संकट के समय मुनाफाखोरी ना करें ग्लोबल फर्टिलाइजर कंपनियां: डॉ. मनसुख मांडविया

 

पिछले कुछ महीनों के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी उर्वरकों के दाम बढ़े हैं। इसे देखते हुए फर्टिलाइजर इंडस्ट्री ने डीएपी के खुदरा दाम बढ़ाने अथवा सरकारी सब्सिडी में बढ़ोतरी की आवश्यकता जताई है। उधर, रबी की बुवाई के लिए देश के कई इलाकों में डीएपी की किल्लत की खबरें आ रही हैं। यानी उर्वरकों की उपलब्धता और कीमत दोनों मोर्चों पर सरकार को जूझना पड़ेगा।  

केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने संकट के समय कार्टेल बनाकर मुनाफाखोरी करने वाली ग्लोबल फर्टिलाइजर कंपनियों पर निशाना साधा है। फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफएआई) के वार्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए डॉ. मनसुख मांडविया ने कहा कि हम वैकल्पिक उर्वरकों की दिशा में काम कर रहे हैं क्योंकि कार्टेलाइजेशन बड़ी समस्या है। उन्होंने कहा कि संकट के समय भारत ने अपने साथ-साथ विश्व की खाद्य सुरक्षा का भी ध्यान रखा था। उन्होंने ग्लोबल कंपनियों को संकट के समय मिलीभगत कर मुनाफाखोरी ना करने की सलाह दी।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़े उर्वरकों के दाम

पिछले कुछ महीनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी के दाम 440 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 595 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गए हैं। अमोनिया के दाम भी जुलाई से अब तक लगभग दोगुने बढ़ गए हैं। फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष एन. सुरेश कृष्णन का कहना है कि अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी के दाम नहीं घटे तो खुदरा दाम बढ़ाने पड़ सकते हैं या फिर सरकारी सब्सिडी बढ़ाने की आवश्यकता पड़ेगी। उर्वरकों की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में उतार-चढ़ाव और सरकार द्वारा फर्टिलाइजर सब्सिडी की दरें घटाने से उर्वरक कंपनियों के सामने बायबिलटी का संकट पैदा हो गया है। फिलहाल, उर्वरक कंपनियां डीएपी की 50 किलोग्राम की बोरी 1,350 रुपये में बेच रही हैं।

उर्वरक में आयात पर निर्भरता

भारत अपनी उर्वरक जरूरत का बड़ा हिस्सा आयात के जरिए पूरा करता है। इसलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरकों की कीमतों का सीधा असर घरेलू फर्टिलाइजर कंपनियों पर पड़ता है। उर्वरक मंत्री डॉ. मांडविया का कहना है कि गत 2-3 वर्षों के दौरान भारत सरकार ने फर्टिलाइजर की ऊंची कीमतों का असर किसानों पर नहीं पड़ने दिया। उर्वरकों के दाम स्थिर रखते हुए उपलब्धता सुनिश्चित की जा रही है। साथ ही उर्वरकों के संतुलित इस्तेमाल और जैविक खेती के जरिए बढ़ावा दिया जा रहा है। नैनो डीएपी और नैनो यूरिया जैसे नैनो उर्वरकों को पेश करने वाला भारत पहला देश है।

यूरिया उत्पादन बढ़ेगा

डॉ. मनसुख मांडविया ने बताया कि सरकार लागत प्रभावी समाधान विकसित करने और प्रौद्योगिकी पहुंच बढ़ाने के लिए ड्रोन निर्माताओं और कृषि कंपनियों के साथ काम कर रही है। उन्होंने फर्टिलाइजर कंपनियों से उत्पादन के पर्यावरण अनुकूल तरीके विकसित करने को कहा है। इस साल यूरिया का उत्पादन पिछले वर्ष के 285 लाख टन से बढ़कर 300 लाख टन होने की उम्मीद है। उन्होंने उम्मीद जताई कि अगले कुछ वर्षों में भारत यूरिया में आत्मनिर्भर हो जाएगा।

साभार: असली भारत