एथलीट राम बाबू का मनरेगा में मजदूरी से लेकर एशियन गेम्स में पदक जीतने तक का सफर!

 

राम बाबू का एशिया गेम्स में पदक जीतने तक का रास्ता कठिनाइयों भरा रहा है. उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के बहुरा गांव में जन्मे राम बाबू ने लंबी दूरी का धावक बनने का सपना पूरा करने के लिए 2018 की शुरुआत में अपना घर छोड़ दिया था. 24 वर्षीय राम बाबू और मंजू रानी ने एशियाई खेल 2023 में 35 किमी रेस वॉक मिश्रित युगल स्पर्धा में कांस्य पदक हासिल किया है.

राष्ट्रीय खेलों में पुरुषों की 35 किमी पैदल चाल में स्वर्ण पदक जीत चुके राम बाबू 2:36:34 सेकंड में फिनिश लाइन को पार कर हरियाणा के जुनेद खान (2:40:16) के पुराने राष्ट्रीय रिकॉर्ड को तोड़कर सुर्खियों में आए थे.

2018 में घर छोड़कर बनारस के एथलेटिक्स स्टेडियम पहुंचे राम बाबू को रहने और प्रशिक्षण का खर्च उठाने के लिए वेटर की नौकरी की. राम बाबू ने एक अंग्रेजी वेबसाइट को बताया उस दौरान उन्हे अनादर भरे शब्दों “ए छोटू, टेबल साफ कर” से बुलाया जाता था. लोग अपमानजनक व्यवहार करते थे, मैं आहत महसूस करता था. कभी-कभी, मैं आधी रात तक और यहां तक कि रविवार को भी काम करता था. उसके बाद मैं सुबह 4 बजे से 8 बजे तक ट्रेनिंग करता था और फिर काम पर वापस आ जाता था” उन्होंने आगे बताया वेतन बहुत कम था और आराम करने के लिए बहुत कम समय मिलता था. मेरी डाइट मेरे ट्रेनिंग से मेल नहीं खाता था. मुझे बार-बार चोटें लगती थीं. मेरे पास ठीक होने के लिए न तो पैसे थे और न ही समय. लेकिन सबसे बुरी बात यह थी कि लोगों ने मेरा सम्मान नहीं किया. उन्होंने मुझे एक व्यक्ति के रूप में नहीं देखा.”

“मेरे पिता एक मजदूर हैं. हमारे पास कोई जमीन नहीं है. घुटने की चोट राम बाबू को परेशान करती रही, बेहतर डाइट और पेसों के अभाव में चोट ठीक नहीं हो रही थी. उसी समय एक कोच ने मुझे रेस वॉक में जाने के लिए कहा क्योंकि यह मेरे घुटनों के लिए कम तनावपूर्ण खेल था,

इसके बाद वेटर की नौकरी छोड़कर कूरियर एजेंसियों में प्रयोग होने वाले जूट बैग की सिलाई शुरू कर दी. आखिर इस काम को छोड़कर राम बाबू ने भोपाल के भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) का रुख किया जहां भारतीय रेस वॉकरों का एक मजबूत समूह था. लेकिन 2020 की शुरुआत में केविड के चलते लगे लॉकडाउन ने राम बाबू को एक और झटका दिया. कोविड के कारण भोपाल शिविर बंद हो गया और राम बाबू को अपने घर सोनभद्र वापस लौटना पड़ा.

गांव में रहते हुए राम बाबू ने मनरेगा में तलाब खोदने की मजदूरी की. उन्होंने बताया, “लॉकडाउन के दौरान ट्रेनिंग नहीं ले सकता था तो फिर गांव में रहकर दो महीने तक मनरेगा में मजदूरी का काम किया.”

गांव से भोपाल लौटने के बाद भी ट्रेनिंग लेना आसान नहीं था क्योंकि बाहरी लोगों को SAI परिसर में प्रवेश की अनुमति नहीं थी. उन्होंने बताया, “कोच मुझे व्हाट्सएप पर गाइड करते थे. लॉकडाउन के दौरान मुझे कैंपस के बाहर सड़क पर ट्रेनिंग करनी पड़ी. प्रशिक्षण के बाद मेरे पास जिम और तैराकी की सुविधा नहीं थी.”इन सब बाधाओं को पार करते हुए राम बाबू 2021 में रांची में रेसवॉकिंग चैंपियनशिप में पुरुषों की 50 किमी स्पर्धा में रजत पदक जीतने में सफल रहे.

कुछ महीने बाद उन्होंने ओपन नेशनल में पुरुषों की 35 किमी स्पर्धा में एक नए राष्ट्रीय रिकॉर्ड के साथ स्वर्ण पदक जीता. उन्होंने तब से नियमित रूप से प्रदर्शन किया है, 2022 में रेसवॉकिंग चैंपियनशिप में 35 किमी स्पर्धा में रजत पदक जीता और उसी वर्ष रेसवॉकिंग विश्व कप में प्रतिस्पर्धा की और अब 24 वर्षीय राम बाबू और मंजू रानी ने एशियाई खेल 2023 में 35 किमी रेस वॉक मिश्रित युगल स्पर्धा में कांस्य पदक हासिल कर खुद को दुनिया के सामने साबित कर दिखाया है.