6 साल में 15 करोड़ विमुक्त घुमंतू आबादी को मिला पीएम मोदी की एक विदेश यात्रा के खर्च से भी कम बजट!
देश में विमुक्त घुमंतू एवम अर्धघुमंतू जनजातियों की आबादी 15 करोड़ के आस-पास है. विकास के दृष्टिकोण से विमुक्त घुमंतू और अर्धघुमंतू जनजातियां देश का सबसे अंतिम लोगों का समुदाय है. महात्मा गांधी ने कहा था कि कोई भी सरकारी योजना देश के अंतिम व्यक्ति को ध्यान में रखकर बनाई जानी चाहिए यानी योजना इस तरह से बनाई जानी चाहिए कि देश के अंतिम व्यक्ति तक उस योजना का लाभ पहुंचे. लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी समाज की अंतिम पंक्ति में खड़ी विमुक्त घुमंतू जनजातियों तक सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं पहुंचा है. विकास के लिए बनाई गईं सरकारी योजनाएं इन जनजातियों तक पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देती हैं.
ऐतिहासिक दृष्टि से विमुक्त-घुमंतू और अर्ध घुमंतू जनजातियां जल-जंगल और जमीन के रक्षक रहे हैं. विमुक्त घुमंतू जनजातियों ने एक लंबा दौर जंगलों में रहकर बिताया है. जंगल के रास्तों के जानकार होने और गोरिल्ला युद्ध कला में निपुण होने के चलते ये लोग अंग्रेजों को चकमा देने में कामयाब रहे. विमुक्त घुमंतू जनजातियों की गोरिल्ला युद्ध में निपुणता के चलते अंग्रेजी हुकूमत इन जनजातियों से परेशान थी. इन लोगों पर दबिश डालने के लिए अंग्रेजों ने 1871 में क्रिमिनल ट्राइब एक्ट लगा दिया. क्रिमिनल ट्राइब एक्ट के बाद इन जनजातियों पर अंग्रेजी हुकूमत का दमन बढ़ गया. 1857 की क्रांति में अपनी बड़ी भूमिका निभाने वाली विमुक्त घुमंतू जनजातियों की स्थिति आजाद भारत में दयनीय है.
1949 में बनी अयंगर कमेटी की सिफारिश को मानते हुए केंद्र सरकार ने 31 अगस्त 1952 को इन जनजातियों को ‘डिनोटिफाई’ किया. देश आजाद होने के बाद 5 साल 16 दिनों तक भी विमुक्त घुमंतू जनजातियां गुलाम बनी रहीं. 31 अगस्त 1952 तक इन जनजातियों से जुड़े लोगों को गांव व शहर से बाहर जाने के लिए गांव के मुखिया व शहर के संबंधित अधिकारी के यहां नाम दर्ज करवाकर जाना होता था. इस तरह यह विमुक्त जनजातियां आजाद भारत में भी 5 साल तक गुलामी का दंश झेलती रही.
रैनके कमीशन-2008 के अनुसार देशभर में 198 विमुक्त जनजातियां और 1500 घुमंतू एवं अर्धघुमंतू जनजातियां हैं. आयोग की रिपोर्ट के अनुसार इन जनजातियों में से 50 फीसदी लोगों के पास अपने दस्तावेज नहीं हैं तो वहीं 98 फीसदी लोगों के पास रहने के लिए मकान नहीं है. आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और शैक्षणिक रूप से देश के सबसे पिछड़े समुदाय का सरकारी योजनाओं पर पहला हक होना चाहिए लेकिन आजादी से लेकर अब तक की सभी सरकारों ने विमुक्त घुमंतू जनजातियों के उत्थान को सबसे अंतिम पायदान पर रखा है.
विमुक्त घुमंतू जनजातियों के विकास को लेकर सरकार की गंभीरता कोे समझने के लिए पिछले 6 साल के बजट को समझा जा सकता है. पिछले 6 साल के बजट में विमुक्त घुमंतू जनजातियों के विकास के लिए केवल 45 करोड़ रुपये की राशि दी गई है. भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत चार आयोग आते हैं जिनमें से एक डीएनटी आयोग भी है इसके अलावा एससी-एसटी आयोग, पिछड़ा वर्ग आयोग और सफाई कर्मचारी आयोग भी सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधीन हैं.
2015-16 के बजट में विमुक्त घुमंतू एवं अर्धघुमंतू आयोग के लिए केवल 91 लाख और डीएनटी जनजातियों से जुड़ीं विकास योजनाओं के लिए महज 4.50 करोड़ रुपये दिए गए. यानी 2015-16 में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के 6 हजार 524 करोड़ के बजट में से इन जनजातियों के हिस्से में केवल 5.41 करोड़ रुपये की राशि आई.
वहीं 2016-17 में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को 6 हजार 565 करोड़ का बजट दिया गया लेकिन इसमें से भी डीएनटी आयोग को केवल 6.59 करोड़ का बजट मिला.
साल 2017-18 में विमुक्त जनजातियों के विकास के लिए बजट में पिछले बजट की तुलना में एक करोड़ रुपये से भी कम की बढ़ोतरी की गई. 2017-18 के बजट में विमुक्त जनजातियों के विकास के लिए कुल 7.32 करोड़ का बजट दिया गया जबकि इस साल मंत्रालय को 6 हजार 908 करोड़ का बजट दिया गया था.
2018-19 में इन जनजातियों के हिस्से केवल 9 करोड़ का बजट आया वहीं मंत्रालय को 7 हजार 750 करोड़ का बजट मिला.
YEAR | 2015-16 | 2016-17 | 2017-18 | 2018-19 | 2019-20 | 2020-21 |
Budget in CR | ||||||
National commission for DNT | .91 | 2.09 | 1.92 | |||
Schemes for development of DNT | 4.50 | 4.50 | 5.40 | 10 | 10 | 11.24 |
इसी तरह 2019-20 के बजट में भी केंद्र सरकार की ओर से इन जनजातियों के उत्थान की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया. 2019-20 के बजट में केवल एक करोड़ रुपये की बढ़ोतरी के साथ महज 10 करोड़ की राशि दी गई. जबकि मंत्रालय के कुल बजट में पिछले साल के बजट की अपेक्षा करीबन एक हजार करोड़ की बढ़ोतरी हुई. 2019-20 में मंत्रालय के 8 हजार 885 करोड़ के बजट में से विमुक्त घुमंतू जनजातियों के हिस्से केवल 10 करोड़ का बजट आया.
वहीं 2020-21 में सामाजिक न्याय मंत्रालय के 10 हजार 103 करोड़ के बजट में से डीनोटिफाइड ट्राइब्स को केवल 11.24 करोड़ का बजट दिया गया.
वर्ष | 2015-16 | 2016-17 | 2017-18 | 2018-19 | 2019-20 | 2020-21 |
बजट (करोड़) | 6,524 | 6,565 | 6,908 | 7,750 | 8,885 | 10,103 |
पिछले 6 साल में विमुक्त घुमंतू जनजातियों के लिए उत्थान के लिए केवल 45 करोड़ खर्च किए गए यानी सामाजिक न्याय मंत्रालय के पिछले 6 साल के 35 हजार 954 करोड़ के कुल बजट में से विमुक्त घुमंतू जनजातियों के हिस्से महज 45 करोड़ रुपये का बजट आया है.
आजादी से लेकर अब तक डीएनटी समुदाय के विकास के लिए कईं कमेटियां और आयोग बनाए गए लेकिन किसी भी आयोग और कमेटी की सिफारिशों को लागू नहीं किया गया. सबसे पहले 1949 में अयंगर कमेटी बनाई गई. 1967 में लोकूर कमेटी, रैनके कमीशन-2008 और इदाते कमीशन-2018. सभी आयोग और कमेटियों ने समय-समय पर अपनी सिफारिशें दी लेकिन अब तक किसी भी सरकार ने इन सिफारिशों को लागू करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई है. वहीं रैनके कमीशन और इदाते कमीशन की रिपोर्ट चर्चा के लिए संसद में भी पेश नहीं की गई हैं.