माटी कला के सर्वश्रेष्ठ कलाकार का तमगा मिला, लेकिन सिर पर पक्की छत नहीं!

 

दिल्ली से महज 70 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में किरठल गांव निवासी मुकेश प्रजापति को पीएम के ‘गारंटी कार्ड’ का इंतजार है. वर्ष 2020 में यूपी सरकार ने लखनऊ बुलाकर मुकेश को कुम्हारी कला में सूबे में प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया था. चालीस हजार रुपये, प्रशस्ति पत्र और स्मृति चिह्न भी दिया. लेकिन अब मुकेश किराये की जमीन पर बर्तन बनाते हैं। झोपड़ी में रहते हैं. चूल्हे पर लकड़ी और उपलों के ईंधन से खाना बनाते हैं. उन्हें इस बात का मलाल है कि सरकार का कोई अफसर या नेता उनकी सुध लेने नहीं आया.

मुकेश की कहानी पीएम आवास योजना, उज्ज्वला योजना,आयुष्मान भारत जैसी तमाम सरकारी योजनाओं पर सवालिया निशान है. प्रदेश सरकार ने जब 2020 में मुकेश को पुरस्कार दिया, तब उनके पास एक छोटा सा पुश्तैनी घर था. मुकेश बताते हैं कि पत्नी गंभीर बीमार हो गईं.आयुष्मान कार्ड नहीं था. इलाज में डेढ़ लाख का खर्च आया. घर बेच दिया, कर्ज लिया और डॉक्टर की फीस चुकाई. गांव के बाहरी छोर पर तीस हजार रुपये से ज्यादा में दो बीघा जमीन किराये पर ली। इसी में मिट्टी के बर्तन, गमले आदि बनाते हैं. सवाल है कि माटी कला और ग्रामीण उद्योग को बढ़ावा देने वाली तमाम योजनाएं मुकेश जैसे नामी शिल्पकार तक भी क्यों नहीं पहुंच पायीं.

किराये की जमीन में झोपड़ी ही मुकेश का घर है. कोने में झोपड़ी डाल रखी है.उज्ज्वला योजना में रसोई गैस सिलिंडर और चूल्हा तो मिला पर इतनी कमाई नहीं कि महंगी गैस भरवा सकें. इसलिए झोपड़ी में मिट्टी का चूल्हा भी बना रखा है. इसमें सूखी लकड़ियों और उपलों से खाना बनाते हैं. पीएम आवास योजना है पर मुकेश के पास घर नहीं है. कई बार अफसरों के चक्कर लगाए. नेताओं के दरबार में गए पर कुछ नहीं मिला। मुकेश चाहते हैं कि किसी भी तरह एक पक्का घर बन जाए ताकि बरसात, आंधी और सर्दी में परिवार ठीक से रह सके.

तमगा रखने के लिए झोपड़ी में बनवाई शीशे की अलमारी
किरठल गांव में मुकेश को सब जानते हैं. जब हमने सरकार से मिला पुरस्कार दिखाने को कहा तो मुकेश झोपड़ी में रखी एक शीशे की अलमारी से निकालने लगे. इतना अहम तमगा झोपड़ी में क्यों रखा है, जब ये सवाल पूछा तो मुकेश सिसिलेवार अपने संघर्ष की कहानी बताने लगे.

मुकेश नहीं चाहते, बेटे उनकी तरह बर्तन बनाएं

मुकेश के दो बेटे और एक बेटी है. बड़ा बेटा मोहित बीए सेकेंड ईयर में है। रोहित ने 12वीं पास कर आईटीआई में प्रवेश ले लिया है. वो इलेक्ट्रीशियन बनना चाहता है. बेटी सलोनी 12वीं क्लास में है. रोहित और मोहित कहते हैं कि उनके पिता हुनरमंद तो हैं पर इस काम से गुजारा नहीं होता. इसलिए वो कुछ अलग ही काम करना चाहते हैं. हालांकि पढ़ाई से जो समय बचता है उसमें वे पिता का हाथ बंटाते हैं. मुकेश भी नहीं चाहते हैं कि उनके बेटे बर्तन बनाने के काम में ही जिंदगी लगाएं. वो कहते हैं कि चाहे जो भी करें पर ऐसा हो जाए कि उनको मेरी तरह झोपड़ी में रहना पड़े.

साभार: असली भारत