गुजरात: राजनीति और इंजीनियरिंग के लिहाज से क्यों खास है सौनी प्रोजेक्ट?
गुजरात के जामनगर जिले में सौनी प्रोजेक्ट के लोकार्पण कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। फोटो: पीआईबी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को गुजरात के जामनगर पहुंचे और ‘सौराष्ट्र नर्मदा अवतरण फॉर इरिगेशन’ (SAUNI) यानी सौनी प्रोजेक्ट के पहले चरण का लोकार्पण किया। साल 2012 में विधानसभा चुनाव से पहले बतौर सीएम नरेंद्र मोदी ने ही इस सिंचाई परियोजना का ऐलान किया था। एक बार फिर चुनाव से पहले 12 हजार करोड़़ रुपये की यह महत्वाकांक्षी परियोजना सुर्खियों में है। उम्मीद की जा रही है कि यह प्रोजेेक्ट सौराष्ट्र से सूखा पीड़ि़त किसानों के लिए बड़ी राहत लेकर आएगा। लेकिन इसका सियासी महत्व भी कम नहीं है। विपक्षी दल कांग्रेस ने परियोजना पूरी होने से पहले ही प्रथम चरण के लोकार्पण और प्रधानमंत्री की जनसभा को चुनावी हथकंंड़ा करार दिया है। पीएम बनने के बाद नरेंद्र मोदी की आज गुजरात में पहली सभा थी।
जामनगर, राजकोट और मोरबी जिले की सीमाओं से सटे सणोसरा गांव मेंं एक जनसभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि सौनी प्रोजेक्ट पर हर गुजराती को गर्व होगा। किसान को जहां भी पानी मिलेगा, वह चमत्कार करके दिखाएगा। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी का कहना है कि सौनी प्रोजेक्ट सूखे की आशंका वाले सौराष्ट्र के 11 जिलों की प्यास बुझाएगा। परियोजना के पहले चरण में राजकोट, जामनगर और मोरबी के 10 बांधों में नर्मदा का पानी पहुंचेेगा। अनुमान है कि सौराष्ट्र की करीब 10 लाख हेक्टेअर से अधिक कृषि भूमि को फायदा होगा।
सिविल इंजीनियरिंग का कमाल
सिविल इंजीनियरिंग के लिहाज से भी सौनी प्रोजेेक्ट काफी मायने रखता है। इसके तहत 1,126 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन बिछाई जाएगी, जिसके जरिये सरदार सरोवर बांध का अतिरिक्त पानी सौराष्ट्र के छोटे-बड़े 115 बांधों में डाला जाएगा। पहले चरण में 57 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन बिछाई गई है जिससे सौराष्ट्र में तीन जिलों के 10 बांधों में पानी पहुंचने लगा है। गुजरात सरकार का दावा है कि सभी 115 बांधों के भरने से करीब 5 हजार गांव के किसानों को फायदा होगा। गौरतलब है कि सौराष्ट्र के ये इलाके अक्सर सूखे की चपेट में रहते हैं। नर्मदा का पानी पहुंचने से यहां के किसानों को राहत मिल सकती है।
मोदी की रैली के सियासी मायने
हालांकि, सौनी प्रोजेक्ट 2019 तक पूरा होना है लेकिन अगले साल गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा और राज्य सरकार अभी से इसका श्रेय लेने में जुट गई है। आनंदीबेन पटेल के सीएम की कुर्सी से हटने और विजय रूपाणी के मुख्यमंत्री बनने के बाद यह पीएम मोदी की पहली गुजरात यात्रा है। उधर, पाटीदार आरक्षण और दलित आंदोलन भी भाजपा के लिए खासी चुनौती बना हुआ हैै। इसलिए भी पीएम मोदी के कार्यक्रम और जनसभा के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। सौराष्ट्र कृषि प्रधान क्षेत्र है और यहां पटेल आरक्षण और दलित आंदोलन का काफी असर है।
परंपरागत सिंचाई योजना से कैसे अलग है सौनी
देखा जाए तो सौनी प्रोजेेक्ट नर्मदा परियोजना का ही विस्तार है। लेकिन परंपरागत सिंचाई परियोजनाओं की तरह सौनी प्रोजेक्ट में नए बांध, जलाशयों और खुली नहरों के निर्माण के बजाय पहले से मौजूद बाधों में पानी पहुंंचाया जाएगा। इसके लिए खुली नहरों की जगह पाइपलाइन बिछाई जा रही है। उल्लेखनीय है कि भूमि अधिग्रहण के झंझटों को देखते हुए गुजरात सरकार ने खुली नहरों के बजाय भूमिगत पाइपलाइन का विकल्प चुना था। इसी पाइपलाइन के जरिये नर्मदा का पानी सौराष्ट्र के 115 बांधों तक पहुंचााने की योजना है। भूमिगत पाइपलाइन से बांधों में पानी डालने के लिए बड़े पैमाने पर पंपिंग की जरूरत होगी। इस पर आने वाले खर्च को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं।
परियोजना पर सवाल भी कम नहीं
12 हजार करोड़ रुपये केे सौनी प्रोजेक्ट पर सवाल भी कम नहीं हैं। दरअसल, राज्य सरकार का अनुमान है कि नर्मदा से करीब 1 मिलियन एकड़ फीट अतिरिक्त पानी सौराष्ट्र के 115 बांधों को मिल सकता है। गुजरात विधानसभा में विपक्ष के नेता शंकर सिंह वाघेला का कहना है कि सौनी प्रोजेक्ट की सच्चाई दो महीने बाद सामने आएगी। अभी तो बरसात की वजह से अधिकांश बांधों में बारिश का पानी पहुंंच रहा है। दो-तीन महीने बाद जब बांध सूख जाएंगे तब पता चलेगा सौनी प्रोजेक्ट से कितना पानी पहुंचता है। सरकार को कम से कम दो महीने का इंतजार करना चाहिए था।