उत्तराखंड के कई जिलों में संक्रमण दर 40% से ज्यादा, कुंभ के आंकड़े संदेहास्पद
कोरोना की दूसरी लहर और बदइंतजामी लोगों पर कहर बनकर टूट रही है। इस बीच, उत्तराखंड से कई चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं, जिनकी तरफ तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है। राज्य के कई जिलों में संक्रमण की दर 40 फीसदी से ऊपर पहुंच गई है, इसके बावजूद बहुत कम टेस्ट कराये जा रहे हैं। जबकि दूसरी तरफ कुंभ मेले के दौरान हरिद्वार जिले में हो रही कोरोना जांच की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े हो गये हैं।
उत्तराखंड की आबादी भारत की आबादी का एक फीसदी भी नहीं है, इसलिए राष्ट्रीय आंकड़ों के समंदर में ऐसे छोटे राज्यों के आंकड़े गुम हो जाते हैं। लेकिन जिला स्तर पर देखें तो वास्तविकता का अंदाजा लगाया जा सकता है। कोराना की दूसरी लहर का मुकाबला करने के लिए जिलों से आ रहे इन रुझानों को गंभीरता से लेने की जरूरत है।
करीब 2.65 लाख की आबादी वाले उत्तराखंड के चंपावत जिले में 23 अप्रैल को 301 सैंपलों की जांच हुई थी, जिनमें से 187 सैंपल यानी 62 फीसदी कोविड-19 पॉजिटिव निकले। मतलब, जितने लोगों की जांच हुई उनमें से आधे से ज्यादा कोरोना संक्रमित थे। अगले दिन 24 अप्रैल को चंपाावत में 657 सैंपलों की जांच हुई, जिनमें से 321 सैंपल यानी लगभग 49 फीसदी पॉजिटिव पाए गये। इतनी अधिक संक्रमण दर के बावजूद 25 अप्रैल को चंपावत में केवल 509 टेस्ट हुए। इनमें भी लगभग 25 फीसदी संक्रमित निकले।
कमोबेश यही हाल उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले का है। टिहरी में 24 अप्रैल को 388 सैंपलों की जांच हुई तो 190 सैंपल यानी लगभग 50 फीसदी पॉजिटिव निकले थे। इसी दिन उत्तरकाशी और नैनीताल जिलों में संक्रमण की दर क्रमश: 44 फीसदी और 33 फीसदी थी। 24 अप्रैल को उत्तराखंड के 13 में 7 जिलों में संक्रमण दर 20 फीसदी से ज्यादा रही, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) 5 फीसदी से ज्यादा संक्रमण दर को चिंताजनक मानता है। भारत में अब तक संक्रमण की दर 6.1 फीसदी और उत्तराखंड में 4.25 फीसदी रही है। इस लिहाज से ही उत्तराखंड के कई जिलों की स्थिति बेहद चिंताजनक है।
कोविड-19 से जुड़े आंकड़ों को ट्रैक कर रहे एसडीसी फाउंडेशन के प्रमुख अनूप नौटियाल उत्तराखंड के कई जिलों में बढ़ते संक्रमण और कम टेस्टिंग का मुद्दा लगातार उठा रहे हैं। उनका कहना है कि पिछले पांच दिनों में उत्तराखंड के 12 जिलों में संक्रमण दर डब्ल्यूएचओ की सामान्य सीमा (थ्रेसहोल्ड) से 4-5 गुना ज्यादा रही है, फिर भी 1-23 अप्रैल के बीच नैनीताल, उधमसिंह नगर, अल्मोडा और पिथौरागढ़ में एक लाख आबादी पर रोजाना 100 टेस्ट भी नहीं हुए हैं। नैनीताल और उधमसिंह नगर जिले में तो एक लाख आबादी पर उत्तरकाशी और पौड़ी गढ़वाल से भी कम टेस्ट हुए हैं।
इस बीच, नैनीताल जिला एक बड़ी चुनौती बन गया है। नैनीताल जिले में 21 से 23 अप्रैल के बीच संक्रमण दर 32% रही है। इसके बावजूद 23 अप्रैल को जिले में 11+ लाख आबादी पर सिर्फ 764 टेस्ट हुए थे। हालांकि, यह मुद्दा उठने के बाद गत दो दिनों में नैनीताल जिले में टेस्ट की तादाद कुछ बढ़ी है। राज्य के टिहरी और पौड़ी गढ़वाल जिलों की स्थिति भी चिंताजनक है।
बढ़ते संक्रमण के बावजूद कोरोना जांच कम होने की समस्या उत्तराखंड के कई जिलों में है। 24 अप्रैल को 49 फीसदी संक्रमण दर वाले टिहरी गढ़वाल जिले में मात्र 388 सैंपलों की जांच हुई थी। यानी दस हजार लोगों पर सिर्फ 6 टेस्ट हुए। इसी दिन पिथौरागढ़ में 10 हजार लोगों पर 9 और अल्मोड़ा में 12 टेस्ट हुए। ऐसे समय जब कोराना को लेकर पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ, उत्तराखंड के कई जिलों में संक्रमण की अत्यधिक दर और इतने कम टेस्ट महामारी से निपटने की कोशिशों पर सवालिया निशान लगाते हैं। जांच कम होने का सीधा मतलब है कि बहुत से संक्रमित लोगों की जानकारी सरकारी आंकड़ों में दर्ज नहीं हो पा रही होगी। इससे संक्रमण और तेजी से फैलने का खतरा है।
कुंभ मेले के मद्देनजर उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश के बाद हरिद्वार में उत्तराखंड के बाकी जिलों के मुकाबले ज्यादा टेस्ट हो रहे हैं। लेकिन हरिद्वार में संक्रमण की दर अविश्वसनीय रूप से कम है। हरिद्वार जिले की आबादी लगभग 23 लाख है। एक अप्रैल से शुरू हुए कुंभ में 12 और 14 अप्रैल को शाही स्नान में लगभग 50 लाख लोगों के हरिद्वार पहुंचने का अनुमान था। एक से 23 अप्रैल के बीच हरिद्वार जिले में कोरोना के लगभग 4.68 लाख टेस्ट हुए थे, जिनमें संक्रमण दर राष्ट्रीय और राज्य औसत से बहुत कम केवल 2.15 फीसदी पायी गई। जबकि इस दौरान उत्तराखंड के बाकी 12 जिलों में संक्रमण की दर हरिद्वार से पांच गुना ज्यादा 10.90 फीसदी थी। हरिद्वार और उत्तराखंड के बाकी जिलों में संक्रमण दर के बीच भारी अंतर कुंभ के दौरान हुए टेस्ट पर संदेह पैदा करता है।
हरिद्वार के आंकड़ों पर सवाल उठाते हुए अनूप नौटियाल इनके थर्ड पार्टी ऑडिट की मांग करते हैं। आरटीआई कार्यकर्ता साकेत गोखले ने सूचना के अधिकार के तहत कुंभ मेले के दौरान हुई कोराना जांच की जानकारियां जुटाई हैं। आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार, 1 अप्रैल से 14 अप्रैल के बीच हरिद्वार में लगभग 2.21 लाख एंटीजन टेस्ट हुए थे। इनमें से केवल 1237 यानी मात्र 0.55 फीसदी टेस्ट कोविड-19 पॉजिटिव निकले।
यह अविश्वसनीय है कि 23 लाख की आबादी वाले हरिद्वार में जब 50 लाख लोग बाहर से आए हुए थे, उन दो हफ्तों में 2.84 लाख सैंपलों में से केवल 3634 सैंपल ही कोरोना संक्रमित पाए गये। केवल 260 केस प्रतिदिन! गोखले मोदी सरकार पर कोरोना लहर के बीच हरिद्वार में 35 लाख से ज्यादा लोगों को जुटाने और कोरोना संक्रमण के आंकड़ों को कमतर दिखाने का आरोप लगाते हैं।
भले ही कुंभ की वजह से हरिद्वार अधिक चर्चाओं में है। लेकिन उत्तराखंड में महामारी की सबसे ज्यादा मार राजधानी देहरादून पर पड़ रही है। देहरादून में संक्रमण की दर 8 अप्रैल को 3.72 फीसदी थी, जो 21 अप्रैल को बढ़कर 24.42 फीसदी तक पहुंच गई। संक्रमण दर लगभग छह गुना बढ़ने के बावजूद देहरादून में टेस्ट उस हिसाब से नहीं बढ़े हैं। देहरादून में 17 अप्रैल को 10 हजार से ज्यादा टेस्ट हुए थे, लेकिन पिछले एक सप्ताह से 8 हजार से कम टेस्ट प्रतिदिन हो रहे हैं। यहां भी जांच बढ़ाने की जरूरत है।
उत्तराखंड के कई जिलों में कोरोना संक्रमण की बढ़ती दर भयावह संकट की आहट है। देश की जो स्वास्थ्य व्यवस्था सिर्फ 6 फीसदी की संक्रमण दर पर चरमरा चुकी है, वह दुर्गम पर्वतीय इलाकों में महामारी की नई लहर का मुकाबला कैसे करेगी? यह बड़ा सवाल है। खास तौर पर प्रवासियों के लौटने के साथ संक्रमण बढ़ने का खतरा बढ़ रहा है। इस चुनौती का सामना आंकड़ों को छुपाकर नहीं किया जा सकता है।
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