लखीमपुर: मृतक किसानों के परिजनों को 45-45 लाख का मुआवजा, हाई कोर्ट के जज द्वारा होगी घटना की न्यायिक जांच!
लखीमपुर खीरी की घटना पर प्रशासन ने किसानों की अधिकतक मांगें मान ली हैं. किसान नेताओं और प्रशासन के बीच हुई बैठक के बाद एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह समझौते का एलान किया गया है. लखीमपुर खीरी में हुई घटना की हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज द्वार जांच करवाई जाएगी. मृतक किसानों के परिजनों को 45-45 लाख और घायलों को 10-10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाएगा.
किसान नेताओं के साथ साझा प्रेस वार्ता में पुलिस अधिकारी ने कहा,”दोषियों पर अलग-अलग धाराओँ के तहत केस दर्ज किया गया है. दोषियों को दस दिन के भीतर गिरफ्तार किया जाएगा. किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा.”
हालांकि किसानों की ओर से केंद्रीय राज्य मंत्री की बर्खास्तगी की भी मांग की जा रही थी. वहीं नेताओं को लखीमपुरी नहीं आने देने के सवाल पर पुलिस अधिकारी ने कहा कि जिले में पहले से ही 144 लगाई गई थी जिसके तहत किसी भी राजनीतिक आदमी को आने की इजाजत नहीं थी केवस किसान नेताओं को आने की अनुमंति थी.
बता दे कि तीन अक्तूबर को किसान उत्तर प्रदेश के लखामपुर में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद का विरोध करने के लिए जुटे थे. किसान जब विरोध जताने के बाद वापस लौट रहे थे तो बीजेपी नेता और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र के बेटे ने किसानो को अपनी गाड़ी से रौंद दिया जिसमें चार किसानों की मौत हो गई.
घटना के बाद देश भर के किसान आक्रोशित हो उठे. लखीमपुर की घटना की निंदा करते हुए किसानों द्वारा सोशल मीडिया पर अभियान चलाया गया. जिसके बाद करीबन सभी विपक्षी दलों के नेताओं ने भी इस घटना पर बयानबाजी की. कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी वाड्रा राज्य सभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ रात को ही लखीमपुर के लिए रवाना हुईं. लेकिन प्रियंका और उनके साथियों को लखीमपुर खीरी पहुंचने से पहले ही रोक लिया गया और सीतापुर के पुलिस थाने में हिरासत में रखा गया.
वहीं राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत चौधरी भी लखीम पुरी के लिए निकले लेकिन पहुंच नहीं पाए. साथ ही समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी पुलिस ने हाऊस एरेस्ट कर लिया जिसके बाद उन्होंने अपने घर के बाहर बैठकर ही किसानों के समर्थन में प्रदर्शन किया.
वहीं इस घटना के दौरान एक स्थानीय स्वतंत्र पत्रकार रमन कश्यप की भी मौत हुई है. मृतक पत्रकार के परिजनों ने प्रशासन से न्याय की मांग करते हुए अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया. पिता ने गांव सवेरा से बात करते हुए कहा, “हमें न्याय चाहिए”