कृषि कानूनों पर स्टे के बावजूद क्यों पीछे हटने को तैयार नहीं किसान?

 

कृषि कानूनों और इनके विरोध में चल रहे किसान आंदोलन से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया। सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है। इसके अलावा कृषि कानूनों पर किसानों और सरकार का पक्ष जानने के लिए चार सदस्यों की एक समिति भी गठित की है।

इस समिति में अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, पीके जोशी, किसान नेता भूपेंद्र सिंह मान और अनिल घनवट को शामिल किया गया है। ये नाम सुप्रीम कोर्ट के पास कहां से आये? यह तो मालूम नहीं है, लेकिन ये चारों कृषि कानूनों का समर्थन करते हैं। ऐसे सदस्यों के चयन से आंदोलनकारी किसानों और सरकार के बीच विश्वास का संकट और ज्यादा गहरा गया है। यही वजह है कि कृषि कानूनों पर स्टे को भी वे संदेह की नजर से देख रहे हैं और आंदोलन जारी रखने का ऐलान किया है।

अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामारामासुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि हम एक शांतिपूर्ण आंदोलन को दबाना नहीं चाहेंगे। हमें लगता हैं कि कृषि कानूनों के अमल पर रोक के आदेश को आंदोलन की उपलब्धि के तौर पर देखा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने उम्मीद जताई है कि इस आदेश के बाद किसान यूनियनें अपने लोगों को वापस जाने के लिए समझाएंगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। किसान यूनियनों ने कृषि कानूनों के अमल पर रोक के आदेश पर संतोष तो जाहिर किया है, लेकिन इसे अपनी जीत मानने और पीछे हटने से साफ इंकार कर दिया है।

भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने असलीभारत.कॉम को बताया कि वे सुप्रीम कोर्ट का पूरा सम्मान करते हैं, लेकिन किसान आंदोलन की दो ही प्रमुख मांगें हैं। तीनों कृषि कानूनों की वापसी और एमएसपी की कानूनी गारंटी। इन मांगों के पूरा किये बगैर किसान घर वापस नहीं जाएंगे।

राकेश टिकैत ने सरकार पर सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए कहा कि जो अशोक गुलाटी कृषि कानून बनवाने वाली समिति में शामिल थे, वे क्या सुनवाई करेंगे। इस ‘सरकारी’ समिति से बात करने से अच्छा है, सरकार से ही बात की जाये। टिकैत ने ऐसे किसान नेताओं को समिति में शामिल करने पर भी निराशा जताई, जिसका किसान आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में एमएसपी की व्यवस्था को कायम रखने और कृषि कानूनों के जरिये किसानों को जमीन से बेदखल नहीं करने का भी आदेश दिया है। साथ ही किसान आंदोलन पर भी किसी तरह की कोई रोक नहीं लगाई है। फिर भी आंदोलनकारी किसान इसे अपनी जीत नहीं मान रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह कृषि कानूनों पर बनी समिति और विश्वास का संकट है। इसके अलावा जिस तरह यह मामला आंदोलनकारी किसान यूनियनों की मर्ज़ी के विपरीत सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, उसे लेकर भी किसान नेता आशंकित हैं।

समिति में शामिल अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और पीके जोशी कृषि कानूनों के पक्ष में खुलकर अपनी राय जाहिर कर चुके हैं। ये दोनों सरकारी खरीद बढ़ाने और एमएसपी की कानूनी गारंटी के खिलाफ भी लिखते रहे हैं। समिति के अन्य सदस्य बीकेयू के भूपिंदर सिंह मान और शेतकारी संगठन के अनिल घनवट भी कुछ सुधारों के साथ कृषि कानूनों को लागू करने के पक्ष में हैं। यानी समिति के चारों सदस्य कृषि कानूनों के पैरोकार हैं। समिति में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो आंदोलनकारी किसानों का प्रतिनिधित्व करता हो या निष्पक्ष माना जाये। संयुक्त किसान मोर्चा ने अफसोस जताया कि देश के सुप्रीम कोर्ट में अपनी मदद के लिए बनाई समिति में एक भी निष्पक्ष व्यक्ति नहीं रखा है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, चार सदस्यों की यह समिति कृषि कानूनों पर किसानों और सरकार का पक्ष सुनने के बाद दो महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट देगी। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि यह समिति मध्यस्थता नहीं करेगी। हम मामले को हल करना चाहते हैं। इसलिए समिति गठित की है, ताकि हमारे सामने तस्वीर स्पष्ट हो सके। चीफ जस्टिस ने यहां तक कहा कि आप अनिश्चितकाल तक आंदोलन करना चाहता है तो कर सकते हैं। लेकिन हम यह तर्क नहीं सुनना चाहते कि किसान समिति के पास नहीं जाएंगे। जो लोग वाकई इस मसले का हल चाहते हैं, उन्हें समिति के समक्ष जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश को अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति से जुड़े योगेंद्र यादव ने रेशम का फंदा करार देते हुए संघर्ष जारी रखने का ऐलान किया है। उनका कहना है कि एक तरफ सरकार किसानों से वार्ता कर रही है और दूसरी तरफ कर रही है कि अब मामला कोर्ट में सुलझेगा। इससे संदेह पैदा होता है कि सरकार जो काम विज्ञान भवन में नहीं कर पा रही है, कहीं ये उम्मीद तो नहीं कर रही कि वो काम सुप्रीम कोर्ट कर देगा।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले ही संयुक्त किसान मोर्चा ने किसी प्रकार की मध्यस्थता से इंकार करते हुए समिति के समक्ष जाने से मना कर दिया था। कोर्ट के फैसले के बाद संयुक्त किसान मोर्चा नेे बयान जारी कर कहा कि हमने मामले में मध्यस्थता के लिए सुप्रीम कोर्ट से प्रार्थना नहीं की है और ऐसी किसी कमेटी से हमारा कोई संबंध नहीं है। चाहे यह कमेटी कोर्ट को तकनीकी राय देने के लिए बनी है या फिर किसानों और सरकार में मध्यस्थता के लिए।

संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि किसान आंदोलन इन तीन कानूनों के स्थगन नहीं इन्हें रद्द करने के लिए चलाया जा रहा है। इसलिए केवल इस स्टे के आधार पर अपने कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं कर सकते। किसान आंदोलन जारी रहेगा और इस साल लोहड़ी कृषि कानूनों की प्रतियां जलाकर मनाएंगे।