महिला कोच से छेड़छाड़ के आरोपी मंत्री संदीप सिंह के बचाव में आए मुख्यमंत्री मनोहर लाल!
एडिशनल एडवोकेट जनरल दीपक सब्बरवाल का इस तरह से राज्य मंत्री संदीप सिंह की पैरवी के लिए चंडीगढ़ पुलिस के सामने खड़े होना सरासर गलत है. यह संदीप सिंह पर कोई सरकारी मामला नहीं है, जो सब्बरवाल खड़े हों. यह व्यक्तिगत मामला है. भले ही तकनीकी तौर पर सब्बरवाल संदीप सिंह की पैरवी कर सकते हों और नियम उनके हक में हों, लेकिन उनके ऐसा करने से हरियाणा में चल रही जांच प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती. संदीप सिंह के मामले में चंडीगढ़ पुलिस की केस फाइल में क्या कुछ है, यह वकील होने के नाते सब्बरवाल को पता चल जाएगा और यहां जो फैक्ट फाइंडिंग कमिटी काम कर रही है, उस पर उक्त जानकारी के आधार पर राज्य मंत्री संदीप सिंह के मार्फत दबाव डलवा सकते हैं. इस मामले के कई सारे लिंक हरियाणा से संबंध रखते हैं, इसलिए सब्बरवाल को न तो संदीप सिंह की वकालत करनी चाहिए और राज्य सरकार अगर सबकुछ निष्पक्ष चाहती है (हालांकि, मुझे नहीं लगता. क्योंकि मुख्यमंत्री खुद ही ऐसी-ऐसी बयानबाजी कर रहे हैं, जो उनके कद के हिसाब से शोभा नहीं देता. इस प्रकरण में एक-एक शब्द के मायने निकालें जाएं तो यह अत्यंत निंदनीय हैं. कोई विपक्षी ऐसा बयान दे देता तो अभी तक भाजपाई उसकी खाल खींच देते.) तो सब्बरवाल पर कार्रवाई करनी चाहिए.
क्योंकि, इससे पहले डिप्टी एडवोेकेट जनरल रहे गुरदास सिंह सलवारा को हरियाणा सरकार ने हटा दिया था. पंचकूला सीबीआई कोर्ट द्वारा गुरमीत सिंह को दुष्कर्म के मामले में सजा सुनाए जाने के बाद सलवारा उनके साथ खड़े नजर आए थे. इस मामले में भी राज्य मंत्री संदीप के मामले की तरह प्रोसिक्यूसन एजेंसी हरियाणा नहीं अलग थी. संदीप सिंह के मामले में चंडीगढ़ पुलिस प्रोसिक्यूसन एजेंसी है तो गुरमीत सिंह के मामले में सीबीआई थी. सलवारा ने गुरमीत सिंह की तरफ से पैरवी भी नहीं की थी, जबकि सब्बरवाल तो संदीप सिंह की पैरवी कर रहे हैं. जब हरियाणा सरकार सलवारा की मौजूदगी को लीगल Propriety का मामला मानते हुए हटाने का कदम उठा सकती है तो फिर सब्बरवाल पर कार्रवाई से क्यों बच रही है? क्या मुख्यमंत्री ने ही सब्बरवाल को संदीप सिंह का साथ देने के लिए भेजा है? अगर कार्रवाई नहीं होती है तो फिर यही समझा जाएगा कि जिस तरह से बयानबाजी में मुख्यमंत्री संदीप सिंह को क्लीन चिट देने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं, कानूनी तौर पर भी उसे बचाने की हद तक जाने को तैयार हैं. लेकिन, ये जनता है, सब समझती है.
आज के अखबारों में मुख्यमंत्री मनोहर लाल का लंबा-चौड़ा बयान पढ़ा. इसे पढ़ कर हंसी भी आई, पीड़ा भी हुई. हंसी की वजह यह रही कि महिला कोच से छेड़छाड़ के आरोपी राज्य मंत्री संदीप सिंह के पक्ष में मुख्यमंत्री कितनी मुखरता के साथ खड़े हो गए हैं. पीड़ा इस बात की हुई कि प्रदेश की राजनीति के सर्वोच्च ओहदे पर विराजमान मनोहर लाल ने ये शब्द कहे. यानी, वहां बैठे किसी भी शख्स के मुखारविंद से इस तरह की शब्दावली की उम्मीद कम से कम कोई भी कानून पसंद आम हरियाणवी तो कर ही नहीं सकता.
मुख्यमंत्री जी, आप भले ही छेड़छाड़ के मामले की गंभीरता को न समझते हों, लेकिन यह जरूर समझने का प्रयास करें कि किसी भी बेटी-महिला की अस्मिता से इस तरह किसी को भी छेड़छाड़ की खुली छूट कतई नहीं दी जा सकती. अभी तक मैं कितनी ही बार सोचता था, कहता भी था, कि मुख्यमंत्री भले आदमी हैं, लेकिन उनके चारों ओर कुछ ऐसे लोग हैं, जो समय-समय पर उन्हें गुमराह करते हैं. अपने निजी स्वार्थ में मुख्यमंत्री से कुछ न कुछ ऐसा करवा जाते हैं, जो कम से कम मुख्यमंत्री को नहीं कहना या करना चाहिए. लेकिन, इस बार जो बयान आपके पास से आया है, उसमें चारों ओर मौजूद जुंडली-मंडली का कोई अधिक रोल न मानते हुए मैं तो सीधे तौर पर आपको ही जिम्मेदार मानता हूं. आप बार-बार कहते हैं कि हरियाणा आपका परिवार है. हर हरियाणवी आपका भाई, बेटा, बहन, मां आदि आदि हैं. तो फिर अब क्या हो गया, जो बेटी को न्याय दिलाने की बजाए अपने राज्य मंत्री को हर तरीके से बचाने की भाषा बाेल रहे हैं? क्यों चंडीगढ़ पुलिस के सामने पैरवी करने के लिए हरियाणा सरकार के अडिशनल अटॉर्नी जनरल दीपक सब्बरवाल की अंदरखाने जिम्मेदारी तय की गई?
मुख्यमंत्री जी, आपके अनुसार अगर छेड़छाड का आरोपी अपने दफ्तर आकर राज्य मंत्री के तौर पर काम कर सकता है तो फिर पुलिस को कह दीजिए कि सैकड़ों छुटपुट मामलों के आरोपियों को पकड़ना बंद कर दे. क्यों लूट की योजना बनाते पकड़े गए युवाओं को गिरफ्तार कर जेल भेजा जाता है? जबकि, उन्होंने तो सिर्फ योजना बनाई थी, और तो कुछ किया ही नहीं. क्यों, चोरी के आरोपी को पकड़ कर जेल भेजा जाता है, क्योंकि मौके पर तो वह भी नहीं पकड़ा गया. क्यों, स्नैचिंग के आरोपी को पकड़ कर जेल भेजते हैं, जबकि मौके पर तो यह भी नहीं पकड़ा गया. क्यों, चाकू-कट्टे के साथ पकड़े गए आरोपी को अरेस्ट किया जाता है, जबकि कोई भी वारदात तो इन्होंने अभी तक की भी नहीं? बदलवा दीजिए नियम-कायदे. क्यों हजारों बेगुनाहों को आरोपी बनते ही अरेस्ट होना पड़ता है, क्यों तुरंत जेल जाना पड़ता है. इन्हें भी संदीप सिंह की तरह राहत दिलाने का प्रयास तो कीजिए. ले लीजिए इनका भी पक्ष. जितने न्याय प्रिय होकर आप राज्य मंत्री को बचाने की कोशिश में दिखाई दे रहे हैं, उतनी कोशिश इन बाकी के लिए भी करेंगे तो आपको तो अगले चुनाव में वोट मांगने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी. ये ही जितवा देंगे आपको चुनाव. तो बिना देरी किए आज ही जारी करवा दीजिए आदेश कि पुलिस अब हरियाणा में किसी भी आरोपी को दोष साबित होने तक अरेस्ट नहीं करेगी.
अजय दीप लाठर, लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं.