विकसित भारत के नारे के बीच 90 फीसदी भारतीयों के पास खर्च करने के लिए पैसा नहीं!

 

वेंचर कैपिटल फर्म ब्लूम वेंचर्स द्वारा की गई एक स्टडी के अनुसार लगभग 100 करोड़ भारतीय यानी देश की 90 फीसदी आबादी वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने के लिए असमर्थ हैं. भारत की 90 फीसदी आबादी किसी तरह अपने मासिक खर्च पूरे कर रहे हैं और उतने में ही उनकी आमदनी खत्म हो जा रही है.

भारत की आबादी के शीर्ष 10 फीसदी लोग ही वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग करने में समर्थ हैं. ब्लूम वेंचर्स की वार्षिक रिपोर्ट 2025 में बताया गया है कि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में यह “उपभोक्ता वर्ग” आकार में विस्तार नहीं कर रहा है, बल्कि अमीर बन रहा है, जिसका अर्थ है कि अमीर और अमीर हो रहे हैं जबकि कुल मिलाकर अमीर व्यक्तियों की संख्या स्थिर बनी हुई है.

इसके अतिरिक्त, अन्य 300 मिलियन लोगों को “उभरते” या “आकांक्षी” उपभोक्ताओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है. इन व्यक्तियों ने हाल ही में अधिक खर्च करना शुरू किया है, लेकिन ये लोग अपने खर्च के साथ सतर्क रहते हैं.

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि हाल ही में उपभोग करने में और भी गिरावट आई है, जो न केवल खरीदने की शक्ति में गिरावट के कारण है, बल्कि वित्तीय बचत में भारी गिरावट और बड़े पैमाने पर कर्ज में बढ़ोेतरी भी कारण है.

उपभोग पैटर्न ने भारत की बाजार रणनीति को आकार दिया है, जिसमें ब्रांड बड़े पैमाने पर बाजार के उत्पादों के बजाय “प्रीमियमीकरण” पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. रिपोर्ट में रियल एस्टेट क्षेत्र में बदलाव पर भी प्रकाश डाला गया है, जहां किफायती आवास अब बाजार का केवल 18 प्रतिशत हिस्सा है, जो पांच साल पहले 40 प्रतिशत था.

डेक्कन हेराल्ड में छपि रिपोर्ट के अनुसार, 1990 में भारत के शीर्ष 10 प्रतिशत लोगों के पास राष्ट्रीय आय का 34 प्रतिशत हिस्सा था, जो 2025 तक बढ़कर 57.7 प्रतिशत हो गया. इसके विपरीत, निचले 50 प्रतिशत लोगों की राष्ट्रीय आय में हिस्सेदारी इसी अवधी में 22.2 प्रतिशत से घटकर 15 प्रतिशत रह गई है.

भारत की प्रभावशाली खपत वृद्धि के बावजूद, रिपोर्ट में कहा गया है कि यह अभी भी चीन से कम से कम 13 साल पीछे है. 2023 में, भारत की प्रति व्यक्ति खपत 1,493 डॉलर थी – जो 2010 में चीन के 1,597 डॉलर से काफी कम है.