चीनी मिलों को 38 हजार करोड़ की सरकारी मदद, फिर भी किसानों का 22 हजार करोड़ बकाया
पिछले दो वर्षों में केंद्र सरकार चीनी मिलों को करीब 38 हजार करोड़ रुपये की मदद और रियायतें देने का ऐलान कर चुकी है। इसके बावजूद गन्ना किसानों का बकाया भुगतान 22 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। इसमें सबसे ज्यादा बकाया उत्तर प्रदेश के किसानों का है। 12 मई तक यूपी की चीनी मिलों पर किसानों का कुल 14,496 करोड़ रुपये बकाया था।
लॉकडाउन और महामारी के संकट में भुगतान को लेकर किसानों की परेशानी बढ़ती जा रही है। स्थिति बिगड़ती देख अब केंद्र सरकार हरकत में आई है और केंद्रीय खाद्य मंत्री राम विलास पासवान ने चीनी मिलों को जल्द से जल्द भुगतान करने को कहा है। लेकिन ताज्जुब की बात यह है कि सरकार से हजारों करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता मिलने के बावजूद चीनी मिलों ने किसानों को समय पर भुगतान नहीं किया है।
खाद्य मंत्रालय के अनुसार, अक्तूबर से शुरू हुए पेराई सीजन 2019-20 में देश भर की चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का बकाया 22,079 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। इसमें से करीब 767 करोड़ रुपये का भुगतान पेराई सीजन 2018-19 का है। यह हाल तब है जबकि पिछले दो साल में करीब 80 लाख टन चीनी का निर्यात हो चुका है और अगले चार महीनों में 10 लाख टन चीनी निर्यात की संभावना है। चीनी के अलावा एथनॉल के उत्पादन से भी चीनी मिलों को कमाई होती है। लॉकडाउन के दौरान तो चीनी मिलों ने सैनिटाइजर भी खूब बनाया, लेकिन किसानों का भुगतान अटका हुआ है।
सवाल यह है कि चीनी मिलों की कमाई के विभिन्न स्रोतों, चीनी के निर्यात और तमाम सरकारी रियायतों के बावजूद किसानों को समय पर भुगतान क्यों नहीं मिलता?
इस साल चीनी मिलों को रियायतें
– 40 लाख टन चीनी का बफर स्टॉक बनाने के लिए 1647 करोड़ रुपये की भरपाई
– 60 लाख टन चीनी निर्यात के लिए प्रति टन 10,448 रुपये की सहायता। इस पर कुल 6,268 करोड़ रुपये खर्च
पिछले साल दी गई सहायता
– चीनी मिलों को प्रति कुंतल 13.88 रुपये की मदद। कुल खर्च 3,100 करोड़ रुपये
– चीनी निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 900 करोड़ रुपये की सहायता
– 30 लाख टन चीनी का बफर स्टॉक बनाने के लिए 780 करोड़ रुपये की भरपाई
– बैंकों के जरिए 7402 करोड़ रुपये का सॉफ्ट लोन जिस पर एक साल के लिए 7 फीसदी ब्याज सरकार भरेगी। ब्याज छूट पर खर्च 518 करोड़ रुपये
इन रियायतों के अलावा गन्ने से एथनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 362 चीनी मिलों को 18,643 करोड़ रुपये का सॉफ्ट लोन दिया जा रहा है। इस कर्ज पर सरकार पांच साल तक कुल 4045 करोड़ रुपये की ब्याज छूट देगी। इस योजना के तहत अब तक 64 चीनी मिलों को 3148 करोड़ रुपये का कर्ज मंजूर हो चुका है। एथनॉल उत्पादन की तकनीक और क्षमता में सुधार के लिए भी सरकार चीनी मिलों को प्रोत्साहन दे रही है।
यह सिर्फ केंद्र सरकार की ओर से दी गई सहायता है। राज्य सरकारों की ओर चीनी मिलों को मिलने वाली मदद इसमें शामिल नहीं है।
करीब 38 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की इन रियायतों के बावजूद चालू पेराई सीजन में 31 फीसदी गन्ने का भुगतान किसानों को नहीं मिला है। चालू पेराई सीजन में किसानों ने कुल 72 हजार करोड़ रुपये का गन्ना चीनी मिलों को बेचा है, जिसमें से अभी तक करीब 50 हजार करोड़ रुपये का भुगतान हुआ है।
गन्ना भुगतान के मुद्दे पर सरकार और चीनी मिलों के साथ लंबी लड़ाई लड़ रहे राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय संयोजक सरदार वीएम सिंह का कहना है कि सरकार और चीनी मिलों की मिलीभगत के चलते किसानों को न तो समय पर पेमेंट मिलता है और न ही बकाया भुगतान पर कोई ब्याज मिल पाता है। जिस दिन चीनी मिलों को बकाया भुगतान पर ब्याज देना पड़ेगा, वे समय पर भुगतान करने लगेंगी। चीनी मिलों की खराब माली हालत के तर्क को खारिज करते हुए वीएम सिंह कहते हैं कि यूपी में 15 साल में प्राइवेट चीनी मिलों की संख्या 35 से बढ़कर 95 हो गई। अगर इस उद्योग में घाटा होता तो प्राइवेट सेक्टर नई फैक्ट्रियां क्यों लगाता?
इस साल गन्ना भुगतान में देरी के लिए केंद्र सरकार कोरोना संकट और लॉकडाउन को प्रमुख वजह बता रही है। खाद्य मंत्रालय के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान चीनी की खपत में करीब 10 लाख टन की कमी आई जिसका असर चीनी मिलों की कमाई पर पड़ा। यह बात मान भी लें तो हर साल भुगतान में देरी की समस्या को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। पिछले साल जब कोरोना जैसा संकट नहीं था, तब भी गन्ना किसानों का बकाया 28 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया था। अगर उत्पादन के लिहाज से देखें तो इस साल चीनी मिलों की स्थिति बेहतर है, क्योंकि देश में चीनी उत्पादन पिछले साल से करीब 18 फीसदी कम हुआ है। इसलिए भाव बेहतर मिलने की उम्मीद है।
दरअसल, गन्ना भुगतान में देरी पुरानी समस्या है। इससे चीनी मिलों को कच्चा माल यानी गन्ना उधार पर मिल जाता है और किसानों को पेमेंट कई-कई महीने बाद या अगले साल होता है। किसानों का यह बकाया भुगतान चीनी मिलों के लिए ब्याज मुक्त कर्ज की तरह है। जबकि किसानों को नकद खर्च कर पेमेंट के इंतजार में उधार लेना पड़ता है। यह खेती को घाटे का सौदा बनाने वाली व्यवस्था की एक छोटी-सी झलक है। कृषि संकट के पीछे ऐसे कई कहानियां छिपी हैं।