अंग्रेजी हुकूमत से टक्कर लेने वाला गांव, हकों के लिए धरने को मजबूर, एक बुजुर्ग की हुई मौत!
पिछले काफी समय से जिला भिवानी के बवानीखेड़ा कस्बे के गांव रोहनात में चल रहे, धरना-प्रदर्शन में एक बुजुर्ग व्यक्ति की हृदय की गति रुकने से मौत हो गई. गांव वालों ने बताया कि 1857 की क्रांति के समय अंग्रेजों द्वारा नीलाम की गई जमीन को खरीदने के बावजूद राजस्व विभाग में सुल्तानपुर, उमरा ठोला व ढंढेरी के नाम हटवाने को लेकर यह धरना दिया जा रहा है. जिला प्रशासन की टीम भी मौके पर पहुंची और उक्त घटना का जायजा लिया. वहीं गुस्साए ग्रामीणों ने बुजुर्ग की मौत पर रोष व्यक्त करते हुए, अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया.
मृतक परिवार को सांत्वना देने और धरने में शामिल होने के लिए स्थानीय नेता भी पहुंचे. धरने में शामिल होने के लिए पहुंचे पूर्व विधायक रामकिशन फौजी ने सरकार से मांग की कि रोहनात गांव को शहीद गांव का दर्जा दिया जाये और गांव के जमीनी विवाद का समाधान किया जाए. वहीं ग्रामीणों ने मृतक बुजुर्ग व्यक्ति को शहीद का दर्जा दिए जाने, घर के एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी और आर्थिक सहायता के लिए मुआवजे की बात सामने रखी.
सन् 1857 की क्रांति में बवानीखेड़ा कस्बे के गांव रोहनात का ऐतिहासिक दृष्टि से एक अहम योगदान रहा है. गांव के लोगों ने बताया, “1857 की क्रांति में रोहनात गांव के पूर्वजों ने अपना अहम योगदान दिया था. जिसके कारण ब्रिटिश सरकार द्वारा योजनाबद्ध तरीके से गांव के ऊपर तोप के गोले दाग कर गांव को नष्ट कर दिया गया था. इसके बावजूद भी ब्रिटिश शासकों का गुस्सा शांत नहीं हुआ और विरोध करने वाले गांव के लोगों को हांसी शहर की सड़क के ऊपर लेटा कर उनके ऊपर रोड रोलर फेर दिया गया. जिससे सड़क खून से लथपथ होकर लाल हो गई. आज भी इस सड़क को लाल सड़क के नाम से जाना जाता है.”
जब अंग्रेजों की दाल नहीं गली तो उन्होंने इस गांव को बागी घोषित कर दिया था और नीलामी के आदेश दे दिए गए थे. गांव की जमीन को मात्र 8100 की बोली में बेच दिया गया था और यह आदेश भी जारी कर दिया गया था कि भविष्य में इस जमीन को रोहनात के लोग खरीद नहीं पाएंगे.
ग्रामीणों का कहना है कि उक्त समय तत्कालीन सरकार के द्वारा गांव वालों को कुछ जमीन प्लाट स्वरूप अलॉट की गई थी. जिनके ऊपर आज तक सरकार की ओर से उन्हें कोई कब्जा नहीं दिलाया गया है. गांव वालों की प्रमुख मांग यही है कि 1857 की क्रांति में अंग्रेजों द्वारा नीलाम की गई जमीन को गांव वालों को सौंपा जाए और रोहणात गांव को शहीद गांव का दर्जा दिया जाए.
आजादी के इतने वर्षों बाद भी गांव रोहनात में झंडा नहीं फहराया जाता. उसका कारण यह है कि गांव वालों की मूलभूत सुविधाओं के ऊपर सरकार ने कभी ध्यान ही नहीं दिया. 23 मार्च 2018 को पहली बार मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के द्वारा गांव के ही बुजुर्ग व्यक्ति के हाथों रोहनात में राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया.
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