पानीपत की सूत मिलों को बड़ा झटका, इंडस्ट्री के कारोबार में 50 प्रतिशत से अधिक की गिरावट

 

देश और दुनिया में पहचान रखने वाली पानीपत की रिसाइकल्ड इंडस्ट्री संकट का सामना कर रही है। शहर की छोटी-बड़ी रिसाइकल्ड यार्न इंडस्ट्री बेकार कपड़ों को रिसाइकल कर सूत से धागे बनाती है, जिनका इस्तेमाल कई दूसरे सामान बनाने के लिए भी किया जाता है, जिसमें कालीन, कंबल, शॉल, पर्दे, बाथ मैट, फुट मैट और बेडशीट आदि शामिल हैं। 

पिछले करीब दो महीनों से पानीपत में रिसाइकल्ड यार्न इंडस्ट्री को 50 प्रतिशत से अधिक की गिरावट का सामना करना पड़ा है। मंदी की चपेट में आए कारोबार पर पानीपत इंडस्ट्रीज एसोसिएशन और नॉर्दर्न इंडिया रोलर स्पिनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष, प्रीतम सिंह सचदेवा बताते हैं, “दुनिया और लोकल स्तर पर बाजारों में धागों और इससे बने सामानों की कम होती मांग के कारण कारोबार में 20% की गिरावट देखने को मिली है।”

प्रीतम सिंह सचदेवा आगे बताते हैं, “पानीपत में रोज लगभग 40 ओपन कताई मिलें मिलकर 30 लाख किलोग्राम धागों का उत्पादन करती थीं, लेकिन पिछले दो महीनों से धागों की मांग कम हो गई है। रिसाइकल्ड यार्न इंडस्ट्री की कीमतों में भी लगभग 20% की कमी आई है। पहले, धागों की कीमत 100-110 रुपये प्रति किलोग्राम थी, लेकिन अब कीमत केवल 80-82 रुपये प्रति किलोग्राम पर सिमटकर रह गई है।”पानीपत रिसाइकल्ड यार्न इंडस्ट्री का केंद्र है, जो आसपास के लोगों को रोजगार देने का काम भी करती है। जिसके बनाये सामान आसपास के लोकल स्तर पर बेचे जाते हैं और वैश्विक स्तर पर भी अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में भेजे जाते हैं, लेकिन लोकल स्तर के मुकाबले इस इंडस्ट्री के कुल कारोबार का 30 प्रतिशत निर्यात विदेशों में ही होता है। लेकिन यह इंडस्ट्री अब संकट से जूझ रही है।

द ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के अनुसार, रिसाइकल्ड यार्न इंडस्ट्री में 50 प्रतिशत की गिरावट के मुख्यःत दो कारण बताए गए हैं. पहला, अमेरिका में उच्च मुद्रास्फीति का होना और दूसरा साल भर चले रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यूरोपीय देशों में अशांति का पनपना। इन दोनों घटनाओं ने पानीपत की धागा इंडस्ट्री को बुरी तरह से प्रभावित किया है। कथित तौर पर शहर का कारोबार लगभग 50,000 करोड़ रुपये का है, जिसमें से 15,000 करोड़ रुपये विदेशों में निर्यात से आता है।

एक धागा व्यापारी सिया राम गुप्ता ने द ट्रिब्यून को दिए अपने एक बयान में कहा है कि “यार्न इंडस्ट्री निर्यात उद्योग पर निर्भर है, क्योंकि उन्हें अच्छे ऑर्डर मिलते हैं और इसकी मांग अधिक है। लेकिन, इस साल मांग एकदम से काफी कम हो गई है।”

पानीपत की ज्यादातर इंडस्ट्री अपने सामानों को बनाने के लिए रिसाइकल्ड यार्न इंडस्ट्री पर निर्भर है। और दूसरे सामान बनाने के लिए धागों की ज्यादा जरूरत होती है, लेकिन धागों की मांग में पिछले काफी समय से कमी आई है। इसी कारण से पानीपत के उद्योगों में केवल एक ही शिफ्ट में काम चल रहा है।

इस मंदी की चपेट में सिर्फ उत्तर भारत के उद्योग ही नहीं बल्कि देश के अन्य हिस्से, खासकर दक्षिण भारत और गुजरात भी शामिल हैं। दक्षिण भारत में तो हालात ऐसे हो चुके हैं कि कारोबारियों ने अपने उद्योगों को 15 दिनों के लिए बंद कर दिया है। और ऐसा ही चलता रहा तो पानीपत के कारोबारी भी अपने उद्योग बंद कर सकते हैं।

दक्षिण भारत की तर्ज पर अगर पानीपत के कारोबारी भी इंडस्ट्री को बंद करने की घोषणा करते हैं, तो यह फैसला कारोबारियों के साथ-साथ इसमें काम करने वाले लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी को सबसे ज्यादा प्रभावित करेगा।

संकट से जूझ रहे यहां के यार्न उद्योगपतियों ने एक जुलाई से सप्ताह में दो दिन अपने उद्योग बंद रखने का फैसला किया है।

मांग में गिरावट के कारण उद्योगपति पिछले दो महीनों से अपने उद्योगों को एक ही शिफ्ट में चला रहे हैं। यह निर्णय एक निजी होटल में आयोजित नॉर्दर्न इंडियन स्पिनर्स एसोसिएशन की जनरल हाउस मीटिंग में लिया गया है।