वेतन के लिए प्रदर्शन करने को मजबूर हुए मनरेगा मजदूर!
हरियाणा के फतेहाबाद में मनरेगा यानी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत काम करने के महीना बीत जाने के बाद भी मजदूरों को उनकी मजदूरी नहीं दी गई है. नौबत यहां तक आन पड़ी है कि मनरेगा मजदूर अपनी रोजी रोटी छोड़कर सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर हैं. सबसे दिलचस्प है कि यह हरियाणा के पंचायत मंत्री देवेंद्र बबली का राजनैतिक क्षेत्र हैं जहां से वो विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे हैं. मनरेगा मजदूरों ने कहा कि बाढ़ के दौरान हमने दिन-रात काम करते हुए गांवों और शहरों की आबादी को बाढ़ के पानी से बचाने का काम किया.
बता दें कि बाढ़ के दौरान करीबन ढाई हजार मनरेगा मजदूरों ने टोहाना क्षेत्र में काम किया लेकिन सिंचाई विभाग के अधिकारी मनरेगा मजदूरों की मजदूरी देने में आनाकानी कर रहे हैं. मनरेगा मजदूरों ने आरोप लगाया कि एसडीओ व एक्सईएन तो मनरेगा मजदूरों से बात तक नहीं कर रहे हैं. एसडीओ ने तो कार्यालय से बाहर तक जाने के लिए कह दिया. मजदूर नेताओं ने कहा कि मनरेगा मजदूरों ने कड़ी धूप और उमस के माहौल में काम करते हुए प्रशासन का सहयोग किया है. मगर अब उनकी मजदूरी न करके उन्हें परेशान किया जा रहा है. मनरेगा मजदूरों ने चेतावनी दी कि अगर जल्द ही मजदूरी नहीं दी गई तो सिंचाई विभाग के कार्यालय के आगे धरना देकर अधिकारियों का घेराव किया जाएगा.
वहीं देश के दूसरे हिस्सों में भी मनरेगा मजदूरों की स्थिति इसी तरह की है, अंग्रेजी अखबार ‘द हिंदू’ की एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार के मुजफ्फरपुर में मनरेगा मजदूरों को पिछले पांच महीना का वेतन नहीं मिला है. घर का काम चलाने के लिए मजदूरों को ब्याज पर पैसा लेना पड़ रहा है. वहीं जिला अधिकारी का कहना है कि केंद्र सरकार की ओर से मनरेगा बजट में देरी के कारण मनरेगा मजदूरों को वेतन नहीं दिया गया है. वहीं मनरेगा मजदूरों के लिए काम करने वाली एक सामाजिक संस्था का कहना है कि जिले में करीबन 25 हजार मनरेगा मजदूर हैं जो इस योजना के तहत काम करते हैं.
पिछले संसद सत्र में सामने आए आंकड़ों के मुताबिक केंद्र सरकार पर मनरेगा से जुड़ा सभी राज्यों का 6 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा बकाया है. जिसमें सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल, दूसरे पर राजस्थान और फिर बिहार का सबसे ज्यादा फंड बकाया है.
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