फसल बीमा के लिए 6 महीने से जारी किसान की बेटी का संघर्ष

 

पिछले सप्ताह केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के 5 साल पूरे होने का जश्न बड़े जोरशोर से मनाया। लाखों करोड़ रुपये की योजना है। किसानों को आपदा से बचाने का बड़ा दावा है तो जश्न भी बड़ा ही मनना चाहिए। मना भी। लेकिन इस शोरगुल के बीच फसल बीमा का क्लेम पाने के लिए भटक रहे किसानों पीड़ा अनसुनी रह गई। इसलिए असलीभारत.कॉम ने उन किसानों की सुध लेने का बीड़ा उठाया है जो फसल बीमा के लिए बैंक, बीमा कंपनियों और कृषि विभाग के चक्कर काटने का मजबूर हैं। इस श्रृंखला की पहली कड़ी में पेश है राजस्थान के एक कृषक परिवार की आपबीती जो फसल बीमा योजना की पेचीदगियों को उजागर करती है और शिकायत निवारण की व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाती है 

– संपादक

मैं एक किसान परिवार से ताल्लुक रखती हूं और खेती ही हमारा मुख्य व्यवसाय है। साल 2019 में अतिवृष्टि के कारण राजस्थान के कई जिलों में किसानों की फसलें खराब हुई थीं। हमारी भी हुई। चूंकि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत पंजीकरण करवा रखा था, इसलिए उम्मीद थी कि नुकसान की कुछ न कुछ भरपाई हो जाएगी। इसी आस में पिता जी ने बीमा क्लेम के लिए आवेदन भी किया।

पिछले साल जुलाई महीने की बात है। मेरे पास पिताजी का गांव (राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के निम्बाहेडा ब्लॉक में भावलियां गांव) से फोन आया कि बीमा कंपनी के नंबर 0141-4042999 पर लगातार फोन कर रहे हैं, लेकिन कोई उठाता ही नहीं है। एक बार तुम भी इस नंबर पर बात करने की कोशिश करना। यह नंबर जयपुर का है और तुम जयपुर में हो तो बीमा कंपनी के ऑफिस जाकर पता करना कि 2019 में बर्बाद हुई खरीफ फसलों का बीमा क्लेम हमें क्यों नहीं मिला है। बैंक से पूछने पर मुझे जवाब मिला कि बीमा कंपनी से बात करो, हमें कोई जानकारी नहीं है। बीमा कंपनी कौन-सी है? उससे कैसे बात होगी? यह पूछने पर बैंक अधिकारी ने कहा कि हमें बीमा कंपनी के बारे में भी कोई जानकारी नहीं है। आपने आप पता करो! बैंक का यह रवैया बहुत हैरान और हताश करने वाला था।

इसके बाद मैंने बीमा कंपनी को गूगल पर सर्च किया तब कही जा कर मुझे एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी ऑफ इंडिया के जयपुर क्षेत्रीय प्रबंधक का मोबाइल नंबर और ईमेल आईडी मिला। मैंने सभी बैंक खातों का विवरण देते हुए एक लंबा मेल अंग्रेजी में लिखा और पूछा कि एक साल बाद भी बीमा क्लेम क्यों नहीं मिला है। मैंने बीमा कंपनी के क्षेत्रीय प्रबंधक को फोन किया और अंग्रेजी में बात करते हुए पूरा मामला बताया। यहां ये बताना जरुरी है कि अगर यह बातचीत और ईमेल अंग्रेजी में नहीं होते शायद मेरी बात सुनी भी नहीं जाती।

बहरहाल, दो दिन बाद बीमा कंपनी का एक मेल आता है कि आपके तीन खातों में से दो खातों की कोई जानकारी हमें राष्ट्रीय बीमा पोर्टल पर प्राप्त नहीं हुई है। एक खाते की जानकारी मिली है, जिसका क्लेम मंजूर हो गया है और क्लेम की राशि एक सप्ताह में आपके बैंक खाते में पहुंच जाएगी। बाकी दो खातों की जानकारी मांगने पर बीमा कंपनी के क्षेत्रीय प्रबंधक ने बताया कि बैंक ने आधार विवरण भारत सरकार के नेशनल क्रॉप इंश्योरेंस पोर्टल पर अपलोड ही नहीं किया होगा, इसलिए हमारे पास इन खातों की सूचना नहीं पहुंची है। जब कोई विवरण ही नहीं आया है तो बीमा भी नहीं हुआ और इस वजह से क्लेम राशि भी नहीं मिल सकती है। तब तक नेशनल क्रॉप इंश्योरेंस पोर्टल वर्ष 2019 के लिये बंद हो चुका था। इस बीच पोर्टल को पुनः खोला गया था लेकिन फिर भी बैंकों ने ये त्रुटियां नहीं सुधारी।

हमने सम्बंधित बैंक शाखा (स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया, निम्बाहेडा, चित्तोड़गढ़, शाखा कोड-31238) से वापस संपर्क किया तो बैंक ने स्वीकार किया कि आधार विवरण पोर्टल पर अपलोड नहीं हो पाया, इसलिए बीमा नहीं हो पाया। इसके बाद मैंने राजस्थान के कृषि मंत्री, कृषि आयुक्त, कृषि विभाग के क्षेत्रीय निदेशकों और बीमा कंपनी को मेल भेजकर पूरे मामले से अवगत कराया। इनमें से सिर्फ बीमा कंपनी का जवाब आया, जिसमें कहा गया था कि अगर राष्ट्रीय बीमा पोर्टल पर किसानों का डाटा अपलोड नहीं हुआ है तो उनका बीमा भी नहीं हुआ है। और किसी भी माध्यम से किसानों के बारे में कोई जानकारी नहीं ली जाएगी। योजना के दिशानिर्देशों के अनुसार, सिर्फ वित्तीय संस्था यानी बैंक ही किसानों का विवरण राष्ट्रीय बीमा पोर्टल पर अपलोड कर सकता है।

इस मुद्दे को लेकर मैं पिछले 6 महीनों में कृषि विभाग, बैंक और बीमा कंपनियों से गुहार लगा रही हूं। बैंक ने मौखिक रूप से अपनी लापरवाही स्वीकार की है लेकिन लिखकर यह दिया है कि किसानों का आधार डेटा अपलोड नहीं होने और आधार व बैंक खातों में नाम मिस-मैच होने की वजह से विवरण अपलोड नहीं हो पाया। जबकि बैंक बिना आधार के ना तो आजकल खाते खोलता है और ना ही ऋण देता है। ये सभी कृषक क्रेडिट कार्ड योजना के ऋणी किसान हैं। इसलिए ऐसा होना भी मुश्किल है कि बिना आधार ये खाते संचालित हो रहे हो। अगर हो भी रहा है तब भी इस प्रकार की विसंगतियां दूर करना बैंकों और बीमा कंपनियों की जिम्मेदारी है।  

मतलब, किसानों से आधार विवरण लेने के बाद भी यदि बैंक वो विवरण पोर्टल पर अपलोड नहीं करता है तो उसकी जवाबदेही किसकी होगी? किसानों पर यह दोहरी मार है। पहले मौसम की मार और फिर सिस्टम की खामियों या लापरवाही की मार! इस मामले को लेकर राजस्थान सरकार के कृषि विभाग को भी ईमेल भेजा गया पर किसी का कोई जवाब नहीं आया था। कृषि उपनिदेशक, चित्तौड़गढ़ को कई बार फोन किया था, लेकिन जैसे ही उन्हें यह पता चला कि अमुक केस से सम्बंधित फोन है तो उन्होंने फोन उठाना ही बंद कर दिया। ऐसी परिस्थितियों में किसान कहां जाए? किससे मदद की उम्मीद करे?

बीमा पंजीकरण कराने और प्रीमियम की राशि कटने के बाद भी बैंक, बीमा कंपनी और कृषि विभाग के चक्कर काटने पर क्यों मजबूर होना पड़ रहा है। इस बीच, इस मुद्दे को ‘असलीभारत.कॉम’ नाम ने उठाया। इसी दौरान मैंने इस मामले पर संसदीय समिति और रिजर्व बैंक को भी लिखा। रिजर्व बैंक से यह मुद्दा बैंकिंग लोकपाल तक भी पहुंच गया था। संभवत: इसी तरह के प्रयासों का ही परिणाम था कि भारत सरकार ने सिर्फ राजस्थान के लिए राष्ट्रीय बीमा पोर्टल को 2 से 7 नवंबर, 2020 के मध्य पुनः खोल कर बैंकों से डेटा अपलोड करने को कहा। बैंकों ने अपनी भूल सुधारते हुए ये कर भी दिया।

कई बीमा कंपनियां किसानों को बकाया क्लेम राशि वितरित कर भी चुकी हैं। परंतु राज्य के 13 जिलों (हनुमानगढ़, चित्तौड़गढ़, बाड़मेर, अलवर, बारां, बीकानेर, धौलपुर, झालावाड़, झुंझुनूं, करोली, सिरोही, गंगानगर, उदयपुर) में फसल बीमा करने वाली बीमा एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी ऑफ इंडिया ने किसानों को क्लेम राशि देने से साफ इंकार कर दिया है। अभी कुछ दिनों पूर्व कृषि आयुक्त से बात करने पर पता चला कि अब यह मामला भारत सरकार के पास विचाराधीन है।

कहा जा रहा है कि भारत सरकार जब तक बीमा कंपनी को पाबंद नहीं करेगी, तब तक 2019 के बीमा क्लेम से वंचित राजस्थान के इन किसानों को उनका हक नहीं मिल सकेगा। देखना है अभी और कितना इंतजार और कितना संघर्ष बाकी है। जिस योजना के 5 साल पूरे होने को उत्सव की तरह मनाया गया, अगर इतना ही ध्यान इसकी कमियों को दूर करने और शिकायत निवारण व्यवस्था को मजबूत करने पर दिया जाता तो मेरी जैसी किसान की बेटी को इतना जद्दाेजहद ना करनी पड़ती।