खाद्य तेलों की कीमतों पर अंकुश के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम का उपयोग करने का फैसला, कारोबारियों को देनी होगी स्टॉक की जानकारी
जिस आवश्यक वस्तु अधिनियम,1955 को केंद्र सरकार ने तीन नये कृषि कानूनों के तहत बदलकर स्टॉक लिमिट लगाने और स्टॉक मानिटरिंग के प्रावधानों को लगभग असंभव कर दिया था उसी के सहारे खाद्य तेलों की बेलगाम कीमतों पर अंकुश लगाने का फैसला केंद्र सरकार ने किया है। इस कानून के तहत खाद्य तेलों और तिलहनों के स्टॉक डिक्लेयर करने का प्रावधान लागू किया जा रहा है और इसके लिए राज्य सरकारों को जरूरी कदम उठाने के लिए कहा गया है। उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की इकोनॉमिक एडवाइजर ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित क्षेत्रों के मुख्य सचिवों और प्रशासकों को 8 सितंबर, 2021 को लिखे एक पत्र में यह कदम उठाने के लिए कहा है। कुछ माह पहले ही दालों की कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए इसी कानून का सहारा लेकर सरकार ने स्टॉक लिमिट लागू की थी।
सरकार का कहना है कि खाद्य तेलों के आयात पर सीमा शुल्क दरों को कम करने के बावजूद कीमतों में कमी नहीं हो रही है और उसकी असली वजह जमाखोरी है। इसलिए जमाखोरी पर अंकुश के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम (ईसीए) के तहत कारोबारियों, व्यापारियों, प्रसंस्करण करने वाली इकाइयों को अपने स्टॉक का खुलासा करना होगा। यह काम राज्य सरकारें करेंगी और उनको आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत यह अधिकार दे दिया गया है। इस पत्र में कहा गया है कि मुझे यह निर्देश दिया गया है कि आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत सभी आवश्यक वस्तुओं की उचित कीमत पर आम आदमी को उपलब्धता कराने का प्रावधान है। लेकिन पिछले दिनों सरकार द्वारा खाद्य तेलों के आयात शुल्क में कमी के फैसले के बावजूद इनकी कीमतों में भारी बढ़ोतरी हुई है। इसकी वजह स्टॉकिस्टों द्वारा की गई जमाखोरी हो सकती है।
आवश्यक वस्तु अधिनियम के प्रावधान स्टॉक की जानकारी लेने का अधिकार सरकार को देते हैं। इसलिए राज्य खाद्य तेल और तिलहनों स्टॉक की निगरानी करें और कीमतों पर निगाह रखें। सभी खाद्य तेल और तिलहन कारोबारियों, उत्पादकों, प्रसंस्करण करने वालों और आयातकों को स्टॉक की जानकारी देनी होगी। आवश्यक वस्तु अधिनियम के 9 जून, 1978 के केंद्रीय आदेश के तहत राज्यों को इस निगरानी का अधिकार दिया जा रहा है। साथ ही कहा गया है कि वह साप्ताहिक आधार पर इन उत्पादों की कीमतों पर निगाह रखें। सभी मिलर्स, रिफाइनर्स, स्टॉकिस्ट, थोक कारोबारियों को राज्य सरकारों और केंद्र शासित क्षेत्रों द्वारा खाद्य तेलों और तिलहनों के स्टॉक को घोषित करना होगा। जिसे राज्य सरकारों द्वारा को वेरीफाई भी किया जा सकता है।
राज्य सरकारों को एक पोर्टल बनाने के लिए भी कहा गया है जहां कारोबारी, उत्पादक और रिफाइनर्स स्टॉक की जानकारी दे सकेंगे। जिसे राज्य सरकारें सत्यापित कर सकेंगी। सभी राज्य सरकारों को इसके लिए जरूरी कदम उठाने के लिए कहा गया है।
खाद्य तेलों की कीमतों में पिछले एक साल में बेतहासा वृद्धि हुई है और कुछ तेलों के मामले में कीमत वृद्धि 50 फीसदी से 70 फीसदी तक हुई है। सरकार द्वारा कीमतों को नियंत्रित करने के लिए आयात बढ़ाने के तमाम कदम उठाये गये हैं। आयातित खाद्य तेलों के साथ ही घरेलू उत्पादित सरसों तेल की कीमतों में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। रबी सीजन (2021-22) के लिए के लिए सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4650 रुपये प्रति क्विटंल था लेकिन इस समय बाजार में सरसों की कीमतें 8000 रुपये प्रति क्विटंल तक पहुंच गई हैं। इसके चलते सरसों तेल के कीमतों में वृद्धि जारी रहने की संभावना बनी हुई है। फूड सेफ्टी स्टेंडर्ड अथारिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) की एक अधिसूचना के जरिये अब सरसों तेल में दूसरे खाद्य तेलों की ब्लैंडिंग बंद कर दी गई है। इसके चलते भी सरसों की मांग तेज हुई है।
लेकिन इस पर घटनाक्रम के बीच अहम बात यह है कि जिस सरकार आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 को सरकार किसानों और कारोबार के लिए गलत बताकर बदल चुकी है अब उसी का सहारा लेकर कीमतों को नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही है। कुछ माह पहले सरकार द्वारा दालों की कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए भी आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत स्टॉक लिमिट लागू की थी। जाहिर सी बात है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते तीनों नये कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगी हुई है। अगर यह रोक नहीं होती तो सरकार के पास इन कानूनों का उपयोग कीमतों को नियंत्रित के लिए तभी संभव था जब कीमतें 50 फीसदी और 100 फीसदी बढ़ जाती और आपदा की स्थिति होती। ऐसे में जो किसान संगठन इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं उनकी इन कानूनों को लेकर आशंका को खुद सरकार सही साबित कर रही है।
साभार: रूरल वॉइस
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