चारे की कमी और महंगाई से पशुपालक परेशान, पशु बेचने को हुए मजबूर!
हरियाणा के गुड़गांव जिले के लोकरा गांव में रहने वाले 39 साल के मंगतराम ने 15 साल पहले ऑटोमोबाइल कंपनी की नौकरी छोड़ने के बाद जब डेरी फार्मिंग के व्यवसाय में कदम रखा, तब उन्हें इसमें ही अपना भविष्य नजर आता था. वह नौकरी की जी हुजूरी से तंग आकर अपना खुद का काम शुरू करना चाहते थे. डेरी फार्मिंग का काम उन्हें मुफीद लगा. इसमें भविष्य को और चमकदार बनाने के लिए वह पशु चिकित्सक भी बन गए. शुरुआत में उन्होंने दो भैंस से दूध का काम शुरू किया और अगले साल भैंस हटाकर वह गीर, सहीवाल, राठी, थारपारकर नस्ल की गायों को ले आए और साल दर साल उनकी संख्या बढ़ाते रहे. लेकिन अब स्थितियां बदल चुकी हैं। 2021 के अंत में उन्हें महसूस होने लगा कि पशुपालन से दूरी बनाने का वक्त आ गया है. चारे, खासकर भूसे की अचानक बढ़ी कीमत ने उन्हें डेरी फार्मिंग को समेटने पर मजबूर कर दिया.
फरवरी-मार्च 2022 तक आते-आते उन्होंने अपनी 39 दुधारू गायों को धीरे-धीरे कम करना शुरू कर दिया और अप्रैल के आखिर तक डेरी फार्म से कुल 28 गाय कम कर दीं। उनकी दुधारू गाय का बाजार भाव 80-90 हजार रुपए है लेकिन अधिकांश गाय उन्होंने किसी को 5 हजार तो किसी को 7 हजार रुपए में निकाल दी। 10 गाय तो राजस्थान के घुमंतू राइका समुदाय को मुफ्त में दे दी। मौजूदा समय में उनके पास 7 वयस्क गाय, 2 बछड़े और 2 बैल ही बचे हैं। पशुपालकों का दर्द साझा करते हुए मंगतराम कहते हैं कि भूसे के आसमान छूते भाव के बीच पशुओं को खिलाना असंभव होता जा रहा है। इस साल उन्होंने 1,500 रुपए प्रति क्विंटल के भाव पर भूसा खरीदा है। पिछले साल उन्हें यही भूसा करीब 425 रुपए प्रति क्विंटल में मिला था।
भूसे के उछाल मारते भाव के साथ लोकरा गांव में दुधारू पशुओं को बेचने का सिलसिला पिछले छह महीने के दौरान तेजी से बढ़ा है। 2021 में गांव में लगभग 450 गाय थीं। मई 2022 तक लगभग 66 प्रतिशत गाय लोगों ने बेच दी हैं। चारे की महंगाई के चलते गाय बेचने को विवश हुए 30 वर्षीय एक अन्य पशुपालक प्रवीण यादव ने हाल में अपने जीवन का सबसे महंगा भूसा खरीदा है। पशुपालन से निराश हो चुके प्रवीण ने डाउन टू अर्थ को बताया कि एक कीले (1 एकड़) का भूसा उन्होंने 30 हजार रुपए में खरीदा है। एक कीले में 20-22 क्विंटल भूसा निकलता है। एक क्विंटल भूसा उन्हें 1,350 से 1,500 रुपए के बीच पड़ा है। इस साल अप्रैल में प्रवीण ने भी मंगतराम की तरह कुल 9 गाय बेच दीं। फिलहान उनके पास 14 गाय हैं।
गाय कम करने से उनका दूध का उत्पादन लगभग आधा रह गया है। मंगतराम के अनुसार, “इस साल मुझे 39 गाय के चारे और फीड पर हर महीने 3.10 लाख रुपए खर्च करने पड़ रहे थे, जबकि 2021 में यह खर्च 1.96 लाख रुपए था। इससे मैं हर महीने लगभग 47 हजार रुपए के फायदे से करीब 67 हजार रुपए के घाटे में आ गया हूं।” दिसंबर 2021 से मार्च 2022 बीच उन्हें 2.5 से 3 लाख रुपए का नुकसान हो चुका है। हरियाणा में भूसे का यह हाल तब है जब विभिन्न अनुमानों में राज्य में मांग से अधिक सूखे चारे की उपलब्धता की बात कही जा रही थी। 13 मार्च 2015 को लोकसभा सदस्य रामदास अठावले द्वारा पूछे एक प्रश्न के जवाब में खुद कृषि राज्यमंत्री संजीव कुमार बालियान ने बताया था कि हरियाणा में 48 प्रतिशत हरे चारे की कमी है लेकिन सूखा चारा आवश्यकता से अधिक है। हालांकि ये अनुमान पुराने हैं और इनसे मौजूदा स्थिति स्पष्ट नहीं होती।
प्रतिबंधों की झड़ी
पशुधन के लिए भूसा सबसे महत्वपूर्ण भोजन है। नीति आयोग के वर्किंग ग्रुप द्वारा 2018 में प्रकाशित रिपोर्ट “डिमांड एंड सप्लाई प्रोजेक्शन टूवार्ड्स 2033: क्रॉप, लाइवस्टॉक, फिशरीज और एग्रीकल्चरण इनपुट्स” में कहा गया है कि पशुधन की 71 प्रतिशत भोजन की जरूरतें फसलों के अवशेष से पूरी होती है, जबकि 23 प्रतिशत भोजन की जरूरतें हरे चारे और 6 प्रतिशत भोजन का स्रोत सांद्रण (कंसन्ट्रेशन फीड) है। चूूंकि हरे चारे की आपूर्ति सीमित समय के लिए होती है और भूसा का भंडारण लंबे समय तक किया जा सकता है, इसलिए पशुपालकों के लिए भूसे का बड़ा महत्व है।
वर्तमान में हरियाणा में यह भूसा संकट इतना गहरा गया कि गोशालाओं के लिए इसे खरीदना मुश्किल हो गया। अप्रैल 2022 में राज्य के गोशाला संचालकों ने धमकी दी कि प्रशासन ने भूसा सस्ता नहीं किया तो वे गोशालाओं में ताला लगाकर पशुओं को खुला छोड़ देंगे। इस धमकी के बाद सर्वाधिक पशुधन वाले फतेहाबाद, हिसार और सिरसा जैसे जिलों ने 21-26 अप्रैल के बीच भूसे को जिले से बाहर ले जाने पर ही पाबंदी लगा दी। साथ ही ईंट भट्टों और कार्डबोर्ड की फैक्टरियों में भी चारे के इस्तेमाल पर रोक लगा दी। 21 अप्रैल के अपने एक आदेश में सिरसा के उपायुक्त अजय सिंह ने कहा कि चारा बाहर भेजने से जिले में इसका संकट खड़ा हो सकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य में बारिश न होने पर स्थिति और बिगड़ सकती है। ऐसे हालात में सूखाग्रस्त क्षेत्रों में अधिक चारे की आवश्यकता होगी। इस स्थिति से बचने के लिए ही प्रतिबंध लगाया गया है। फतेहाबाद में ऐसे आदेश के बाद जिले से बाहर जा रही ट्रैक्टर ट्रॉलियों को सीमा पर रोक दिया और भूसा व्यापारियों से कहा गया कि गोशालाओं को सस्ती दरों पर भूसा उपलब्ध कराएं। इसी तरह रोहतक जिला प्रशासन ने भूसे को जिले से बाहर जाने से रोकने के लिए धारा 144 लगा दी। अप्रैल में राज्य के कुछ अन्य जिलों ने भी चारा बाहर ले जाने पर रोक लगाई। एेसे प्रतिबंध केवल हरियाणा तक सीमित नहीं रहे। मध्य प्रदेश के बैतूल, अशोकनगर, रतलाम, टीकमगढ़, जबलपुर, छतरपुर, मंदसौर, सीधी, पन्ना आदि जिलों ने भूसे के निर्यात पर रोक लगाई। उत्तराखंड में पशुपालन विभाग के सचिव ने 5 मई को सभी जिलाधिकारियों को आदेश जारी कर 15 दिनों के लिए भूसे को राज्य से बाहर ले जाने पर रोक लगा दी।
सचिव ने आदेश में कहा, “हरियाणा व अन्य राज्यों द्वारा भूसे की आपूर्ति पर रोक लगाने के कारण भूसे की दरों में अत्यधिक उछाल आ गया है। भूसे की कमी और ऊंची कीमतों के चलते बड़ी संख्या में पशुओं का त्याग किया जा सकता है, जिससे कृषि उपज को हानि, सड़क हादसे तथा कानून व्यवस्था को चुनौती पैदा होने की आशंका है।”
भूसा दान की कवायद
अप्रैल में उत्तर प्रदेश के पीलीभीत, मैनपुरी और शाहजहांपुर के प्रशासन ने भी आदेश जारी कर भूसे को जिले से बाहर ले जाने पर रोक लगा दी। इसके अलावा राज्य में कुछ अन्य कदम भी उठाए गए जो संकट गहराने के संकेत देते हैं। जैसे फिरोजाबाद के उरांव ब्लॉक के खंड शिक्षा अधिकारी ने सुंकल शिक्षकों के लिए 24 मई 2022 को जारी आदेश में कहा कि वे गोवंश आश्रय स्थल उखरेंड के लिए 200 क्विंटल भूसा दान कराएं।
इसी तरह का आदेश पूर्वांचल के संत कबीर नगर जिले में बेसिक शिक्षा अधिकारी ने अपने खंड शिक्षा अधिकारी को दिया है। डाउन टू अर्थ से बात करते हुए फिरोजाबाद की जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी अंजली अग्रवाल ने कहा, “भूसा दान कराने के लिए कोई आदेश नहीं दिया गया है, सिर्फ सहयोग की अपेक्षा की गई है।” फिरोजाबाद के ही कई ब्लॉक में इससे पहले बिजली विभाग के कर्मचारियों को भी भूसा दान कराने को कहा गया, लेकिन कुछ कर्मचारियों के विरोध के बाद जिलाधिकारी सूर्यपाल गंगवार ने कहा था कि भूसा दान पूर्णरूप से स्वैच्छिक है।
अधिकारी भले ही भूसा दान को स्वैच्छिक बता रहे हों लेकिन जून के पहले सप्ताह में जारी हुए कुछ आदेश सख्ती के संकेत देते हैं। मसलन 1 जून को वाराणसी के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी ने आदेश में कहा, “जिले की गोशालाओं के लिए शासन द्वारा 18,000 क्विंटल भूसा दान का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। लेकिन अभी तक केवल 327 क्विंटल भूसा ही दान द्वारा प्राप्त कराया गया है। इस पर मुख्य सचिव, जिलाधिकारी और मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा नाराजगी जाहिर की गई है।” आदेश में जिले के सभी पशु चिकित्सा अधिकारी, पशुधन प्रसार अधिकारी और वेटरिनरी फार्मासिस्ट को निर्देश दिया गया कि दानदाताओं से संपर्क कर लक्ष्य के अनुसार भूसे की आपूर्ति 4 जून तक सुनिश्चित करें। ऐसा न होने पर उच्च अधिकारियों को अवगत करा दिया जाएगा। आदेश में प्रति पशु चिकित्सा अधिकारी 350 क्विंटल (कुल 16), प्रति पशुधन प्रसार अधिकारी (कुल 30) 300 क्विंटल और प्रति वेटरिनरी फार्मासिस्ट (कुल 15) 230 क्विंटल भूसे का लक्ष्य निर्धारित किया गया।
इसी तरह 2 जून को गाजीपुर के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी ने चेतावनी भरे अंदाज में जिले के सभी उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारियों और पशु चिकित्सा अधिकारियों को निर्देशित किया कि वे 425.5 क्विंटल भूसा दान सुनिश्चित करें और प्रतिदिन की सूचना लिखित में दें। इस कार्य में कोई शिथिलता न बरती जाए। उत्तर प्रदेश पशु चिकित्सा संघ के अध्यक्ष राकेश कुमार डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि भूसा दान के लिए किसी भी विभाग के अधिकारी-कर्मचारी को शामिल नहीं किया जाना चाहिए। न ही लक्ष्य मिलना चाहिए। वह आगे कहते हैं, “पहले भी सालभर भूसे की किल्लत रहती थी, लेकिन इस बार तो सीजन में ही महंगा है। सरकार की कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा भूसा दान के जरिए मिल जाए, लेकिन यह ऊंट के मुंह में जीरे जैसा है।
गोशालाओं में 9 लाख से ज्यादा पशु हैं। इनके पोषण के लिए सालभर काफी भूसा, हरा चारा चाहिए।” उत्तर प्रदेश की गोशालाओं को प्रति गोवंश प्रतिदिन 30 रुपए के हिसाब से महीने में 900 रुपए का भुगतान किया जाता है। यह राशि चारे की बढ़ी कीमत को देखते नाकाफी साबित हो रही है। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के एक ग्राम सचिव ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया, “एक वयस्क गाय महीने में लगभग 200 किलो भूसा खाती है। भूसे के मौजूदा भाव 1,200 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से देखें तो एक गाय हर महीने लगभग 2,400 रुपए का भूसा खा रही है, जबकि शासन द्वारा भूसे के खर्च की भरपाई आधी से भी कम है।”
दूसरे राज्यों पर असर
भूसे के निर्यात पर प्रतिबंध और आनन-फानन में उठाए गए कदम बताते हैं कि भूसा संकट हिंदी पट्टी के कई राज्यों में गहरा चुका है (देखें, राष्ट्रीय समस्या, पेज 31)। निर्यात प्रतिबंधों से भूसे की आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो गई है जिससे दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे उन राज्यों में भी संकट बढ़ गया जहां भूसे का पर्याप्त उत्पादन नहीं होता। दिल्ली के नजफगढ़ क्षेत्र में गोयला और नंगली डेरी क्षेत्र में अधिकांश पशुपालक हरियाणा और पंजाब से आने वाले भूसे पर निर्भर हैं। लेकिन पिछले कुछ महीने से आवक में 20-25 प्रतिशत की कमी हुई है, नतीजतन भूसे का थोक भाव 1,200-1,250 रुपए प्रति क्विंटल का भाव छू रहा है। दिल्ली की तरह राजस्थान भी भूसे की आपूर्ति के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर है।
यहां के लोग चारे के अकाल को बहुत भयावह मानते हैं क्योंकि उनकी रोजी-रोटी का बहुत बड़ा हिस्सा पशुपालन पर निर्भर है। इस साल “चारे के अकाल” से पश्चिमी राजस्थान के सर्वाधिक पशुधन वाले दस जिले ज्यादा प्रभावित हैं। इन जिलों में बीकानेर, बाड़मेर, जोधपुर, जैसलमेर, चुरू, नागौर, हनुमानगढ़, सीकर, झुंझुनू और जालोर शामिल हैं। सीकर के पशुपालक राकेश बिरडा बताते हैं कि चारा 1,200 से लेकर 1,500 रुपए क्विंटल तक हो गया है। अब तो ऐसी स्थिति हो गई है कि वे आपस में एक-दूसरे से चारा उधार लेकर भी काम नहीं चला सकते। पशुपालक कम दूध देने वाले पशुओं और खाद के लिए पालने वाले पशुओं को आवारा पशुओं के रूप में छोड़ देने को विवश हैं। राजस्थान में कुछ घुमंतू समुदाय गांव से अन्य पशुपालकों के पशुओं को 500 रुपए प्रति पशु प्रति माह के हिसाब से पंजाब के इलाकों में चराने के लिए ले जाते थे। इस बार वे 1,000 रुपए प्रति पशु भी ले जाने को तैयार नहीं है।
इस वक्त ज्यादातर पशुपालकों को एक साथ तीन चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। पहला, खाद्य महंगाई ने उन पर बोझ बढ़ा दिया है, दूसरा लू व बेमौसम बारिश जैसी घटनाओं ने फसलों को नुकसान पहुंचाकर उनकी आय प्रभावित की है और तीसरा, चारे की महंगाई ने पशुधन से अतिरिक्त आय की संभावनाएं धूमिल कर दी हैं।
साभार-भगीरथ श्रीवास, डाउन-टू-अर्थ