दिखने लगा महाराष्‍ट्र के मंडी कानून में बदलाव का असर

 

टमाटर 30 रुपया किलो खीरा 15 रुपया किलो भिन्डी और करेला 40 रुपय किलो! सब्जियों के ये दाम मुंबई में हैंं। मात्र 20 दिन पहले ये सभी सब्जियां 80 से 100 रुपया किलो बिक रही थीं। आम तौर पर बरसात के मौसम में सप्लाई की किल्‍लत रहती है। कभी फसल नुकसान के नाम पर तो कभी ट्रांसपोर्टेशन में दिक्कत के नाम पर अगस्त-सितम्बर में सब्जियां महँगी बिकती थीं। लेकिन इस बार ऐसा नहीं है।

दरअसल पिछले महीने महराष्ट्र सरकार ने फल और सब्जियों को APMC यानी कृषि उत्‍पादन मंडी समिति की लिस्ट से बहार कर दिया। मंडी कानून में बदलाव कर किसानो को ये अधिकार दे दिया गया की वे चाहें तो अपना उत्पाद सीधे उपभोक्ता या रिटेलर को बेच सकते हैं। ठीक वैसे ही जैसे गाँव और छोटे कस्बों के बाज़ार में किसान सब्जी बाज़ार में अपना उत्पाद ले जाकर सीधे ग्राहकों को बेचते हैं। ऐसा ही कुछ हो रहा है मुंबई और उपनगरीय इलाकों में जहाँ किसान सीधे रिटेलर को अपना उत्पाद बेच रहे हैं इससे मार्केट में सप्लाई अचानक बढ़ गई है।

व्‍यापारियों की तरफ से पहले तो इस बदलाव का काफी विरोध हुआ। खास करके कमीशन एजेंटों ने इसका विरोध किया और सरकार पर दबाव बनाने के लिए तीन चार दिन के लिए राज्य भर की मंडियों को बंद कर दिया। नतीजा सब्जियों के दाम आसमान पर चढ़ने लगे। यह अफवाह भी फैलाई गई कि बगैर एजेंटों के कृषि बाज़ार का अस्तित्व ही नहीं रहेगा। दरअसल नए कानून के तहत किसानों से अब वे 4 से 6% का कमीशन नहीं ले सकते। बल्कि खरीददारों से उन्हें ये कमीशन लेना होगा। यहाँ ये बात बतानी ज़रूरी है कि अगर किसान डायरेक्ट अपना माल रिटेलर या कंजूमर को बेचता है तो कमीशन एजेंटों को कुछ भी वसूलने का हक़ नहीं होगा।

हालाँकि अभी यह बदलाव शुरूआती चरण में है। कमीशन एजेंट अभी भी दखल बनाने की कोशिश मेंं हैं लेकिन खबरे ये भी आ रही हैंं कि किसान अपना ग्रुप या अग्रीगेटर बना रहे हैं जो पूरे समूह की सब्जी को लेकर मुंबई जैसे बड़े बाजारों तक जायेंगे। अगर यह व्यवस्था सफल होती है तो पूूरे देश के लिए एक मिसाल कायम होगी। फिलहाल महाराष्ट्र के आलावा मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश और कर्णाटक में इस तरह की व्यवस्था है। लेकिन महाराष्ट्र में मुबई जैसे बड़े बाजार में ये ज्यादा असरदार दिख रही है। केंद्र सरकार ने पिछले साल ही फल और सब्जियों को APMC से बहार कर दिया था लेकिन कृषि बाजार राज्यों की सूची में होने की वजह से इसे लागू करने का अधिकार राज्यों पर ही है।