NEET परीक्षा में OBC आरक्षण के सवाल पर कितने गंभीर हैं हरियाणा के ओबीसी समुदाय के नेता!

 

12 सितम्बर 2021 को देशभर में NEET (नेशनल एलिजिब्लिटी एंट्रेंस टेस्ट) करवाया जाएगा. नीट डॉक्टर बनने की पढाई के लिए करवाई जाने वाली राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा है. नीट पास करने के बाद ही किसी व्यक्ति को देश के सरकारी कॉलेज में डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए दाखिला मिलता है.

लेकिन इसको लेकर एक विवाद छिड़ गया है. देश के कई संगठन इस परीक्षा का विरोध कर रहे हैं. उनके अनुसार इसमें OBC को छोड़कर बाक़ी सभी वर्गों को आरक्षण दिया जा रहा है और ये संविधान में दर्ज़ आरक्षण की मूल भावना के ख़िलाफ़ है.

2017 तक डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए PMT यानी प्री मेडिकल टेस्ट नामक परीक्षा होती थी. प्री मेडिकल टेस्ट को लेकर साल 1984 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक निर्णय के द्वारा इसमें AIQ यानी “ऑल इंडिया कोटा” लागू कर दिया.

ऑल इंडिया कोटा के तहत सभी राज्यों के मेडिकल कॉलेज में 15 प्रतिशत अंडर ग्रेजुएट और 50 प्रतिशत पोस्ट ग्रेजुएट सीटें केंद्र सरकार को दे दी गईं. ऐसा करने के पीछे कोर्ट ने दलील दी कि अक्सर राज्यों के मेडिकल कॉलेज में उसी राज्य के बच्चों को तरजीह दी जाती थी इसलिए ऐसा करना ज़रूरी था.

OBC वर्ग को करीबन 11 हजार सीटों का नुक़सान

“ऑल इंडिया ओबीसी फेडरेशन” जो कि केंद्र सरकार में काम कर रहे 40 से अधिक अन्य पिछड़ा वर्ग के संगठनों का एक समूह है, उसने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि आरक्षण न मिलने से पिछले तीन सालों में OBC वर्ग को करीबन 11 हजार सीटों का नुक़सान हुआ है. उनके अनुसार इस नुक़सान का फ़ायदा सामान्य वर्ग के लोगों को हुआ है.

साल 2017 से लेकर 2020 के दौरान इन सीटों पर ओबीसी आरक्षण ना मिलने से

• पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम (मेडिकल-एमडी, एमएस) में 7,307

• अंडर-ग्रेजुएट प्रोग्राम (मेडिकल-एमडी, एमएस) में 3,207

• पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम (डेंटल) में 262 और

• अंडर-ग्रेजुएट प्रोग्राम में 251 छात्रों का नुक़सान हुआ है.

हरियाणा के OBC वर्ग में इसको लेकर किस तरह की हलचल है?

इस मामले पर हमने सबसे पहले हरियाणा के उन नेताओं से बातचीत की जो OBC वर्ग से आते हैं और केंद्र सरकार में हरियाणा कोटे से मंत्री हैं.

इनमें सबसे पहला नाम है गुडगाँव से सांसद राव इंद्रजीत सिंह का जो कि अहीर जाति से आते हैं और फ़िलहाल हरियाणा से केंद्र में सबसे ऊँचे कद के मंत्री भी हैं.

इस मसले पर जब हमने उनसे बात करने की कोशिश कि तो पहली बार में उनके निजी सचिव ने कहा कि मंत्री जी अभी संसदीय सत्र में व्यस्त हैं और बाद में बात करेंगे.

दूसरी बार संपर्क करने पर उनके निजी सचिव ने कहा कि मंत्री जी का कहना है कि इस मसले को लेकर हम उनकी बजाय राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग से संपर्क करें.

जवाब में जब हमने कहा कि हम राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग से बात कर चुके हैं. अब हमें इस मसले को लेकर माननीय सांसद जी की राय लेनी है और वो हमारे सवाल सुने बिना ही हमें राष्ट्रिय पिछड़ा आयोग से बात करने की सलाह क्यों दे रहे हैं?

अंत में उनके निजी सचिव ने कहा कि हम उनको हमारे सवाल भेज दें. हमने अपनी तरफ़ से उनको तुरंत सवाल भेज दिए, मगर उसके बाद उनका कोई जवाब नहीं आया.

19 जुलाई से लेकर 23 जुलाई तक हमने उनके निजी सचिव को लगातार फ़ोन और मेसेज के माध्यम से संपर्क किया मगर उन्होंने न फ़ोन उठाया और न ही मेसेज पर कोई जवाब दिया.

आपको बता दें कि राव इंद्रजीत सिंह हरियाणा के अहिरवाल इलाक़े से आते हैं और यह पूरा इलाक़ा “यादव” बहुल क्षेत्र है जो कि एक बड़ा OBC समूह है. मगर यहाँ के सबसे बड़े नेता और हरियाणा से केंद्र में मंत्री, 5 बार के सांसद और 4 बार के विधायक राव इंद्रजीत सिंह ने नीट में OBC आरक्षण को लेकर हमारे सवालों का कोई जवाब नहीं दिया.

अब बात करते हैं हरियाणा से दूसरे केंद्रीय मंत्री और फ़रीदाबाद से सांसद कृष्णपाल गुर्जर की. कृष्णपाल गुर्जर तीन बार विधायक रह चुके हैं और सांसद के रूप में उनका यह दूसरा कार्यकाल है.

केंद्र सरकार में वह लगातार दूसरी बार मंत्री बने हैं. इस मामले में सांसद कृष्णपाल गुर्जर का मत जानना इसलिए और भी ज़रूरी हो जाता है क्योंकि वह केंद्र सरकार में सामाजिक न्याय राज्यमंत्री हैं और आरक्षण सामाजिक न्याय का एक महत्वपूर्ण पहलू है.

मगर हैरानी की बात है कि केंद्र में सामाजिक न्याय राज्यमंत्री के पद पर होते हुए भी सांसद कृष्णपाल गुर्जर ने गांव सवेरा से बातचीत में कहा कि, “उनको इस बारे में कोई जानकारी नहीं है और वह अपने पिछड़ा विभाग देखने वाले अधिकारी से बात करने के बाद ही हमें कुछ बता पाएँगे.”

इसके बाद हमने लगातार दो दिनों तक उनसे संपर्क किया मगर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.

हरियाणा कोटे से केंद्र में अभी यह दो ही मंत्री हैं और दोनों ही OBC वर्ग से आते हैं मगर हैरानी की बात है कि दोनों में किसी भी मंत्री ने इस मसले को लेकर न तो अब तक संसद में कोई आवाज़ उठाई है और न ही हमारे सवालों का कोई जवाब दिया.

इस मसले को लेकर हमने हरियाणा सरकार में OBC वर्ग से आने वाले मंत्रियों से भी बात की.

हरियाणा सरकार के मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री को मिलाकर कुल 12 विधायक शामिल हैं. इन 12 मंत्रियों में से महज़ 2 मंत्री OBC वर्ग से आते हैं – जगाधरी से विधायक कंवरपाल गुर्जर और नारनौल से विधायक ओमप्रकाश यादव.

कंवरपाल गुर्जर ने गाँव सवेरा से बातचीत में कहा कि, “उनको इस विषय में जानकारी नहीं थी, उन्हें तो हमारे द्वारा ही इस बात का पता चला है. मैं इस विषय में केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखूंगा और मेर मानना है कि OBC को भी इसमें आरक्षण मिलना चाहिए.”

वहीं नारनौल से विधायक ओमप्रकाश यादव मनोहर मंत्रिमंडल में ओबीसी वर्ग से दूसरे और अंतिम मंत्री है. इनका हाल भी बाक़ी के मंत्रियों जैसा ही है, इनको भी इस मामले की जानकारी नहीं थी. गाँव सवेरा से फ़ोन पर बातचीत में ओम प्रकाश यादव ने बताया कि, “उनकों इस बारे में जानकारी नहीं है इसलिए वह इस मसले पर ज़्यादा कुछ नहीं कह सकते.”

हमारे द्वारा पूरा मामला समझाए जाने पर उन्होंने कहा कि वह अवश्य इसको लेकर सरकार को पत्र लिखेंगे और ओबीसी वर्ग को भी आरक्षण मिले इस बात का समर्थन करेंगे.

हरियाणा भाजपा ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष और इंद्री से पूर्व विधायक करणदेव कम्बोज ने इस मसले पर बातचीत करते हुए चौंकाने वाली बात कही. उन्होंने कहा, “देखिए देश में कुछ ऐसी प्रतिष्ठित परीक्षाएं होती हैं जिनमें चयन आरक्षण नहीं केवल मेरिट के आधार पर होता है, उनमें नीट की परीक्षा भी शामिल है.”

फिर हमने उनको बताया कि ऐसा नहीं है और नीट की परीक्षा में आरक्षण का प्रावधान है. हमने उनके सामने ये भी स्पष्ट किया कि नीट परीक्षा में ऑल इंडिया कोटा की सीटों पर SC ओर   ST को तो आरक्षण मिल रह है, केवल OBC को नहीं मिल रहा. तब उन्हें पूरा मामला समझ आया अन्यथा इससे पहले उनको इसकी कोई जानकारी नहीं थी और उनके अनुसार तो नीट में आरक्षण का प्रावधान ही नहीं था.

भाजपा ओबीसी मोर्चा की राज्य इकाई के अध्यक्ष को देश की टॉप मेडिकल परीक्षा में आरक्षण के प्रावधानों की ग़लत जानकारी का होना कितना गंभीर है, इसका अंदाज़ा आप खुद लगा सकतें हैं.

हालांकि हमारे द्वारा तमाम जानकारियां बताने के बाद करणदेव कम्बोज ने यह ज़रूर कहा कि वह इस विषय में सरकार से बात करेंगे और OBC वर्ग को आरक्षण दिलवाने के लिए प्रयास करेंगे.

इस मामले में राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग का पक्ष जानने के लिए हमने आयोग की सदस्या डॉक्टर सुधा यादव से बात की. जानकारी के लिए आपको बता दें कि डॉक्टर सुधा यादव साल 1999 में भाजपा के टिकट पर महेंद्रगढ़ लोकसभा से चुनाव जीतकर संसद में पहुंची थीं. डॉक्टर सुधा यादव भाजपा राष्ट्रीय ओबीसी मोर्चा की पूर्व अध्यक्ष भी रह चुकी हैं.

डॉक्टर सुधा यादव ने कहा, “राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग इस मामले पर लगातार नज़र बनाए हुए है और 2 बार इस मामले को लेकर आयोग सुनवाई भी कर चुका है. हमने स्वास्थ्य मंत्रालय को इस बारे में लिखा भी है कि OBC को आरक्षण दिया जाना चाहिए. हम लगातार केंद्र सरकार के सामने इस मुद्दे को उठा रहे हैं और हमें उम्मीद है कि इस साल की परीक्षा से पहले सरकार ओबीसी आरक्षण का प्रावधान लागू कर देगी.”

जहाँ सूबे के ओबीसी वर्ग से आने वाले भाजपा सांसदों और मंत्रियों को इस मसले की जानकारी ही नहीं है, वहीं हरियाणा में विपक्ष की तरफ़ से भी इस मामले को लेकर किसी तरह की कोई ख़ास आवाज़ नहीं उठाई जा रही. हरियाणा कांग्रेस के ट्विटर हैंडल से पिछले एक महीने में इस मामले को लेकर एक भी ट्वीट नहीं किया गया.

कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे और रेवाड़ी से लगातार 6 बार विधायक रह चुके अजय यादव से हमने इस मामले को लेकर कांग्रेस का पक्ष जानने की कोशिश की मगर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.

हालांकि अखिल भारतीय कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने जुलाई महीने की शुरुआत में इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री मोदी के नाम एक चिट्ठी लिखी थी. चिट्ठी के माध्यम से सोनिया गांधी ने मांग की थी कि केंद्र सरकार ओबीसी वर्ग को आरक्षण देने का काम करें, ऐसा न करके सरकार संविधान में दर्ज़ आरक्षण की मूल भावना की अनदेखी कर रही है.

हरियाणा का ओबीसी वर्ग इसको लेकर मुखर क्यों नहीं है….

इंडिया टुडे मैगज़ीन के पूर्व सम्पादक और आरक्षण के मुद्दे पर मुखरता से अपने विचार रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने हमें बताया, “हरियाणा में यादव और सैनी, ये दो सबसे बड़े ओबीसी समुदाय हैं. जाट वर्चस्व को चुनौती देने के चक्कर में ये भाजपा के साथ जुड़े हुए हैं. वैसे भी हरियाणा में वर्ग चेतना को लेकर कभी इतनी मुखर राजनीति नहीं रही. यही कारण है कि हरियाणा का ओबीसी समाज कभी भी पिछड़ों और अगड़ों की लड़ाई में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाता.”

गौरतलब है कि हरियाणा का यादव समाज जो कि प्रदेश का सबसे बड़ा ओबीसी वर्ग है, सेना में अहीर रेजिमेंट की मांग तो समय-समय पर उठाता रहता है, मगर इस मामले को लेकर वह एकदम शांत है.

इसको लेकर वरिष्ठ पत्रकार और रेवाड़ी भास्कर के पूर्व ब्यूरो चीफ़ प्रदीप रणघोष ने हमें बताया, “हरियाणा के यादव संवैधानिक तौर पर भले ही अन्य पिछड़ा वर्ग में आते हों, मगर वे खुद को सामाजिक रूप से पिछड़ा स्वीकार नहीं करते. अहीर रेजिमेंट की मांग उनके लिए जातीय गौरव के साथ-साथ अहीर कौम के लड़ाकू और जुझारू होने का प्रतीक भी है. यहाँ के ओबीसी वर्ग ने कभी जातीय संघर्ष की लड़ाई नहीं लड़ी, इसलिए इनकी आरक्षण के प्रति समझ अभी उतनी गहरी नहीं बन पाई है, जितनी यूपी और बिहार के ओबीसी समाज की है.”

OBC आरक्षण की बहस कैसे शुरू हुई?

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब मेडिकल परीक्षा के लिए देश भर में सीटों का बंटवारा तीन अलग-अलग श्रेणियों में हो गया. पहला केन्द्र सरकार के मेडिकल कॉलेज की सीटें, दूसरा राज्य सरकारों के मेडिकल कॉलेज की सीटें और तीसरा ऑल इंडिया कोटा की सीटें.

केंद्र और राज्य सरकारों के हिस्से आनी वाली सीटों पर तो मंडल कमीशन द्वारा दिए गए आरक्षण का प्रावधान लागू था, मगर ऑल इंडिया कोटा बनाते समय सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर आरक्षण का कोई प्रावधान लागू नहीं किया. साल 1985 से लेकर 2007 तक ऑल इंडिया कोटा की सीटों पर किसी तरह का कोई आरक्षण किसी भी वर्ग को नहीं दिया गया.

साल 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने ऑल इंडिया कोटा की सीटों पर भी आरक्षण लागू कर दिया. कोर्ट ने ऑल इंडिया कोटा में 15 प्रतिशत सीटें SC के लिए और 7.5 प्रतिशत सीटें ST के लिए आरक्षित कर दी. हैरानी की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फ़ैसले में OBC आरक्षण का कोई ज़िक्र नहीं किया.

यानी कि मौजूदा स्तिथि में यदि कोई OBC छात्र नीट की परीक्षा पास कर ऑल इंडिया कोटा के तहत दाखिला लेता है तो उसको राज्यों के सरकारी मेडिकल कॉलेज में आरक्षण नहीं मिलेगा. वहीं यदि कोई SC या ST समुदाय का छात्र ऑल इंडिया कोटा के तहत दाखिला लेता है तो उनको आरक्षण का लाभ मिलेगा.

2021 में भी ऑल इंडिया कोटा में बिना OBC आरक्षण के नीट की परीक्षा होने जा रही है

नीट परीक्षा के साल 2021 के नोटिफ़िकेशन  में केंद्र सरकार ने साफ़ कर दिया है कि वह इस बार भी ऑल इंडिया कोटा में OBC आरक्षण नहीं लागू कर रही.

मद्रास हाई कोर्ट के फ़ैसले पर केंद्र सरकार ने कहा है कि उन्होंने कोर्ट के आदेश के मुताबिक़ पांच सदस्यीय कमेटी बनाई थी और उसकी रिपोर्ट भी उनके पास आ चुकी है.

केंद्र सरकार का कहना है कि वो इस रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में रखेंगे. दरअसल सुप्रीम कोर्ट में 2015 के एक दूसरे मामले में सुनवाई चल रही है. ये मामला सलोनी कुमारी बनाम केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) का है, जिसमें ऑल इंडिया कोटा में ओबीसी आरक्षण न मिलने को लेकर ही सवाल उठाया गया है.

केंद्र सरकार ने कहा है कि जब तक सलोनी कुमार के केस में सुप्रीम कोर्ट से कोई फ़ैसला नहीं आ जाता, वो इस मामले पर कोई निर्णय नहीं ले सकती.

आरक्षण लागू न करने के पीछे केंद्र सरकार दे रही कोर्ट केस का हवाला

दरअसल इस पूरे मामले को लेकर मद्रास हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई. कोर्ट में मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया ने सरकार की तरफ़ से दलील दी कि ऑल इंडिया कोटा में आरक्षण को लेकर साल 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश दिया था, वो उस आदेश में बदलाव नहीं कर सकते.

कोर्ट ने इसके जवाब में कहा था कि ये कोई क़ानूनी या संवैधानिक अड़चन नहीं है जिसकी वजह से OBC को आरक्षण नहीं दिया जा सकता.

हाई कोर्ट ने 27 जुलाई 2020 को मेडिकल काउंसिल ऑफ़ इंडिया की दलीलों को खारिज करते हुए केंद्र सरकार को आदेश दिया कि वो एक कमेटी बनाकर ऑल इंडिया कोटा में OBC आरक्षण लागू करने का मसौदा तैयार करें. कोर्ट ने इसके लिए सरकार को तीन महीनों का वक़्त दिया था.

इस मसले को लेकर जब हमने ओबीसी वर्ग के उन छात्रों से बात की जो नीट की तैयारी कर रहे हैं या नीट क्लियर कर मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं, तो भी हमें मिले-जुले जवाब ही सुनने को मिलें.

ऑल इंडिया कोटा सीट पर दाख़िला लेकर तेलंगाना के एक मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई कर रही रेवाड़ी की दिव्या यादव का कहना है कि, “ओबीसी और सामान्य वर्ग की कट ऑफ में अधिक अंतर नहीं रहता, लेकिन मैं मानती हूं कि या तो आरक्षण सबको मिले या किसी को न मिले.”

वहीं रोहतक के सरकारी मेडिकल कॉलेज में पढाई कर रहे दीपेश का मानना है कि यदि वह आज इस मुकाम तक पहुंचा है, तो उसमें ओबीसी आरक्षण का अहम योगदान है. बिना ओबीसी आरक्षण के उसका दाख़िला संभव नहीं था. इसलिए वह चाहता है कि केंद्र और राज्य की सीटों के साथ-साथ   ऑल इंडिया कोटा की सीटों पर भी ओबीसी को आरक्षण दिया जाना चाहिए.