एक मजदूरों के गांव को तोड़ने के लिए तैनात तंत्र और मजदूरों को उजाड़ने के लिए फ्लैग मार्च करती पुलिस!

 

फरीदाबाद ज़िले का खोरी गाँव जहाँ लगभग दस हज़ार से भी अधिक दिहाड़ी मज़दूर परिवार रहते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस गाँव को यहाँ से हटाने का फैसला सुनाया है. इसके पीछे कोर्ट ने दलील दी कि यह गाँव वन विभाग की ज़मीन पर गैर क़ानूनी तरीके से बसाया गया है. कई सामाजिक संगठनों ने मिलकर इस मामले में पुनर्विचार याचिका भी दायर की थी मगर सुप्रीम कोर्ट ने उसको खारिज़ कर दिया और साथ ही प्रशासन को आदेश दिया है कि वो 6 हफ्तों के भीतर गाँव खाली करवाए.

सुप्रीम कोर्ट के इस सख्त रुख के बाद गाँव में रह रहे लोगों के लिए राहत की उम्मीद लगभग खत्म हो गई है. गाँव की रहने वाली 48 वर्षीय बिमलेश ने द हिंदू अख़बार को दिए अपने ब्यान में कहा कि उनका पति व बेटा दोनों मज़दूरी करते हैं. परिवार ने लगभग 6 साल पहले यहाँ 3 लाख रूपए में एक प्लाट ख़रीदा था. उन्होंने ये सारा पैसा किसी से कर्ज़ लिया था जो धीरे-धीरे चुकाया है. बिमलेश आगे कहती है कि बड़ी मुश्किलों से उन्हें अपने सर पर छत नसीब हुई थी और अब सरकार ये भी उनसे छीनना चाहती है.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद प्रशासन ने भी गाँव को खाली करवाने की तैयारियां शुरू कर दी है. बीते दिन प्रशासन ने लगभग 3 हज़ार से अधिक पुलिसवालों के साथ गाँव में फ्लैग मार्च निकाला. तोड़फोड़ के दिन किसी तरह का कोई विरोध प्रदर्शन न हो इसको सुनिश्चित करने के लिए गाँव में पुलिस ने अपने खुफिया विभाग (CID) को भी काम पर लगा दिया है. चूँकि गाँव का कुछ हिस्सा दिल्ली से सटा हुआ है इसलिए प्रशासन ने हरियाणा पुलिस और दिल्ली पुलिस दोनों को मिलाकर एक संयुक्त टीम का गठन किया है, जो तोड़फोड़ के वक़्त प्रशासन को सुरक्षा मुहैया करवाने का काम करेगी.

खोरी में रहने वाले ज्यादातर परिवार प्रवासी मजदूरों के हैं जो रोज़ कमाते और खाते हैं. अचानक से आए कोर्ट के इस फ़ैसले ने इन लोगों की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं. गाँव की ही एक अन्य महिला नीमा देवी ने द हिंदू अख़बार से बातचीत में बताया कि पिछले एक साल से कोरोना महामारी में सब कुछ बंद होने के कारण गाँव के अधिकतर लोग बेरोज़गार बैठे हैं. किसी के पास इतना पैसा नहीं है कि यहाँ से कहीं और जाकर दूसरा घर बना सके, कोई हमारी सुध नहीं ले रहा है.

मुकेश जो रिक्शा चलाने का काम करते हैं उन्होंने द हिंदू अख़बार को बताया कि घर टूटने की ख़बर से लोगों में मानसिक तनाव भी बढ़ रहा है. लोग अपना कीमती सामान निकालकर किराए के कमरों में शिफ्ट कर रहे हैं. मौके का फ़ायदा पाकर आसपास के लोगों ने भी कमरों का किराया बढ़ा दिया है.  मुकेश ने बढ़ते मानसिक तनाव से तीन लोगों की जान जाने की बात भी कही है, जिसमें 2 लोगों ने आत्महत्या की है और एक की मौत हार्ट अटैक से होने की बात सामने आई है.

स्थानीय लोगों का आरोप है कि प्रशासन ने उनके गाँव की बिजली काट दी है. पानी के टैंकर भी गाँव में नहीं घुसने दिए जा रहें हैं. लोग बगल के इलाकों से बोतलों और बाल्टियों में पानी भरकर ला रहे हैं.

गाँव के ही रहने वाले सद्दाम हुसैन जो कि प्लम्बर का काम करते हैं, उनका कहना है उन्होंने किसी तरह का कोई कब्ज़ा किसी ज़मीन पर नहीं किया है बल्कि ये ज़मीन तो उन्होंने पैसों में ख़रीदी है. फिर भी सरकार उनकी ज़मीन छीन रही है. दिल्ली एनसीआर जैसे महंगे इलाक़े में उन्होंने बड़ी मुश्किल से अपने लिए घर का इंतजाम किया था. यदि सरकार इन्हें यहाँ से हटाती है तो ये लोग बेघर हो जाएंगे.

दरअसल खोरी गाँव में अधिकतर परिवारों ने डीलरों से ज़मीन ख़रीदी हुई है और उन्होंने ही गाँव में रह रहे लोगों को प्राइवेट बिजली कनेक्शन दिलाने में भी मदद की है. सद्दाम हुसैन कहते है कि उन्हें लगता था कि उनका गाँव भी दिल्ली में स्थित संगम विहार की तरह पक्का हो जाएगा. मगर अब न तो डीलर उनकी मदद कर रहे हैं, न कोई नेता और न सरकार.

स्थानीय लोगों का कहना है कि इस सब में उनकी कोई गलती नहीं है, ज़मीन अगर वन विभाग की थी तो सरकार को चाहिए कि जिन डीलर्स ने उनको ज़मीने बेची हैं उन पर भी कार्रवाई हो. अकेले गाँव में रह रहे परिवार ही दोषी नहीं है. साथ ही उनकी मांग है कि उन्हें मुआवज़ा मिले और दूसरी जगह रहने के लिए सरकार ज़मीन का प्रबंध भी करे.