भारतीय हॉकी टीम के खिलाड़ी सुमित वाल्मीकि का ढाबे पर काम करने से लेकर टोक्यो ओलंपिक तक का सफर!
टोक्यो ओलंपिक में देश को कांस्य पदक दिलाने वाली भारतीय पुरुष हॉकी टीम के मिडफिल्डर सुमित वाल्मीकि का बचपन बेहद गरीबी और अभावों में बीता है. सुमित वाल्मीकि हरियाणा के सोनीपत से 5 किलोमीटर दूर गांव कुराड़ के रहने वाले हैं. सुमित बचपन से ही खेलकूद में दिलचस्पी रखते थे. सुमित के गांव कुराड़ से लेकर टोक्यो तक के सफर में उनके परिवार और कोच का बहुत बड़ा योगदान रहा है. दलित समुदाय के वाल्मीकि समाज से आने वाले सुमित वाल्मीकि के लिए हॉकी की राष्ट्रीय टीम में देश के लिए ओलंपिक खेलना सपने से कम नहीं था.
सुमित के बड़े भाई अमित ने बताया, “सुमित को पहली बार टीवी पर इंडिया की नीली जर्सी पहने हुए देखा तो पूरा परिवार भावुक हो गया था. सुमित की कोई भी डिमांड नहीं रहती है. वह जब भी घर आता है तो किसी तरह की डाइट को लेकर डिमांड नहीं रखता है. घर में जैसा खाना बना हो हमारे साथ बैठकर खा लेता है. सुमित अपने खेल को लेकर बहुत समर्पित है. सोशल मीडिया से दूर रहता है. मां के साथ सुमित का बहुत लगाव था. सुमित ने मां से वादा किया था कि वह देश के लिए मेडल लेकर आएगा.”
सुमित के परिवार में उनके पिता प्रताप सिंह, दो बड़े भाई, भाभी और एक बड़ी बहन हैं.
टोक्यो ओलंपिक में मैच के दौरान सुमित अपनी मां की फोटो लगी लाकेट पहन कर मैदान में उतरे थे. ओलंपिक से करीब छह महीने पहले सुमित की मां दर्शना देवी का निधन हो गया था. सुमित के बड़े भाई ने बताया कि मां का सपना था कि सुमित ओलंपिक में खेले. सुमित ने ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर मां का सपना पूरा किया है. मां के प्रति सुमित का बेहद लगाव था.
हॉकी खिलाड़ी सुमित वाल्मिकी का बचपन गांव में बेहद गरीबी में बीता है. सुमित के पिता प्रताप सिंह और उनके बड़े भाई ने सोनीपत से लगते मुरथल के ढाबों पर दिहाड़ी-मजदूरी करके परिवार को आगे बढ़ाया है. वहीं सुमित ने भी अपने पिता और दो भाईयों के साथ मिलकर मुरथल के ढाबों पर मजदूरी की है.
सुमित ने 2017 में सुलतान अजलान शाह कप से अंतरराष्ट्रीय खेल की शुरुआत की थी. सुमित वाल्मीकि के शानदार प्रदर्शन की बदौलत भारत ने 2016 में जूनियर हॉकी का वर्ल्ड कप अपने नाम किया. उनकी कामयाबी में एशियाई कप से लेकर एशियन चैंपियनशिप का मेडल भी शामिल है. इसके अलावा जोहर कप और सुल्तान अजलान शाह हॉकी टूर्नामेंट में भी सुमित वाल्मीकि की हॉकी स्टिक अपना कमाल दिखा चुकी है.
टोक्यो ओलंपिक में जर्मनी के खिलाफ शानदार प्रदर्शन कर कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के खिलाड़ी सुमित वाल्मीकि को हरियाणा सरकार ने बी क्साल की सरकारी नौकरी और ढ़ाई करोड़ देने का एलान किया है.
हरियाणा सरकार के नौकरी के एलान पर सुमित वाल्मीकि के बड़े भाई अमित ने कहा, “हरियाणा की ओर से सुमित को ए-क्लास नौकरी दी जानी चाहिए क्योंकि बी-क्लास की नौकरी तो उसके पास पहले से है. हम सीएम मनोहर लाल खट्टर से मांग करेंगे कि सुमित को हरियाणा में ए-क्लास की सरकारी नौकरी दी जाए.”
सुमित वाल्मीकि की खासियत है उनका मैदान पर दौड़ने का स्टेमिना. सुमित मैदान में अभ्यास के दौरान सबसे ज्यादा पसीना बहाने वाले खिलाड़ियों में से हैं. मैच के दौरान सुमित मैदान में एक छोर से दूसरे छोर पर दौड़ते नजर आते हैं.
सुमित ने 6 साल की उम्र से ही गांव में स्कूल के मैदान में खेलना शुरू कर दिया था. गांव कुराड़ के ही रहने वाले कोच नरेश अंतिल ने सुमित वाल्मीकि को हॉकी के शुरुआती गुर सिखाए. गांव-सवेरा से बात करते हुए सुमित वाल्मीकि के कोच नरेश अंतिल ने बताया, “सुमित 6 साल का था जब मेरे पास आया था. उन दिनों हमने गांव में हॉकी एकेडमी की शुरुआत की थी. सुमित मेरे पास आकर बैठ गया और बोला कि मैं भी खेलना चाहता हूं. मैनें कहा, ठीक है कल से आ जाना लेकिन उसने शर्माते हुए कहा कि मेरे पास निक्कर और जूते नहीं हैं. उसके बाद हमने सुमित को जूते और निक्कर देकर हॉकी खेलाना शुरू किया.
कोच नरेश अंतिल ने आगे बताया,“सुमित बहुत ही शांत स्वभाव का जेंटल लड़का है. वह हमेशा समय से पहले मैदान में पहुंच जाता था. उसने कभी भी डांट खाने का काम नहीं किया.सुमित के खेल से जुड़ी बारीकियों पर उन्होने कहा कि सुमित मिडफिल्ड का खिलाड़ी है. मिडफील्ड पर बहुत ज्याद स्टेमिना वाले खिलाड़ी ही अपना बेहतरीन दे पाते हैं. मिडफील्ड के खिलाड़ी को मैदान के दोनों ओर दौड़ना पड़ता है. सुमित का फिटनेश लेवल बहुत शानदार है. फिटनेश के मामले में सुमित टीम में टॉप पांच में रहता है.”
“सुमित दो बार की चोट और अपनी मां के स्वर्गवास के बाद कुल तीन बार टीम में वापसी कर चुका है.गांव में सुमित का व्यवहार बहुत अच्छा है वह जब भी गांव आता है तो सभी लोगों से मिलता-जुलता है. सुमित को भी पूरे गांव से भरपूर प्यार मिलता है.”