पंजाब के खेत मजदूरों को अपने मुख्यमंत्री से मिलने के लिए करना पड़ा दो दिन प्रदर्शन
पंजाब के संगरूर और मानसा जिले के लगभग 3000 खेत मजदूरों ने 29 मई को संगरूर में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के घर का घेराव किया. मजदूर अपनी मांगों को लेकर मुख्यमंत्री से मिलने के लिए आए थे. क्रांतिकारी पेंडु(देहाति) मजदूर यूनियन के आह्वान पर मजदूरों ने 29 मई को सुबह ही मुख्यमंत्री के घर के बाहर नारेबाजी शुरू कर दी. जब कोई मिलने नहीं आया तो 12 बजे मुख्यमंत्री के घर के बाहर ही स्टेज लगाकर अपना कार्यक्रम शुरू कर दिया.
स्थाई मोर्चा लगता देख करीब 4 बजे अधिकारी, मजदूरों से मिलने स्टेज पर ही आए. मुख्यमंत्री से मुलाक़ात करवाने का आश्वासन मजदूर नेताओं को दिया. एक सरकारी चिट्ठी भी दी जिसमें लिखा हुआ था कि 13 जून को मजदूर नेताओं की मुख्यमंत्री से मुलाक़ात कारवाई जाएगी. इस आश्वासन पर मजदूरों ने धरना खत्म कर दिया.
मुख्यमंत्री से मिलने के लिए पास की जरूरत होती है. 30 मई को जब मजदूर नेता पास लेने के लिए दोबारा अधिकारियों से मिले. अधिकारी मुख्यमंत्री से मिलवाने वाली बात से मुकर गए. मजदूर नेताओं को लगा कि उनके साथ धोखा हुआ है. उसी समय आस पास के मजदूरों को संगरूर पहुंचने का आह्वान नेताओं की ओर से किया गया. इसके बाद मजदूरों ने शाम को 6 बजे ही फिर से धरना शुरू कर दिया. इस दौरान उनकी वहां मौजूद पुलिस से हाथापाई भी हुई. करीब 6 घंटे चले इस संघर्ष के बाद रात को 12 बजे अधिकारी मजदूरों से फिर मिले. इस बार मुख्यमंत्री से मिलने का पास मजदूर नेताओं को दिया. मजदूर नेताओं की मुख्यमंत्री से मुलाक़ात 7 जून को होगी.
यूनियन के प्रवक्ता प्रगट कला झार ने बताया कि वो 7 जून को मुख्यमंत्री से मिलकर मजदूरों की समस्याओं के बारे में बात करेंगे.
यह हैं मजदूरों की मुख्य मांग
- धान की लवाई 6 हजार रुपए प्रति एकड़ की जाए.
- मजदूर की दिहाड़ी 700 रुपए की जाए.
- गांव के मजदूरों के सामाजिक बहिष्कार के प्रस्ताव पारित करने वाले चौधरियों के खिलाफ SC/ST एक्ट के तहत केस दर्ज किया जाए.
- धान की सीधी बिजाइ से मजदूरों के खत्म हुए रोजगार की भरपाई की जाए.
- पंचायती जमीन के तीसरे हिस्से को दलित मजदूरों को कम रेट पर देना यकीनी (पुख्ता) बनाया जाए. डमी बोली लेने और देने वाले पर कार्यवाही की जाए और रिजर्व कोटे वाली जमीन की बोली दलित चौपाल में लगवाई जाए.
- भूमि सुधार कानून लागू करके बची हुई जमीन बेजमीने किसान और खेत मजदूरों को दी जाए.
- जरूरतमंद मजदूर परिवारों को 10-10 मरले के प्लाट, घर बनाने के लिए 5 लाख रुपए और कूड़ा डालने की जगह दी जाए.
- नजूल ज़मीनों का मालकाना हक मजदूरों को दिया जाए.
- बेजमीने मजदूरों पर चढ़े माइक्रोफ़ाइनेंस, सरकारी और गैर सरकारी कंपनियों के कर्जों को माफ किया जाए, मजदूरों को बैंकों से कम ब्याज दर पर और लंबे समय के लिए बिना गारंटी का कर्ज दिया जाए.
- डीपो सिस्टम को सुचारु बनाया जाए और जरूरत की सारी चीज़ें सस्ते रेट पर दी जाए.
- बेजमीने खेत मजदूरों को सहकारी समितियों का सदस्य बनाया जाए और सब्सिडी के तहत कर्ज दिए जाए.
- मोदी सरकार द्वारा किए गए श्रम कानूनों में संशोधन को रद्द करवाने के लिए विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया जाए.
- मनरेगा के तहत पूरे परिवार को पूरे साल काम दिया जाए, दिहाड़ी 600 रुपए की जाए और धांधली करने वाले अधिकारियों पर जरूरी कार्यवाही की जाए.
- बेजमीने मजदूरों के लिए पक्के रोजगार का प्रबंध किया जाए और सरकारी संस्थानों का निजीकरण बंद किया जाए.
- खेत मजदूरों के बकाया बिजली के बिल माफ किए जाए और बकाया बिल की वजह से उखाड़े गए बिजली के मीटर वापस लगाए जाए.
- विधवा, बुढ़ापा और विकलांग पेंशन 5000 रुपए की जाए और बुढ़ापा पेंशन की उम्र महिलाओं की 55 और पुरुषों की 58 साल की जाए.
- संघर्षों के दौरान मजदूरों और किसानों पर दर्ज किए गए केस वापस लिए जाए.
नोट : नजूल जमीन: जो जमीन 1956 में दलितों को दी गई, जिसमें बरानी, सरप्लस, खाली पड़ी जमीन और जिनके मालिक माइग्रेट कर गए थे, उसको नजूल कहा गया.