आंधी-बारिश में यूपी के केला किसानों को भारी नुकसान, मुआवजा न मिलने से बढ़ी परेशानी!
पिछले 3 दिनों में मौसम के बदले मिजाज से उत्तर प्रदेश में गर्मी से झुलसते रोगों को राहत तो मिली, लेकिन केला और आम समेत कई फसलें उगाने वाले किसानों का भारी नुकसान हो गया। आंधी और बारिश के चलते प्रदेश कई जिलों में केले के पेड़़ टूट गए, घार टूट कर नीचे गिर गईं।
मौसम विभाग के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 23 से 24 मई तारीख की सुबह तक करीब सामान्य के 0.5 मिलीमीटर बारिश के मुकाबले 12.2 मिलीमीटर बारिश हुई जो सामान्य से 2324 फीसदी ज्यादा थी।
बाराबंकी जिले के सूरतगंज ब्लॉक दौलतपुर गांव के प्रगतिशील किसान अमरेंद्र सिंह के पास करीब 8 एकड केला है। सोमवार 23 मई 2022 को दिन में आई आंधी और बारिश में उनकी फसल को भारी नुकसान हुआ है। उनकी फसल अगले दो महीने में तैयार होने वाली थी, कुछ पौधों घार (फल) आ गए थे तो कुछ में आने वाले थे।
अमरेंद्र सिंह बताते हैं, “आंधी-तूफान में करीब 1500 पेड़़ पूरी तरह टूट गए हैं। केले की फसल को तेज हवा से काफी नुकसान होता है। हम लोग पेड़ बांधकर रखते हैं लेकिन आंधी में नुकसान हो ही जाता है।”
अमरेंद्र सिंह के पड़ोसी जिले बहराइच में रविवार (22 मई) की रात को भी भीषण आंधी आई थी। बहराइच जिले के किसान विष्णु प्रताप मिश्रा के पास करीब 3 एकड़ केला था, जिसमें करीब 3 लाख रुपए की लागत लग चुकी थी, फसल भी 2 महीने में तैयार होने वाली थी, लेकिन 22 मई की रात आई आंधी में उनका करीब 1 एकड़ खेत बर्बाद हो गया।
बहराइच जिले के फकरपुर ब्लॉक में भिलोरा बासु गांव के रहने वाले विष्णु प्रताप के बेटे अमरेंद्र मिश्रा डाउन टू अर्थ को बताते हैं, “आंधी रात को आई थी सुबह देखा तो कम से कम 3-4 बीघे (5 बीघा-1एकड) में पेड़़ पूरी तरह टूट कर गिर चुके थे।”
यूपी में उद्यान विभाग में बागवानी विभाग में उपनिदेशक वीरेंद्र सिंह बताते हैं, “यूपी में बाराबंकी, अयोध्या, गोंडा, बहराइच, सीतापुर, देवरिया, लखनऊ, लखीमपुरखीरी, कौशांबी, फतेहपुर, प्रयागराज, गोरखपुर और कुशीनगर में केले की बडे़ पैमाने पर नुकसान हुआ है। रविवार को आए तूफान से पूर्वांचल में ज्यादा नुकासन हुआ, जिसमें गोंडा बहराइच भी शामिल हैं जबकि सोमवार को आईं आधी में ज्यादा नुकसान की खबर आ रही है।” सीतापुर में एक हफ्ते में तीसरी बार आंधी आई है।
भारत दुनिया का सबसे ज्यादा केला उत्पादन करने वाला देश है। विश्व के कुल केला उत्पादन में भारत की करीब 25.88 फीसदी हिस्सेदारी है। देश में सबसे ज्यादा केला आंध्र प्रदेश में होता है, 72-73 हजार हेक्टेयर के रकबे के सात उत्तर प्रदेश पांचवें नंबर पर आता है।
यूपी में साल 2020-21 में 73.8 हजार हेक्टेयर में केले की खेती हुई थी। करीब 12-13 महीने की फसल केले को नगदी फसल माना जाता है। केला ऐसा फल है जो पूरे साल बिकता है। केले की एक एकड़ खेती में एक से डेढ़ लाख की औसत लागत आती है, अगर उत्पादन सही हुआ और भाव मिला तो डेढ़ से 2 लाख रुपए प्रति एकड़ तक का मुनाफा हो जाता है। लेकिन आंधी और जलभराव होने पर पेड़ गिर जाने का खतरा रहता है। समस्या ये भी है कि केले समेत कई बागवानी फसलों का बीमा कई जिलों में होता है तो कई जगह इसका फायदा किसानों को नहीं मिलता है।
बाराबंकी के किसान अमरेंद्र सिंह बताते हैं, “साल 2019 में हमारे यहां आए आंधी-तूफान से किसानों का बहुत नुकसान हुआ था, जिसके बाद हम लोगों ने दौड़भाग करके अपने ब्लॉक को बीमा एरिया में शामिल कराया था, इसके बाद हमने 2020 में बीमा कराया तब कोई नुकसान नहीं हुआ तो 2021 में कराया नहीं, क्योंकि प्रति एकड़ करीब 7 हजार रुपए का प्रीमियम देना होता है।
वहीं बहराइच के अमरेंद्र मिश्रा के मुताबिक उनके यहां केले का बीमा कोई करता नहीं है। उन्होंने कहा, “हमारे यहां कच्ची फसलें (केला आदि) का बीमा कोई करता नहीं है। पिता जी ने किसान क्रेडिट कार्ड पर लोन लिया था तो धान-गेहूं का बीमा हुआ था।” वो आगे जोड़ते हैं कि हमारे यहां जब हुदहुद तूफान आया था तो बहुत नुकसान हुआ था, उस समय सर्वे हुआ था, लेकिन कोई मुआवजा नहीं मिला।”
डाउन टू अर्थ ने इस संबंध में यूपी में कार्यरत बीमा कंपनियों के अधिकारियों से भी बात की। बहराइच में कार्यरत बीमा कंपनी एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी ऑफ़ इंडिया (एलटीडी) के जिला संयोजक मुकेश मिश्रा ने बताया कि जिले में केले का बीमा किया जाता है। हमारे हर ब्लॉक में मौसम मापी यंत्र लगे हैं, उसमें हवा, पानी या प्राकृतिक आपदाएं होती है, उसकी रिपोर्ट के आधार पर क्लेम दिया जाता है। इसमें न आवेदन किया जाता है, न सर्वे होता है।”
मुकेश ने आगे बताया, “इन फसलों का बीमा पुर्नगठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना के अंतर्गत होता है, जो हर जिले में फसल के अनुसार अलग-अलग हो सकती है। जैसे बहराइच में केला है, तो कहीं आम, तो कहीं पान भी दायरे में आता है। जबकि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत धान-गेहूं जैसी फसलें आती हैं।
मुकेश के मुताबिक अगर कोई किसान एक हेक्टेयर में केला लगाने के लिए लोन (केसीसी) लेता है उसमें स्केल ऑफ फाइनेंस के आधार पर 5 फीसदी तक प्रीमियम देना होता है। यानि अगर एक लाख रुपए का खर्च आया तो 5 हजार प्रीमियम देना होगा और अगर 100 फीसदी नुकसान हुआ तो पूरा पैसा दिया जाएगा।
वहीं सीतापुर और लखीमपुर जिलों में कार्यरत कंपनी यूनिवर्सन सोम्पो जनरल इंश्योरेंस प्रा. लिमिटेड के जिला कॉर्डिनेडर आशीष अवस्थी के मुताबिक उनके जिलों में भी आंधी बारिश से केले की फसल को नुकसान हुआ है। पिछले साल भी किसानों को नुकसान हुआ था, जिसका मुआवजा दिया गया था। इससाल भी बीमित किसानों को क्लेम दिया जाएगा।
आशीष बताते हैं, “फसल बीमा कंपनियों के हर ब्लॉक में 2-2 वेदर स्टेशन लगे हैं, जिनमें लगे 5 सेंसर के आधार पर क्लेम तय होते हैं। अगर 100 मिलीमीटर बारिश होने चाहिए और 200-300 मिलीमीटर हुई है तो कंपनी बीमा देगी। पिछले साल (2020) में हुए नुकसान के लिए हमारी कंपनी ने लखीमपुर के 55 किसानों को 72 लाख और सीतापुर के 35 किसानों को 45 लाख रुपए का बीमा हाल ही में दिया है। इस आंधी और बारिश जो नुकसान हुआ है उसका भी रिपोर्ट के मुताबिक क्लेम दिया जाएगा।”
सीतापुर में बडे़ पैमाने पर केले की खेती होती है लेकिन यहां पर गिनती के किसानों ने बीमा कराया है। आशीष कहते हैं, “सीतापुर में सिर्फ 71 किसानों ने इस साल बीमा कराया है। हम जिला उद्यान अधिकारी से बात कर रहे हैं कि कैसे किसानों को इस दायरे में लाया जाए। क्योंकि मौसम लगातार प्रतिकूल हो रहा है। कहीं ज्यादा गर्मी कहीं तेज आंधी तो कहीं सूखा पडा रहा है। ऐसे में किसानों के लिए बीमा जरुरी है।”
साभार- डाउन-टू-अर्थ
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