केंद्र सरकार नहीं कर रही कृषि पर खर्च, राज्य सरकारों पर पड़ रहा बोझ- रिपोर्ट

 

फाउंडेशन ऑफ अग्रेरियन स्टडीज (एफएएस) के अध्ययन में यह दावा किया गया है कि पिछले एक दशक के दौरान कृषि पर भारत का सार्वजनिक खर्च घट गया है. अध्ययन के अनुसार जहां 2010-11 में कृषि पर भारत का सार्वजनिक खर्च 11% हुआ करता था वहीं यह 2019-20 में घटकर यह मात्र 9.5% ही रह गया है.

भारत में कृषि के विकास के लिए जहां इस खर्च को बढ़ाया जाना चाहिए था वहीं केंद्र सरकार ने इसपर होने वाले खर्चे को कम कर दिया है.

अध्ययन में पाया गया कि भारत के कुल ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) में कृषि का हिस्सा 2010 से 2020 की अवधि में 18.2 प्रतिशत से गिरकर 17.8 प्रतिशत हो गया. इस प्रकार देश की अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्व की तुलना में कृषि पर सार्वजनिक खर्च में तेजी से गिरावट आई है.

ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) जिसे हिंदी में सकल मूल्य वर्द्धन कहते हैं, किसी देश की अर्थव्यवस्था में सभी क्षेत्रों, जिसमें प्राथमिक क्षेत्र (कृषि से सम्बंधित), द्वितीय क्षेत्र (विनिर्माण से सम्बंधित) और तृतीयक क्षेत्र (सेवाओं से सम्बंधित) द्वारा किया गया कुल अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन का मौद्रिक मूल्य होता है.

साधारण शब्दों में कहा जाए तो जीवीए से किसी अर्थव्यवस्था में होने वाले कुल निष्पादन और राजस्व का पता चलता है. उदाहरण के लिये अगर कोई कंपनी 20 रुपये में ब्रेड का पैकेट बेचती है और इसे बनाने में 16 रुपये इनपुट और कच्चे माल की लागत आई है तो उस स्थिति में जीवीए का संग्रहण 4 रुपये माना जाएगा.

इस अध्ययन के शोधकर्ताओं ने कहा कि 2011-12 से 2018-19 तक केंद्र और राज्य सरकारों के बजट के विश्लेषण से यह पता चलता है कि कृषि में जीवीए के हिस्से के रूप में कृषि पर सरकारी खर्च में पिछले एक दशक में काफी गिरावट आई है.

अध्ययन में यह भी पाया गया कि जहां कृषि पर कुल खर्च में केंद्र सरकार का हिस्सा कम हुआ है, वहीं राज्य सरकारों द्वारा इस खर्च के हिस्से में वृद्धि हुई है. कहने का मतलब यह है कि केंद्र सरकार ने कृषि पर खर्च करने से खुद के हाथ सीमित कर लिए हैं. जिस कारण राज्य सरकारों को इस खर्च को वहन करना पड़ रहा है.

20 मई को फाउंडेशन ऑफ अग्रेरियन स्टडीज (एफएएस) द्वारा जारी रिपोर्ट, फसल उत्पादन, पशुधन, मत्स्य पालन, वानिकी, सिंचाई और ग्रामीण विकास सहित कृषि क्षेत्र पर सरकार (केंद्र और राज्यों दोनों) के खर्च के आंकड़ों पर आधारित थी.

इस अध्ययन में कृषि से जुड़े खर्च के संबंध में, खर्चों का बड़ा हिस्सा कृषि व्यवस्था और खाद्य भंडारण पर हुआ है, जिसके खर्च में तेज गिरावट देखी गई है.

अध्ययन कहती है कि कृषि में सार्वजनिक खर्च सीधे उत्पादन के समर्थन से, आय समर्थन और ऋण-आधारित सहायता की ओर बढ़ गया है. शोध में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि कैसे भारत का कृषि विकास ऐतिहासिक रूप से सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा किए गए निवेश पर निर्भर था, जो कि अब ऋण-आधारित निवेश पर निर्भर होता जा रहा है.

इन निष्कर्षों के अलावा, अध्ययन में यह भी पाया गया कि जैविक खेती (आर्गेनिक फार्मिंग) की ओर ध्यान देने के बावजूद, वास्तव में, पिछले दशक में पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ कृषि के प्रति सार्वजनिक खर्च का हिस्सा कम और स्थिर ही रहा है.