बर्फीले आर्कटिक में हीटवेव, साइबेरिया में गर्मी ने तोड़े रिकॉर्ड
उत्तरी ध्रुव के नजदीक अधिकतर बर्फ से ढका आर्कटिक वृत्त इस साल गर्मी से झुलस रहा है। रूस की एक मौसम एजेंसी के अनुसार, पृथ्वी के सबसे ठंडे स्थानों में शुमार साइबेरिया के वर्खोयांस्क का तापमान 38 डिग्री सेल्सियस के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया है जो सामान्य से 17 डिग्री अधिक है। यहां न्यूनतम तापमान माइनस 68 डिग्री तक गिर जाता है। अब से पहले यहां उच्चतम तापमान 37.2 डिग्री सेल्सियस था। ऐसे समय जब पूरी दुनिया कोरोना संकट से जूझ रही है, आर्कटिक वृत्त में बढ़ती गर्मी जलवायु परिवर्तन के खतरे की आहट दे रही है।
इस साल आर्कटिक के साइबेरिया में गर्म हवाएं यानी हीटवेव चलने से जंगलों में काफी आग लगी है। साइबेरिया में गर्मी बढ़ने के पीछे जंगलों की इस आग को भी वजह माना जा रहा है।
साइबेरिया के अलावा आर्कटिक वृत्त में शामिल उत्तरी कनाडा, ग्रीनलैंड और स्कैंडिनेविया प्रायद्वीप में भी अत्यधिक गर्मी पड़ रही है और तापमान सामान्य से 20-30 डिग्री अधिक हैं। उत्तरी ध्रुव के नजदीक इन बेहद ठंडे इलाकों में बढ़ती गर्मी बेहद चिंताजनक है। इसे जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देखा जा रहा है। आमतौर पर गर्म एशियाई क्षेत्र भी इस साल तापमान सामान्य से 5 डिग्री ज्यादा अधिक है। माना जा रहा है कि साल 2020 अब तक का सबसे गर्म साल रहेगा।
जलवायु के लिहाज बेहद महत्वपूर्ण आर्कटिक वृत्त को पृथ्वी का बैरोमीटर माना जाता है। दुनिया भर के मौसम वैज्ञानिक, पर्यावरण विशेषज्ञ और संस्थाएं जलवायु परिवर्तन की इन घटनाओं को लेकर काफी चिंतित हैं। इस साल मई का महीना पिछले 170 वर्षों में सबसे गर्म रहा है। यह भी जलवायु परिवर्तन का बड़ा प्रमाण है।
कैनेडियन मीडिया हाउस सीबीएस की खबर के मुताबिक, गत जनवरी से ही साइबेरिया के कई इलाकों में तापमान सामान्य से अधिक है। साइबेरिया में जितना तापमान सदी के आखिर यानी सन 2100 तक बढ़ने का अनुमान था, उतनी वृद्धि साल 2020 में ही हो चुकी है। हालांकि, कई लोग इस दावे पर सवाल भी उठा रहे हैं लेकिन जलवायु के बदले मिजाज और एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स पर शायद ही किसी को संदेह हो।
आर्कटिक वृत्त में तापमान बढ़ने के पीछे मानव जनित जलवायु परिवर्तन को वजह माना जा रहा है। ग्रीन हाउस गैसों के अत्यधिक उत्सर्जन के कारण आर्कटिक वृत्त का तापमान संपूर्ण पृथ्वी के मुकाबले दोगुनी तेजी से बढ़ रहा है। इससे समुद्रों और बाकी इलाकों में जमी बर्फ पिघल रही है। एक अनुमान के मुताबिक, पिछले 40 साल में आर्कटिक वृत्त की 50 फीसदी बर्फ पिघल चुकी है। जिसके चलते समुद्री और थल क्षेत्र बढ़ा है। बर्फ का क्षेत्र घटने से सूर्य की किरणों के परावर्तन में कमी आई है और ज्यादा अवशोषण हो रहा है, जिससे ग्लाेबल वार्मिंग बढ़ रही है। इससे निपटने के लिए जीवाश्म ईंधन की खपत और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी पर जोर दिया जा रहा है।