अजय मिश्रा ‘टेनी’ द्वारा पेश किया गया क्रिमिनल प्रोसिजर (आइडेंटीफिकेशन) बिल ध्वनि मत से पारित

 

सोमवार को लोकसभा में क्रिमिनल प्रोसिजर (आइडेंटीफिकेशन) बिल 2022 पारित हो गया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा कानून के बारे में संसद सदस्यों द्वारा उठाई गई चिंताओं को संबोधित करने के बाद बिल को निचले सदन में ध्वनि मत से पारित कर दिया है.

उन्होंने कहा, “कोई आशंका नहीं होनी चाहिए, नई पीढ़ी के अपराधों को पुरानी तकनीकों से नहीं निपटा जा सकता। हमें आपराधिक न्याय प्रणाली को नए युग में ले जाने का प्रयास करना होगा।”

केंद्रीय गृह मंत्री ने यह भी कहा कि आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक पुलिस और जांच एजेंसियों को अपराधियों से दो कदम आगे रहने का अधिकार देगा। विधेयक का समर्थन करने वाले वाईएसआरसीपी के मिधुन रेड्डी ने चर्चा के दौरान कहा कि 70 से अधिक देश जांच एजेंसियों की सहायता के लिए इसी तरह के कानूनों पर भरोसा करते हैं।

हालांकि, विपक्षी सदस्यों ने कानून को “कठोर” करार दिया और मांग की कि इसे एक संसदीय स्थायी समिति के पास भेजा जाए। सोमवार को लोकसभा में विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए, कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कानून को “कठोर और नागरिक स्वतंत्रता के खिलाफ” करार दिया। द्रमुक के दयानिधि मारन ने कहा कि विधेयक संघवाद की भावना के खिलाफ है, जबकि टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा कि कानून उस व्यक्ति की निजता का उल्लंघन कर सकता है जिसे अपराध का दोषी भी नहीं ठहराया गया है।

क्रिमिनल प्रोसीजर (आइडेंटिफिकेशन) बिल 2022 में प्रावधान किया गया है कि जो भी गंभीर अपराध के मामले हैं या जिसमें 7 साल से ज़्यादा सजा हो सकती है, या फिर महिलाओं और बच्चों के ख़िलाफ़ किए गए अपराध में आरोपी और संदिग्ध के सैंपल लिए जा सकेंगे।

बिल गिरफ्तार किए गए किसी व्यक्ति के निजी बायोलॉजिकल डाटा इकट्ठा करने की छूट देता है। इसमें पुलिस को अंगुलियों, पैरों, हथेलियों के निशान, रेटिना स्कैन, भौतिक, जैविक नमूने और उनके विश्लेषण, हस्ताक्षर, लिखावट या अन्य तरह का डाटा एकत्र करने की छूट होगी।

कानून का रूप लेने के बाद यह बिल कैदियों की पहचान अधिनियम, 1920 की जगह लेगा। मौजूदा कानून केवल ऐसे कैदियों की सीमित जानकारी एकत्र करने की बात कहता है जो या तो दोषी करार हो चुके हैं या फिर सजा काट रहे हैं। इसमें भी केवल उंगलियों के निशान और पदचिह्न ही लिया जा सकता है।

नया कानून किन लोगों पर लागू होगा?

प्रस्तावित कानून तीन तरह के लोगों पर लागू होगा। पहला ऐसे लोग जिन्हें किसी भी अपराध में सजा मिली है। दूसरा ऐसे गिरफ्तार लोग जिन पर किसी भी कानून के तहत सजा के प्रावधान की धाराएं लगी हैं। इसके साथ ही ऐसे लोग जिन पर सीआरपीसी की धारा 117 के तहत शांति बनाए रखने के लिए कार्रवाई की गई है। उन पर भी ये कानून लागू होगा।

कैसे इकट्ठा किया जाएगा यह डाटा ?

बिल के अनुसार यह डाटा राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) अपने पास सुरक्षित रखेगी । NCRB यह डाटा राज्य या केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन या किसी दूसरी कानूनी एजेंसी से लेगी। NCRB के पास इस डाटा को संग्रहित करने उसे संरक्षित करने और उसे नष्ट करने का अधिकार होगा। इस डाटा को 75 साल तक सुरक्षित रखा जा सकेगा। इसके बाद इसे खत्म कर दिया जाएगा। हालांकि, सजा पूरी होने या कोर्ट से बरी होने की स्थिति में डेटा को पहले भी खत्म किया जा सकता है।

डाटा को इतने लम्बे समय तक क्यों रखना चाह रही है सरकार?
यह बिल गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा ने पेश किया था, मिश्रा ने कहा था कि मौजूदा कानून 102 साल पुराना है। इस दौरान अपराध की प्रकृति में बड़ा बदलाव आया है, इसलिए कानून में बदलाव जरूरी है। इस बदलाव से अपराधियों के शारीरिक मापदंड का रिकॉर्ड रखने के लिए आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल की इजाजत मिलेगी। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया ने अपराध और अपराधियों पर नकेल कसने के लिए कानून में अहम बदलाव किए हैं।

मंत्री के अनुसार बिल के कानूनी जामा पहनने के बाद एक ही अपराधी द्वारा बार-बार अपराध किए जाने पर सुबूतों के अभाव की समस्या खत्म होगी। पुलिस के पास सभी अपराधियों का हर तरह का डाटा मौजूद रहेगा। इससे जांच करने और सुबूत इकट्ठा करने में आसानी होगी।

क्या है विपक्ष का कहना
पश्चिम बंगाल, बहरामपुर से कांग्रेस के लोकसभा सांसद अधीर रंजन चौधरी ने सदन में इस बिल को निजी एवं नागरिक अधिकारों पर हमला बताते हुए प्राइवेसी में सेंध बताया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री अमित शाह तक सब पर कभी ना कभी केस हुए हैं तो क्या वो अपना सारा बायलोजिकल डाटा देंगे? क्यों न यह सब आम जनता से पहले हम सब से शुरू किया जाए? उनका कहना है कि यह हर नागरिक की प्रोफाइलिंग के लिए है। उन्होंने आगे कहा कि इस बिल के जरिए क्रीमिनल इंवेस्टीगेशन का प्राइवेटाइजेशन (आपराधिक जांच का निजीकरण) होने जा रहा है क्योंकि बिल में निजी एजेंसी के डाटा एकत्रित करने की बात भी कही गई है। उन्होंने बिल को स्टैंडिंग कमेटी को भेजने की मांग की।