अंतिम पंघाल का गुस्सा जायज, लेकिन स्पोर्ट्समैनशिप मिसिंग !
एशियन गेम्स खेलों की ट्रायल में पहलवानों के असल सींग तो सरकार ने फंसवाए हैं. आंदोलित पहलवानों ने सड़क पर अपना आंदोलन खत्म करते हुए सरकार से यह शर्त रखी थी कि उन्हें एक महीने का समय दिया जाए ताकि वे भी तैयारी कर ट्रायल दे सकें. सरकार ने यह आश्वासन दिया था कि एशियन गेम्स और वर्ल्ड चैंपियनशिप के ट्रायल 10-15 अगस्त के बीच होंगे. लेकिन 15 जुलाई के आसपास एशियन गेम्श में नाम भेजने वाली इंडियन ओलिंपिक कमेटी (IOA) के मेम्बरान जिनमें पीटी ऊषा एक हैं, उन्होंने बताया कि उन्हें 23 जुलाई तक नाम भेजने होंगे, वह आखिरी तारीख है. इसके बाद ने 22-23 जुलाई को कुश्ती के ट्रायल रखे गए ताकि टीम भेजी जा सके, लेकिन विनेश और बजरंग का नाम सुरक्षित कर लिया गया और उन्हें ट्रायल की छूट दी गई.
ट्रायल की छूट के बाद अंतिम पंघाल के वीडियो आने शुरू हो गए. योगेश्वर दत्त ने भी मोर्चा खोल दिया. अंतिम का हक बनता है कि वह ट्रायल की मांग करे.
“मेरी पर्सनल पॉजीशन है कि ट्रायल्स होने चाहिए.”
लेकिन क्या आंदोलित पहलावनों को एक महीने का वक्त नहीं मिलना चाहिए. वे किस लिए सड़कों पर बैठे थे. जब वे सड़कों पर बैठे थे तो देश के कई पहलवान रैंकिंग सीरीज और एशियन चैम्पियनशिप खेलने गए. आंदोलित पहलवानों ने उन पहलवानों को फोन कर कहा कि आपके पास एक अंतराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म है. वहां ‘we support wrestlers’ की टीशर्ट एक बार पहन लो. लेकिन किसी ने नहीं पहनी. खैर, उनकी अपनी इच्छा रही होगी.
बजरंग और विनेश में से किसको आपने पिछले 4-5 सालों में ट्रायलों में हारते देखा है. सभी को पता है कि अभी वे नंबर एक हैं भारत में. अंतिम कह रही है कि विनेश के साथ हुई पिछली कुश्ती में उसके साथ चिटिंग हो गई थी. अंतिम और विनेश की वर्ल्ड चैम्पियनशिप की ट्रायल्स की कुश्ती दस महीने पहले हुई थी, उसकी वीडियो यूट्यूब पर है. विनेश ने 7-0 से अंतिम को हराया था. वह देखनी चाहिए. अंतिम कह रही है कि उसका हक है. मेरे हिसाब से हक उसका है जो तगड़ा है और ट्रायल होने चाहिए.
दूसरी बात यह है कि वर्ल्ड चैंपियनशिप की ट्रायल्स अगस्त के पहले पखवाड़े में होनी हैं. जिन आंदोलित पहलवानों को एशियन गेम्स में छूट दी गई है उनको वर्ल्ड चैंपियनशिप की ट्रायल्स तो देनी पड़ेंगी. उसमें उन्हें हराकर दिखा देना चाहिए कि वे तगड़े हैं और उनका हक बनता है.
दरअसल दोनों पक्ष देखने चाहिए. मसाले और स्वाद के लिए वे लोग लगातार लिख रहे हैं जिन्हें कुश्ती की थोड़ी भी समझ नहीं है. अंतिम पंघाल का पक्ष भी मजबूत है और विनेश का पक्ष भी मजबूत है. जब विनेश महिला पहलवानों की लड़ाई लड़ रही थी, तब अंतिम प्रैक्टिस कर रही थी.
अगर विनेश का बड़ा दिल होता और अपना और अधिक नुकसान झेल पाने की हिम्मत बची होती तो उसे एशियन गेम्स छोड़ देने चाहिए थे. और वर्ल्ड चैंपियनशिप पर ध्यान देना चाहिए था. और अगर अंतिम पंघाल में थोड़ी सी स्पोर्ट्समैनशिप बची होती तो वह हक के दावे करने की बजाय कम से कम एक महीना तो विनेश को प्रैक्टिस करने का समय देती और उसे हरा लेती. यह कैसी दौड़ हुई कि एक छह महीने सड़क पर आपके लिए आंसू बहाती रहे, दूसरी अपनी प्रैक्टिस करे. आपने छह महीने लिए हैं तो एक महीना तो विनेश का भी बनता है.
मुझे लगता है कि विनेश का कैरियर 2025 तक बचा हुआ है. अभी उसको हराने वाली महिला पहलवान भारत में नहीं है. अंतिम राइजिंग स्टार है. निश्चित ही अंतिम सारे रिकार्ड ध्वस्त कर भारत की बहुत महत्वपूर्ण पहलवान साबित होगी.
दोनों को उन लोगों से बचना चाहिए जो लड़ाई डलवाकर स्वाद लेते हैं. दोनों छोटी किसानी परिवारों से आती हैं. दोनों के बीच की लड़ाई की जड़ें सरकार, धनाड्य चौधरी, चस्के लेने वाले लोग, सरकारी टटूओं, स्पोर्ट्समैनशिप की कमी और व्यक्तिगत स्वार्थ पर टिकी हुई है.
समाज का सबसे वाहियात सेक्शन जो दो महीने पहले महिला पहलवानों को गाली दे रहा था, अब वह उन्हें न्याय दिलवाने निकला है.
विरोधाभासों के बीच जिंदगी के इस मोड़ पर निराश हूं.
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