केन्द्र द्वारा भेजा एग्री मार्केटिंग पॉलिसी का नया ड्राफ्ट मंडियों को खत्म करने का प्रयास

 

कृषि मंत्रालय ने 25 नवंबर को एग्रीकल्चर मार्केटिंग के लिए नेशनल पॉलिसी फ्रेमवर्क का ड्राफ्ट सार्वजनिक करते हुए 15 दिन के अंदर पब्लिक के सुझाव मांगे थे। देश के करोड़ किसानों की आजीविका से जुड़े इस महत्वपूर्ण मुद्दे के लिए सिर्फ 15 दिन का कम समय दिया गया, जिसे किसान संगठन ने नाकाफी बताया है। आशा-किसान स्वराज का कहना है कि ड्राफ्ट को एक नजर देखने से ही पता चलता है कि यह केंद्र सरकार द्वारा कृषि बाजारों को डि-रेगुलेट करने तथा किसानों को कॉरपोरेट के रहमोकरम पर छोड़ने के एजेंडे को फिर से लागू करने का प्रयास है।  

केंद्र सरकार की ओर से लाए जा रहे एग्रीकल्चर मार्केटिंग के नेशनल पॉलिसी फ्रेमवर्क को लेकर किसान संगठन एलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड हॉलिस्टिक एग्रीकल्चर (आशा-किसान स्वराज) ने अपनी आपत्तियां दर्ज कराई हैं। संगठन ने केंद्र सरकार को लिखे पत्र में ड्राफ्ट को बैक डोर से निरस्त कृषि कानूनों की वापसी की कोशिश करार दिया है। 

पंजाब के कृषि मंत्री गुरमीत सिंह खुड्डियां ने भी इस ड्राफ्ट पर आपत्ति जताते हुए कहा, “केंद्र द्वारा बनाई गई नीतियां अक्सर पंजाब के खिलाफ होती हैं. मुझे नहीं पता कि पंजाब विरोधी सोच क्यों है; देश सबका है…देश रल मिल के सब दा हुंदा है।”

एग्री मार्केटिंग पॉलिसी पर चर्चा के लिए एक बैठक की अध्यक्षता करने के बाद खुड्डियां ने बिना किसी संकोच के कहा, “शुरुआत में, यह पंजाब में दशकों पुरानी मंडी प्रणाली को नष्ट करने के उद्देश्य से एक नीति प्रतीत होती है। लेकिन अगर आप एक राज्य की अर्थव्यवस्था को नष्ट करते हैं, तो आप अन्य राज्यों को मजबूत नहीं बना सकते।” इससे पहले आज खुद्डियां ने विशेष मुख्य सचिव (राजस्व और कृषि) अनुराग वर्मा, पंजाब राज्य किसान और खेत मजदूर आयोग के अध्यक्ष सुखपाल सिंह और पंजाब मंडी बोर्ड के सचिव रामवीर के साथ बैठक की और केंद्र द्वारा विचार-विमर्श के लिए भेजी गई मसौदा नीति पर चर्चा की।

उन्होंने आगे बताया, “हमने मसौदा समिति के अध्यक्ष को एक पत्र भेजा है जिसमें नीति की बारीकी से जांच करने के लिए हमें तीन सप्ताह का समय दिया गया है। आखिरकार, पंजाब की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है और किसी भी बदलाव का प्रतिकूल असर होगा,”

खुड्डियां ने कहा कि चूंकि मसौदा नीति हरियाणा के हित में नहीं है, क्योंकि वहां भी बढ़िया मंडी सिस्टम है, इसलिए वह इस मसौदा नीति का संयुक्त रूप से विरोध करने के लिए हरियाणा के कृषि मंत्री से संपर्क करेंगे। उन्होंने कहा, “यह अब निलंबित तीन कृषि कानूनों को टुकड़ों में वापस लाने का प्रयास प्रतीत होता है, जिसके खिलाफ किसानों ने साल भर आंदोलन भी किया था।”

मसौदा नीति पर राज्य सरकार और किसान संघों की मुख्य आपत्तियाँ निजी खिलाड़ियों को खाद्यान्नों के भंडारण के लिए अत्याधुनिक साइलो बनाने की अनुमति देने और इन्हें खुले बाजार यार्ड के रूप में घोषित करने की कोशिश है, जहाँ वे सीधे किसानों से फसल खरीद सकते हैं। यह प्रस्तावित है कि निजी खिलाड़ी सीधे किसानों से उनकी उपज खरीदने के लिए अनुबंध कर सकते हैं। इसमें एक समान फसल बीमा नीति की भी बात की गई है, जिसे पंजाब ने अब तक लागू करने से इनकार कर दिया है। हमारे पास देश में सबसे अच्छा मंडी सिस्टम है। हम इसे खत्म क्यों करना चाहेंगे?

उन्होंने कहा, “केंद्र सरकार ने पहले ही हमें ग्रामीण विकास निधि देने से मना कर दिया है और अब वह बाजार शुल्क खत्म करना चाहती है। हम यहां बैठकर पंजाब के साथ अन्याय नहीं होने दे सकते। हम विवादास्पद प्रावधानों के खिलाफ अपना तर्क पेश करेंगे।”

आशा-किसान स्वराज के डॉ. राजिंदर चौधरी और कविता कुरुगंटी की ओर से लिखे गये पत्र में कहा गया है कि नेशनल पॉलिसी फ्रेमवर्क को राज्य सरकारों के साथ व्यापक विचार-विमर्श कर तैयार करना चाहिए था। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी किसानों की प्रमुख लंबित मांग है लेकिन ड्राफ्ट में इसे पूरी तरह नजरअंदाज किया गया है। एक बड़ी खामी यह है कि इसमें अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीतियों और प्रतिबद्धताओं का कोई जिक्र नहीं है।

आशा-किसान स्वराज का कहना है कि बिना सरकारी निगरानी के मार्केटिंग के कई चैनल खोलने से शोषण और धोखाधड़ी का खतरा बढ़ सकता है। ड्राफ्ट पॉलिसी फ्रेमवर्क में कृषि बाजारों के रेगुलेशन का कोई जिक्र नहीं है। न ही अनरेगुलेटेड थोक बाजार और प्राइवेट थोक बाजारों से जुड़ी समस्याओं को हल करने का प्रस्ताव है। लेकिन निजी बाजारों या अनियमित बाजारों को अतार्किक ढंग से बढ़ावा दिया गया है।

ड्राफ्ट में कृषि कानूनों में सुधार की पहल को आशा-किसान स्वराज ने कृषि कानूनों के प्रमुख प्रावधानों को फिर से लागू करने का प्रयास बताया, जिन्हें किसानों के विरोध के कारण निरस्त करना पड़ा था। संगठन का कहना है कि “कृषि-व्यापार में आसानी” किसानों के हितों की कीमत पर नहीं की जा सकती है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देने से निरस्त हुए कृषि कानून की बू आ रही है। संगठन ने सवाल उठाया कि ड्राफ्ट में उन्हीं तथाकथित सुधारों पर जोर क्यों दिया जा रहा है जो किसानों की बाजार संबंधी दिक्कतों को हल कर पाने नाकाम रहे हैं।

आशा-किसान स्वराज ने सुझाव दिया है कि कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को इस ड्राफ्ट पॉलिसी फ्रेमवर्क को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए। क्योंकि यह खारिज हो चुके कृषि-बाजार सुधारों को फिर से लागू करने का एक प्रयास है, जो तीन कुख्यात कृषि कानूनों में निहित थे।