हिंदू समाज युद्ध की स्थिति में है, लोगों का आक्रामक होना स्वाभाविक है: RSS प्रमुख मोहन भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक, मोहन भागवत ने, पिछले कुछ वर्षों में सांप्रदायिकता में वृद्धि के साथ-साथ भीड़ द्वारा दंड देने को तर्कसंगत और लगभग उचित ठहराते हुए आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य को एक इंटरव्यू में कहा “हिंदू समाज एक हजार वर्षों से अधिक समय से युद्धरत है – यह लड़ाई विदेशी आक्रमणों, विदेशी प्रभाव और विदेशी साजिशों के खिलाफ चल रही है. संघ ने इस कारण को अपना समर्थन दिया है, ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने इसके बारे में बात की है. और इन सबके कारण ही हिन्दू समाज जाग्रत हुआ है. युद्धरत लोगों का आक्रामक होना स्वाभाविक है.”
भागवत ने “बिना सुस्ती के लड़ने” की आवश्यकता पर जोर देकर धर्मग्रंथों का हवाला देते हुए कहा, “जैसा कि (भगवतगीता में) कहा गया है, युधास्य विगत ज्वार – बिना सुस्त हुए लड़ो. इस कहावत का पालन करना हर किसी के बस की बात नहीं है. हालांकि, ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने संघ के माध्यम से सामाजिक जागरण का काम संभाला. सामाजिक जागृति की यह परंपरा काफी पुरानी है- यह उस दिन से शुरू हुई जब पहला आक्रमणकारी सिकंदर हमारी सीमाओं पर पहुंचा. भागवत ने विशेष रूप से बताया कि कैसे युद्ध के समय में, अत्यधिक वांछनीय न होने पर भी अति उत्साह स्वाभाविक था. “चूंकि यह एक युद्ध है, लोगों के अति उत्साही होने की संभावना है. हालांकि यह वांछनीय नहीं है, फिर भी भड़काऊ बयान दिए जाएंगे.”
संघ के इस अतिउत्साह का प्रमाण हमारे सामने है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों का हवाला देते हुए, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने पिछले महीने संसद को बताया था कि 2017 और 2021 के बीच भारत में सांप्रदायिक या धार्मिक दंगों के 2,900 से अधिक मामले दर्ज किए गए थे. सांप्रदायिक दंगों के 378 मामले दर्ज किए गए थे. 2021, 2020 में 857, 2019 में 438, 2018 में 512 और 2017 में 723 मामले दर्ज किए गए थे.
वहीं भागवत ने आगे कहा, “यह युद्ध बाहर के दुश्मन के खिलाफ नहीं है, बल्कि भीतर के दुश्मन के खिलाफ है. इसलिए हिंदू समाज, हिंदू धर्म और हिंदू संस्कृति की रक्षा के लिए युद्ध हो रहा है. विदेशी आक्रमणकारी अब नहीं रहे, लेकिन विदेशी प्रभाव और विदेशी साजिशें जारी हैं.”
भारत में रहने वाले मुसलमानों के बारे में बात करते हुए, भागवत ने जबरन धर्मांतरण और अवैध आप्रवासन की बयानबाजी की: “सरल सत्य है – हिंदुस्तान को हिंदुस्तान रहना चाहिए. आज भारत में रहने वाले मुसलमानों को कोई नुकसान नहीं है. यदि वे अपने विश्वास पर टिके रहना चाहते हैं, तो वे कर सकते हैं. यदि वे अपने पूर्वजों की आस्था में लौटना चाहते हैं तो वे ऐसा कर सकते हैं. यह पूरी तरह उनकी पसंद है. हिन्दुओं में ऐसी हठधर्मिता नहीं है. इस्लाम को डरने की कोई बात नहीं है. लेकिन साथ ही, मुसलमानों को वर्चस्व की अपनी बड़बोली बयानबाजी को छोड़ देना चाहिए. इसलिए जनसंख्या असंतुलन एक महत्वपूर्ण प्रश्न है और हमें इस पर विचार करना होगा. और यह केवल जन्मदर के सवाल के बारे में नहीं है. असंतुलन के पीछे धर्मांतरण और अवैध अप्रवास मुख्य कारण हैं. इसे रोकने से संतुलन बहाल होता है, हमने यह भी देखा है.”
“एलजीबीटी” पर बोलते हुए, मोहन भागवत ने कहा, “इसी प्रकार एलजीबीटी का प्रश्न है. जरासंध के दो सेनापति थे हंस और डिंभक. दोनों इतने मित्र थे कि कृष्ण ने अफवाह फैलाई कि डिंभक मर गया, तो हंस ने आत्महत्या कर ली. दो सेनापतियों को ऐसे ही मारा. यह क्या था? यह वही चीज है. दोनों में वैसे संबंध थे. मनुष्यों में यह प्रकार पहले से है. जब से मनुष्य आया है, तब से है. मैं जानवरों का डॉक्टर हूं, तो जानता हूं कि जानवरों में भी यह प्रकार होता है. यह बाइलॉजिकल है. लेकिन उसका बहुत हो-हल्ला है. उनको भी जीना है. उनका अलग प्रकार है. उसके अनुसार उनको एक अलग निजी जगह भी मिले और सारे समाज के साथ हम भी हैं, ऐसा भी उनको लगे. इतनी साधारण सी बात है. हमारी परंपरा में इसकी व्यवस्था बिना हो-हल्ले होती है. हम करते आए हैं. हमको ऐसा विचार आगे करना पड़ेगा. क्योंकि बाकी बातों से हल निकला नहीं और न ही निकलने वाला है. इसलिए संघ अपनी परंपरा के अनुभव को भरोसेमंद मानकर विचार करता है.”
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