करनाल में किसानों के सिर फटे तो दिल्ली में संपादकों की आत्मा मर गयी!
शनिवार को करनाल में किसानों पर बर्बर लाठीचार्ज हुआ तो सोशल मीडिया पर चोट खाये किसानों की तस्वीरें तैरने लगीं। देखते-देखते मामला पूरे देश में फैल गया। पूरे राष्ट्र से एक स्वर में आवाजें आ रही थीं, लेकिन जिनको हम राष्ट्रीय न्यूज चैनल मानते हैं, उन पर यह खबर सिरे से गायब थी। इक्का-दुक्का न्यूज चैनलों को छोड़ दें तो कल ज्यादातर न्यूज चैनल पर यह लीड खबर नहीं थी।
मुझे लगा कि टीवी के एडिटरों की आत्मा मर गयी होगी, लेकिन सुबह राष्ट्रीय दैनिक कहे जाने वाले बड़े अखबारों के संपादकीय पृष्ठ खोले तो लगा कि टीवी के संपादकों के साथ अखबार के संपादक भी दिवंगत हो चुके हैं। दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, हरिभूमि, जनसत्ता, दैनिक भास्कर, अमर उजाला, पायनियर समेत बड़े हिंदी अखबारों की समूची मंडली ने किसानों के फूटे हुए सिर और जनरल डायर की तर्ज पर सिर फोड़ने के आदेश देते एक एसडीएम को ऐसे अनदेखा कर दिया जैसे राजधानी दिल्ली से महज 100 किलोमीटर दूर करनाल जिले में कल किसानों पर प्रशासन ने लाठियां नहीं, फूल बरसाये हों।
हिंदुस्तान टाइम्स, न्यू इंडियन एक्सप्रेस, इंडियन एक्सप्रेस, फाइनेंसियल एक्सप्रेस, द एशियन ऐज, द हिंदू, द इकनॉमिक टाइम्स, द पायनियर जैसे किसी भी बड़े अंग्रेजी अखबार की संपादक मंडली को किसान नजर नहीं आए। बेशक, इनके डिजिटल मंचों पर करनाल की खबर अलग-अलग रूपों में दिखायी दे रही है। कई बार यह समझ नहीं आता कि ऐसी क्या मजबूरी है कि ग्रामीण भारत की इतनी बड़ी खबरों पर ऐसी भयंकर चुप्पी सारे संपादक क्यों साध लेते हैं।
दैनिक ट्रिब्यून ने किसानों पर हुए लाठीचार्ज को मुख्य लीड बनाया है और अंदर भी कई खबरें छापी हैं। वैसे पंजाबी और हिंदी ट्रिब्यून को खेती-बाड़ी ट्रिब्यून कहा जा सकता है क्योंकि दोनों अखबार किसान आंदोलन के शुरूआती दिनों से ही अच्छी कवरेज कर रहे हैं। अंग्रेजी ट्रिब्यून में यह खबर मुख्य लीड नहीं है, पर ठीक-ठाक कवरेज की गयी है। पंजाबी और हिंदी ट्रिब्यून के मुकाबले अंग्रेजी ट्रिब्यून ग्रामीण कवरेज पर अपने दूसरे अंग्रेजी अखबारों जैसा ही रुख़ रखता है।
हिंदी अखबारों की बात करें तो दैनिक भास्कर के हिसार संस्करण ने लीड खबर छापी है। हिंदी पायनियर ने सेकेंड लीड बनाया है। जनसत्ता ने सेकेंड लीड बनाया है, अमर उजाला ने हरियाणा संस्करण में लीड और राष्ट्रीय संस्करण में फ्रंट पेज पर छोटी सी खबर छापी है। राष्ट्रीय सहारा तो खबर छापना ही भूल गया है। हरिभूमि ने सातवें पेज पर खबर छापी है और खबर की शुरुआत में ही किसानों को ‘तांडवकारी’ लिखा है।
दैनिक जागरण ने फ्रंट पेज पर किसानों को हमलावर, बर्बर और आम लोगों को परेशान करने वाला बतलाया है। किसान आंदोलन से रिलेटेड हर खबर में जागरण भाजपा की आइटी सेल का प्रोपेगेंडा ही छापता है। पंजाब केसरी ने चौथे पेज पर खबर छापी है। विज्ञापनों से अटे पड़े नवभारत टाइम्स ने अपने अखबार की जैकेट में मुख्य लीड बनाकर खबर छापी है।
अंग्रेजी अखबारों के बीच सबसे अधिक हिम्मत द टेलीग्राफ ने दिखायी है और सिर फोड़ने के आदेश देने वाले एसडीएम को सीधा जनरल डायर लिखते हुए खबर मुख्य लीड के रूप में छापी है। दि हिंदू के चंडीगढ़ एडिशन ने छठे पेज पर छोटी सी खबर छापी है। 38 पेज के वाले टाइम्स ऑफ इंडिया के सातवें पेज पर छोटी सी दो कॉलम की खबर छपी है, हालांकि वह अखबार का मुख्य पन्ना है। यही हाल हिंदुस्तान टाइम्स का है। अखबार के कई पन्ने विज्ञापनों में खर्च करने के बाद खुलने वाले जैकेट में खबर को प्रमुखता से छापा है।
इंडियन एक्सप्रेस ने यह खबर बतौर सेकेंड लीड छापी है। एशियन ऐज ने फ्रंट पेज पर छोटी सी खबर छापी है। फाइनेंशिएल एक्सप्रेस ने कोई खबर नहीं छापी है। जाहिर है, यह अखबार उनके लिए छपता है जिनके फयदे के लिए कृषि कानून बनाये गये हैं, किसानों के लिए नहीं।
मनदीप पुनिया स्वतंत्र पत्रकार हैं