महामारी के दौरान स्कूलों पर लगे ताले के कारण गांवों में 37 फीसदी बच्चे पढ़ाई से हुए दूर
महामारी के कारण स्कूल बंद होने से वंचित वर्गों से आने वाले स्कूली बच्चों के शिक्षा के अधिकार और सीखने के स्तर पर भारी असर पड़ा है. अगस्त 2021 (पहले दौर) के महीने में 15 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में किए गए 1,362 घरों के 1,362 स्कूली बच्चों (कक्षा 1-8 में नामांकित) को कवर करने वाला एक सर्वेक्षण, पिछले डेढ़ साल से स्कूलों के बंद रहने के विनाशकारी परिणामों का खुलासा करता है.
सर्वे में शामिल ग्रामीण क्षेत्रों के केवल 8 प्रतिशत स्कूली बच्चे नियमित रूप से ऑनलाइन अध्ययन करते पाए जाते हैं, जबकि सर्वेक्षण से पता चलता है कि 37 प्रतिशत बिल्कुल भी नहीं पढ़ रहे हैं, और 48 प्रतिशत कुछ शब्दों से अधिक पढ़ने में असमर्थ हैं. सर्वेक्षण में पता चला है कि ग्रामीण क्षेत्रों के लगभग 71 प्रतिशत स्कूली बच्चों का पिछले 3 महीनों में कोई परीक्षण या परीक्षा नहीं हुई है. ग्रामीण क्षेत्रों में मोटे तौर पर 58 प्रतिशत स्कूली बच्चे पिछले 30 दिनों में अपने शिक्षक (शिक्षकों) से नहीं मिल सके हैं.
ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लगभग तीन-चौथाई माता-पिता को लगता है कि स्कूल बंद होने के दौरान उनके बच्चे की पढ़ने की क्षमता में गिरावट आई है. ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश माता-पिता (लगभग 97 प्रतिशत) चाहते हैं कि स्कूल जल्द से जल्द फिर से खुल जाएं.
ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति के विपरीत, शहरी क्षेत्रों में, केवल 24 प्रतिशत बच्चे नियमित रूप से ऑनलाइन पढ़ रहे हैं, 19 प्रतिशत बिल्कुल भी नहीं पढ़ पा रहे हैं, और 42 प्रतिशत कुछ शब्दों से अधिक नहीं पढ़ पा रहे हैं. शहरी इलाकों में करीब 52 फीसदी स्कूली बच्चों का पिछले 3 महीने में कोई टेस्ट या परीक्षा नहीं हुई. पिछले 30 दिनों में लगभग 51 प्रतिशत शहरी स्कूली बच्चे अपने शिक्षकों से नहीं मिल सके हैं. कृपया तालिका देखें.
शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लगभग तीन-चौथाई माता-पिता (76 प्रतिशत) को लगता है कि स्कूल बंद होने के दौरान उनके बच्चे की पढ़ने की क्षमता में गिरावट आई है. शहरी क्षेत्रों में लगभग 90 प्रतिशत माता-पिता चाहते हैं कि स्कूल जल्द से जल्द फिर से खुल जाएं.
लॉक्ड आउट: इमरजेंसी रिपोर्ट ऑन स्कूल एजुकेशन नामक रिपोर्ट इंगित करती है कि माता-पिता स्कूलों के फिर से खुलने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं क्योंकि उनको लगता है कि एकमात्र स्कूली शिक्षा ही उनके बच्चों के जीवन को उनसे बेहतर बना सकती है. गौरतलब है कि देश में प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूल पूरे 17 महीने यानी 500 दिनों से ज्यादा के लिए बंद कर दिए गए हैं.
स्कूल सर्वेक्षण में शामिल राज्य/केंद्र शासित प्रदेश हैं: 15 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश: असम, बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल।.
लॉक्ड आउट: इमरजेंसी रिपोर्ट ऑन स्कूल एजुकेशन नामक रिपोर्ट, समन्वय टीम (निराली बाखला, जीन द्रेज, विपुल पैकरा, रीतिका खेड़ा) और उनके साथ जुड़े लगभग 100 स्वयंसेवकों की उदार मदद से तैयार की गई है. स्कूली बच्चों की ऑनलाइन और ऑफलाइन शिक्षा (स्कूल) सर्वेक्षण अपेक्षाकृत वंचित समुदायों और बस्तियों पर केंद्रित है, जहां बच्चे आमतौर पर सरकारी स्कूलों में जाते हैं.
आनलाइन शिक्षा के कमजोर पहलू
शहरों में 23 फीसदी अभिभावक मानते हैं कि उनके बच्चों को ऑनलाइन पर्याप्त शिक्षा मिल रही है तो ग्रामीण भारत में ऐसा मानने वालों की संख्या महज 8 फीसदी है। गांवों के 75 फीसदी मानते हैं कि लॉकडाउन के दौरान उनके बच्चों की पढ़ने की क्षमता घट गई है वहीं ग्रामीण भारत के 97 फीसदी अभिभावक मानते हैं कि स्कूल दोबारा खुलने चाहिए। इस सर्वे का पहला राउंड अगस्त 2021 में 1362 घरों के कक्षा एक से 8 तक के 1362 बच्चों में किया गया। देश में प्राइमरी स्कूल पिछले 500 से ज्यादा दिन यानी करीब 17 महीने से बंद हैं। इस दौरान बहुत कम सुविधा संपन्न बच्चे घर के सुखद और सुरक्षित माहौल में ऑनलाइन पढ़ाई कर पाए लेकिन स्कूल में तालाबंदी के चलते बाकी बच्चों के पास कोई खास चारा नहीं था। कुछ ने ऑनलाइन और ऑफलाइन पढ़ाई के लिए संघर्ष किया तो कुछ ने पढ़ाई से हार मान ली और कुछ काम धंधा न होने की वजह से गांव मोहल्ले में घूमते रहे। वह न केवल पढ़ने के अधिकार बल्कि स्कूल जाने से मिलने वाले दूसरे फायदों, सुरक्षित माहौल, बढ़िया पोषण, स्वस्थ सामाजिक जीवन से वंचित हो गए। इस लॉकडाउन के अनर्थकारी नतीजों को समझने का वक्त आ गया है। इस आपात रिपोर्ट में स्कूल चिल्ड्रेन ऑनलाइन एंड ऑफलाइन लर्निंग (स्कूल) सर्वे के नतीजों को पेश किया गया है।
इस सर्वे के नतीजे खासकर ग्रामीण इलाकों के लिए निराशाजनक हैं। ग्रामीण इलाकों में केवल 28 फीसदी बच्चे नियमित पढ़ाई कर रहे हैं। 37 फीसदी बिल्कुल नहीं पढ़ रहे हैं। इस सर्वे को वालंटियर ने अंजाम दिया है जो यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट हैं। 1400 परिवारों में से 60 फीसदी ग्रामीण भारत में रहते हैं और 60 फीसदी दलित और अनुसूचित जनजाति से हैं। इस रिपोर्ट में ग्रामीण और शहरी स्कूलों के आंकड़ों के साथ रखा गया है जबकि विस्तृत रिपोर्ट अभी तैयार हो रही है।
ऑनलाइन शिक्षा का अफसाना, स्कूल सर्वे ये बताया है कि ऑनलाइन शिक्षा की पहुंच बहुत सीमित है। ग्रामीण इलाकों में महज 8 फीसदी ऑनलाइन पढाई कर रहे थे इसकी वजह ये है कि ग्रामीण भारत में आधे परिवारों (सैंपल में शामिल) के पास स्मार्टफोन नहीं है। जिन परिवारों में स्मार्टफोन हैं भी उनमें नियमित रूप से पढ़ाई करने वालों का शहर में अनुपात 31 तो गांव में 15 फीसदी है। स्मार्टफोन अक्सर कामकाजी बड़े लोगों के पास होते हैं वो अक्सर छोटे बच्चों को नहीं मिल पाते हैं। सर्वे में पता चलता है कि महज 9 फीसदी के अपना मोबाइल था। ग्रामीण इलाकों में यह भी देखा गया है कि जो बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं उन्हें स्कूल से जो ऑनलाइन सामग्री भेजी जा रही है उसकी समझ नहीं है और बच्चों को भी ऑनलाइन पढ़ाई की समझ नहीं रही है या वह ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहे।
आन लाइन पढ़ाई के कई मुश्किलें
आन लाइन पढ़ाई के जरूरी परिवार के पास सुविधाएं | शहरी | ग्रामीण |
जिनके पास स्मार्ट फोन है | 77 | 51 |
जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं है | 24 | 8 |
बच्चो के पढ़ाई में आन लाइन के पढ़ाई स्मार्ट संसाधन की कमी | ||
बच्चों खुद के पास स्मार्ट फोन नही है | 30 | 36 |
खराब नेटवर्क | 9 | 9 |
डाटा के लिए पैसे नहीं है | 9 | 6 |
बच्चों को आनलाइन पढ़ाई की समझ नहीं आती | 12 | 10 |
स्कूल आनलाइन सामग्री नहीं भेजता | 14 | 43 |
अन्य | 15 | 10 |
ऑफलाइन चिल्ड्रेन ( जो बच्चे सर्वे के वक्त ऑफलाइन पढ़ाई कर रहे थे) इसके बहुत कम सबूत है कि वह नियमित अध्ययन कर रहे थे। उनमें से ज्यादातर या तो बिल्कुल नहीं पढ़ रहे या फिर कभी कभार घर पर खुद पढ़ लेते हैं। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में तालेबंदी के दौरान ऑफलाइन पढ़ाई के लिए कुछ नहीं किया गया। कर्नाटक, महाराष्ट्र पंजाब और महाराष्ट्र में कुछ प्रयास जरूर किए गए। मिसाल के तौर पर ऑफलाइन चिल्ड्रन को वर्कशीट दिए गए और या फिर शिक्षकों को समय-समय पर जाकर उनसे मशविरा करने के निर्देश दिए गए। ऑफलाइन पढ़ाई के मुख्य माध्यम (मुख्यत: शहरी इलाकों में) प्राइवेट ट्यूशन थे, और ज्यादातर मामलों में परिवार के किसी सदस्य या सदस्य के बगैर पढ़ाई चल रही थी। लेकिन घर पर पढ़ाई नियमित नहीं थी।
गऱीब बच्चे अधिक प्रभावित हुए
इस सर्वे के 30 दिन पहले तक ज्यादातर बच्चों (शहरी इलाकों में 51 फीसदी और ग्रामीण इलाकों में 58 फीसदी) की अपने शिक्षकों से भेंट नहीं हुई थी। कुछ अभिभावकों ने बताया कि पिछले 3 महीने के दौरान कोई शिक्षक घर नहीं आया या पढ़ाई में कोई मदद नहीं की। गाहे बगाहे उनमें से कुछ एक को व्हाट्सएप के जरिए यूट्यूब लिंक फॉरवर्ड करने जैसे सांकेतिक ऑनलाइन इंटरैक्शन को छोड़कर ज्यादातर शिक्षक अपने छात्रों से बेखबर लगते है।
प्राइवेट स्कूलों से पलायन
मार्च 2020 में जब लॉकडाउन शुरू हुआ था 20 फीसदी स्कूल चिल्ड्रन ने किसी प्राइवेट स्कूल में एडमिशन ले रखा था। इस दौरान कई स्कूलों ने ऑनलाइन शिक्षा अपनाकर उबरने का प्रयास किया और फीस लेना जारी रखा। गरीब परिवार आमदनी कम होने या फिर ऑनलाइन शिक्षा के कारगर न होने की वजह से अक्सर फीस और दूसरे खर्च (स्मार्ट मोबाइल और रिचार्ज) के लिए आनाकानी करते रहे। शायद मुख्यत: इसी वजह से कई बच्चों ने सरकारी स्कूलों में दाखिला ले लिया। सर्वे में शामिल 26 फीसदी बच्चे पहले प्राइवेट में शामिल थे फिर सरकारी स्कूलों में पढ़ने लगे। स्कूल खोलने की मांग जिस वक्त सर्वे किया गया था उस दौरान भी ज्यादातर अभिभावक चाहते थे कि स्कूल खुल जाए। सर्वे में जिन अभिभावकों से बात की गई,उनमें से ज्यादातर चाहते से जल्द से जल्द स्कूल खुल जाए। शहरी इलाकों में बहुत कम (10 फीसदी) अभिभावकों को इस बारे में कुछ झिझक थी। यहां तक कि कुछ अभिभावकों ने स्कूल खोलने का विरोध भी किया। लेकिन ग्रामीण इलाकों में 97 फीसदी अभिभावक चाहते थे कि जल्द से जल्द स्कूल खुल जाएं।
References
लॉक्ड आउट: इमरजेंसी रिपोर्ट ऑन स्कूल एजुकेशन नामक रिपोर्ट अंग्रेजी में रिपोर्ट तक पहुंचने के लिए कृपया यहां क्लिक करें. हिंदी में रिपोर्ट देखने के लिए कृपया यहां क्लिक करें. सर्वेक्षण के बारे में अधिक जानने के लिए कृपया रोड स्कॉलरज़ (https://twitter.com/roadscholarz) की ट्विटर आईडी का अनुसरण करें.