महाराष्ट्र के अकोला में चौथा राष्ट्रीय किसान एकता सम्मेलन
मौजूदा कृषि संकट के मद्देनज़र किसान एकता की भावी रणनीति पर विचार के लिए किसान संगठनों का चौथा राष्ट्रीय सम्मेलन महाराष्ट्र के अकोला जिले में 12 और 13 सितम्बर को रहा है। शेतकरी संगटना की मेजबानी में हो रहे इस सम्मलेन में देश भर के प्रमुख किसान और मछुवारा यूनियनों/संगठनों के 50 से ज्यादा नेता शामिल हो रहे हैं। उत्तर-पूर्व में मणिपुर से लेकर केरल में त्रिवेंद्रम तक और तमिलनाडु में कोयंबटूर से हिमाचल प्रदेश में शिमला से आये नेता ‘किसान एकता’ नाम से चलाये जा रहे एक राष्ट्रीय अभियान के तहत एकजुट हुए हैं।
विभिन्न किसान संगठनों और राजनीतिक दलों से जुड़े किसान नेताओं और गैर-सरकारी यूनियनों को एक मंच पर लाने का प्रयास जाने-माने कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा की पहल पर शुरू हुआ है। देविंदर शर्मा के साथ भारती किसान यूनियन, पंजाब के बलबीर सिंह राजेवाल और कर्नाटक राज्य रैयत संघा (केआरआरएस) के चंद्रशेखर कोडीहली ‘किसान एकता’ के समन्वयक हैं।
किसान आंदोलन के पुराने दौर को वापस लाने का प्रयास
देविंदर शर्मा बताते हैं कि ‘किसान एकता’ का बुनियादी विचार यह है की देश के 60 करोड़ किसान की आवाज़ को मजबूत करने के लिए किसान संगठनों के बीच आपसी समझ और एकता कायम होनी चाहिए। किसान आंदोलनों को 80 व 90 के दशक जैसी मजबूती देने के लिए इस तरह के प्रयास ज़रूरी हैं।
देविंदर शर्मा का कहना है कि आज तक राजनैतिक दलों ने सिर्फ दो मकसद से किसानों का इस्तेमाल किया है- वोट बैंक के तौर पर और लैंड बैंक के तौर पर। समय आ गया है जब किसान अपनी आवाज़ को इतनी मजबूती दे कि 2019 के चुनाव में किसान की अनदेखी ना हो सके।
सोमवार को अकोला के वेदनंदिनी फार्म में शुरू हुए किसान एकता सम्मेलन को संबोधित करते हुए किसान नेता और देशोन्नति समाचार-पत्र समूह के प्रधान संपादक प्रकाश पोहरे ने कहा कि देश के अलग-अलग हिस्सों में किसान अलग-अलग तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं। इन अलग-अलग आवाज़ों को एकजुट करने में किसान एकता अहम भूमिका निभा सकता है। इसी मुद्दे पर सम्मेलन के दौरान व्यापक चर्चा होगी।
शेतकरी संघटना के राष्ट्रीय समन्वयक विजय जावंधिया का कहना है कि जिस प्रकार 80 और 90 के दशक में किसान आन्दोलन ताकतवर बनकर उभरे वैसी ही ज़रूरत आज भी है। अपने अनुभवों से सीखते हुए किसान नेताओं को एकजुट होना पड़ेगा।
राष्ट्रीय किसान एकता सम्मेलन में आम किसान यूनियन, बुंदेलखंड किसान पंचायत, गुजरात खेडूत समाज, हिमाचल प्रदेश फल एवं सब्जी उत्पादक संघ, छत्तीसगढ़ कृषक बिरादरी, भारतीय किसान यूनियन (असली अराजनैतिक), किसान एकता मंच, धरतीपुत्र बचाओ संगठन जैसे कई संगठनों के नेता हिस्सा ले रहे हैं।
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