जैव ईंधन के अपने जोखिम!

 

पूरी दुनिया में बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न स्रोतों से ऊर्जा उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है। वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की जब भी बात चलती है तो जैव ईंधन का नाम भी इसमें आता है। शुरूआत में इसे लेकर पूरी दुनिया में उत्साह का माहौल रहा। लेकिन अब इस पर भी सवाल उठ रहे हैं।

जट्रोफा और मक्के के जरिए ईंधन बनाने की तकनीक अपनाने के प्रति हर देश मोहग्रस्त है। भारत में भी जैव ईंधनों के उत्पादन को बढ़ावा देने वाले प्रयासों में तेजी लाने की बात की जा रही है। इसके लिए देश में नई जैव ईंधन नीति बनाई गई है। देश में जैव ईंधन का उत्पादन बढ़ाने की दिशा में काम हो रहा है।

पर जैव ईंधन के मसले पर हालिया दिनों में हुए अध्ययन के नतीजे हैरान करने वाले हैं। इंग्लैंड के पर्यावरण विभाग के वैज्ञानिक शोध के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि जैव ईंधन के उत्पादन से कार्बन उत्सर्जन में कमी आने की संभावना कम ही है।

जैव ईंधन के उत्पादन के मामले में ब्राजील और अमेरिका अगली कतार में हैं। ब्राजील में अमेजन के जंगल को बहुत विशाल कहा जाता है। इसकी सहायता से वहां के पर्यावरण में संतुलन कायम रहा करता है। पर जैव ईंधन के उत्पादन के लिए इन जंगलों का विनाश किया जा रहा है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है।

वहां की सरकार ने यह एलान किया है कि इस साल जंगलों को उजाड़ने की गति को दोगुना कर दिया जाएगा। यहां यह बताना लाजिमी है कि पेड़ों की कटाई से भारी मात्रा में कार्बन का उत्सर्जन होता है, जो पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाता है। कार्बन उत्सर्जन के मामले में वैश्विक स्तर पर ब्राजील का स्थान चैथा है। इसके बावजूद जैव ईंधन के उत्पादन के लिए पेड़ों की कटाई करके कार्बन उत्सर्जन को कम करने के बजाए बढ़ाया ही जा रहा है।

ब्राजील के वुडस होल रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों का मानना है कि जिस तरह अमेजन के जंगलों को उजाड़ने के लिए वहां आग लगाई गई उससे इस क्षेत्र की पारिस्थितिक तंत्र गड़बड़ होगी जिसके परिणामस्वरूप कुछ सालों बाद यह इलाका रेगिस्तान में भी तब्दील हो सकता है। आग लगाए जाने की वजह से वहां के कई ऐसे पौधे विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए हैं जिनका इस्तेमाल औषधियों के उत्पादन में होता था। यूनिवर्सिटी आॅफ मिनेसोटा के वैज्ञानिकों का अध्ययन बताता है कि जिस तरह से वैकल्पिक ईंधन के उत्पाद के लिए जमीन तैयार की जा रही है उससे होने वाले कार्बन उत्सर्जन के नुकसानों की भारपाई करने में तकरीबन चार सौ सालों का वक्त लग जाएगा।

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट ने इस बात को उजागर किया है कि खाद्य पदार्थों की कीमतों में वैश्विक स्तर पर होने वाली बढ़ोतरी में जैव ईंधन के उत्पादन पर जोर दिया जाना भी एक प्रमुख वजह है। आॅक्सफैम ने भी अपने अध्ययन में बताया है कि जैव ईंधन का माॅडल सफल साबित नहीं हुआ है। लेकिन सरकारें फिर भी इसके उत्पादन को बढ़ावा दे रही है।

वैकल्पिक ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले ईथाइल अल्कोहल के उत्पादन को अमेरिका ने दुगना कर दिया है। वहां की सरकार ने एक दशक के अंदर इसे पांच गुना करने का लक्ष्य रखा है। इस मामले में ब्राजील अमेरिका से आगे है। वहां किसी भी पेट्रोल पंप पर सादा गैसोलिन अब मिलता ही नहीं है। ब्राजील की सड़कों पर दौड़ने वाली 45 फीसद कारों में वैकल्पिक ईंधन का इस्तेमाल किया जा रहा है।

इंडोनेशिया में जंगलों को नष्ट करने के लिए आग लगा दिया गया ताकि उस जमीन से बायोडीजल का उत्पादन किया जा सके। अब इससे भविष्य में पर्यावरण को कितना लाभ पहुंचेगा यह बता पाना तो शायद किसी के लिए संभव नहीं है लेकिन इतना तो तय है कि पेड़ों को जलाने से भारी मात्रा में कार्बन का उत्सर्जन हुआ। जिससे पर्यावरण की सेहत और खराब होगी।

मक्के से बनाए जाने वाले इथनाल को तो बहुत पहले से ही पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाला बताया जाता है। पर अब सेलुलोज से बनाए जा रहे इथनाल पर भी सवालिया निशान वैज्ञानिक लगा रहे हैं। ऐसे में स्थिति यह दिखती है कि पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ अनाज उपलब्धता की दृष्टि से भी जैव ईंधन सवालों के घेरे में है। ऐसे में जैव ईंधन के उत्पादन को बढ़ावा देने से पहले यह जरूरी है कि इस मामले में व्यापक अध्ययन कराए जाएं और इसके बाद ही इस बारे में आगे बढ़ने का निर्णय लिया जाए।