंसी में बदलाव की वजह से भी हुआ है। पहले हरियाणा में सरसों खरीद का काम नैफेड और हैफेड के माध्यम से किया जा रहा था। लेकिन इन एजेंसियों का खरीद लक्ष्य पूरा हो गया। जबकि मंडियों में सरसों की आवक जारी रही। इस वजह से अब सरसों खरीद का काम खाद्य एवं आपूर्ति विभाग को दिया गया है। खरीद एजेंसी में हुए इस बदलाव से हरियाणा के विभिन्न मंडियों में अव्यवस्था बनी हुई है।
एजेंसी बदलने की वजह से किसानों को नए सिरे से रजिस्ट्रेशन कराना पड़ रहा है। क्योंकि बगैर रजिस्ट्रेशन के किसानों की सरसों नहीं खरीदने का प्रावधान किया गया है। एजेंसी में बदलाव किए जाने की वजह से खरीद प्रक्रिया ठीक से चल नहीं रही है। प्रदेश में कुछ जगहों पर तो नाराज किसानों ने हंगाम भी किया। कुछ जगहों पर किसानों ने सड़क जाम भी किया।
बहादुरगढ़ की मंडी में सरसों किसानों को हंगाम करने का बाध्य होना पड़ा तब जाकर सरसों खरीद शुरू हो सकी। बहादुरगढ़ मंडी में खाद्य एवं आपूर्ति विभाग ही गेहूं की खरीद भी कर रहा है। इस वजह से न तो मंडी में विभाग के पर्याप्त कर्मचारी थे और न ही कोई उपयुक्त व्यवस्था बन पाई।
हरियाणा की मंडियों में सरसों की सरकारी खरीद ठीक से नहीं होने की वजह से कुछ मंडियों में सरसों से लदे ट्रालियों की लंबी कतारें लगी हुई हैं। रेवाड़ी में नाराज सरसों किसानों ने सड़क जाम किए। यहां किसानों से सरसों की खरीद ही शुरू नहीं हो पा रही थी। जबकि उन्हें सरसों खरीदने से संबंधित टोकन जारी हो गया था।
सरसों किसानों को इन समस्याओं का सामना तब करना पड़ा है जब केंद्र सरकार में बैठे नीति निर्धारक तिलहन के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने और खाद्य तेलों का आयात कम करने की बात लगातार कर रहे हैं। केंद्र की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने दोबारा सत्ता में आने के बाद तिलहन मिशन शुरू करने का वादा किया है। मार्च, 2019 में भारत ने 14.46 लाख टन खाद्य और अखाद्य तेलों का आयात किया।
एक तरफ भारी आयात है तो दूसरी तरफ देश में हो रहे उत्पादन की खरीदारी ठीक से नहीं हो रही है। ऐसे में क्या ये किसान फिर से सरसों उपजाने का निर्णय लेंगे? अगर ये फिर से सरसों नहीं उपजाते हैं या उपजाते भी हैं तो अगर सरसों की खरीद ठीक ढंग से नहीं हो पाती है तो क्या देश को तिलहन के मामले में आत्मनिर्भर बनाने का सपना पूरा हो पाएगा।