सरकार की किसानों से जालसाज़ी, खरीफ फसलों पर तय एमएसपी लागत से बहुत कम
केंद्र सरकार ने बुधवार 8 जून 2022 को धान समेत 14 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा की है. सरकार ने सामान्य ग्रेड के धान के एमएसपी में 100 रूपए प्रति क्विंटल का इजाफा करते हुए इसे 2021-22 के 1940 रूपए से बढ़ाकर 2022-23 के लिए 2040 रूपए प्रति क्विंटल कर दिया है.
वहीं फसलों जैसे कि ज्वार हाइब्रिड का एमएसपी 232 रूपए बढ़ा कर 2970 रूपए, रागी 201 रूपए बढ़ाकर 3578 रूपए, मक्का 92 रूपए बढ़ाकर 1962 रूपए, अरहर 300 रूपए बढ़ाकर 6600 रूपए, मूंग 480 रूपए बढ़ाकर 7755 रूपए, उड़द 300 रूपए बढ़ाकर 6600 रूपए, मूंगफली 300 रूपए बढ़ाकर 5850 रूपए, सूरजमुखी बीज 385 रूपए बढ़ाकर 6400 रूपए, सोयाबीन 350 रूपए बढ़ाकर 4300 रूपए, और तिल 523 रूपए बढ़ाकर 7830 रूपए क्विंटल किया गया है. मध्यम रेशा वाली कपास का एमएसपी 354 रूपए बढ़ा है और यह 6080 रूपए हो गया है.
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की तरफ से जारी विज्ञप्ति में यह दावा किया गया है कि यह एमएसपी किसानों की लागत की तुलना में 50 से 85 फीसदी तक अधिक है. लेकिन बुधवार को ही अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में रिज़र्व बैंक ने साल 2022-23 में खुदरा महंगाई दर, 6.7 फीसदी रहने का अनुमान किया है. वहीं सरकार ने 14 फसलों की एमएसपी में औसतन 5.8% की वृद्धि की है.
सीधे शब्दों में कहें तो एक तरफ सरकार यह दावा कर रही है कि उन्होंने किसानों की फसल में लागत से ज्यादा एमएसपी तय किया है, तो वहीं दुसरी ओर रिज़र्व बैंक ने साल 2022-23 तक महंगाई दर 6.7 फीसदी होने का अनुमान लगाया है. इसका अर्थ यह है कि खेती में इस्तेमाल ईंधन, मशीनरी, उर्वरक, कीटनाशक इत्यादि की लागत लगातार बढ़ रही है. इस तरह एमएसपी में हुई वृद्धि महंगाई दर से कम है.
सरकार का कहना है कि लागत में किराया, मानव श्रम, बैल श्रम/मशीन श्रम, पट्टे की भूमि के लिए दिया गया किराया, बीज, उर्वरक, खाद, सिंचाई आदि का खर्च, उपकरणों और फार्म भवनों का मूल्यह्रास, कार्यशील पूंजी पर ब्याज, पंप सेटों आदि के लिए डीजल/बिजली, अन्य व्यय और पारिवारिक श्रम का मूल्य शामिल है.
किसान नेता योगेन्द्र यादव ने गांव सवेरा को बताया कि जिन 14 फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा की गई है उनमें से 11 फसलों में बढ़ोतरी रिजर्व बैंक की अनुमानित महंगाई दर से कम है. इस तरह सरकार ने किसान की फसल का दाम घटा दिया है. सरकार ने स्वामीनाथन कमीशन द्वारा सिफारिश की गई फसल की लागत पर डेढ़ गुना एमएसपी नहीं बढ़ाया, बल्कि ए2+एफएल पर डेढ़ गुना बढ़ा कर एमएसपी तय की है.
योगेन्द्र यादव ने कहा कि अगर सरकार स्वामीनाथन कमीशन के हिसाब से धान पर एमएसपी तय करती तो एमएसपी 2,040 रूपए नहीं बल्कि 2,708 रूपए होती, यानि कि धान के हर क्विंटल पर सरकार 668 रूपए की लूट कर रही है. सरकार ने किसानों से खरीफ की लगभग हर फसल पर 1,000 रूपए से ज्यादा का धोखा किया है.
इसी विषय पर फार्म एक्सपर्ट रमनदीप सिंह मान ने गांव सवेरा से कहा, “खरीफ की फसलों पर एमएसपी की घोषणा के अगले दिन कमीशन फॉर एग्रीकल्चरल कोस्ट एंड प्राइसेज़ ने खरीफ की इन्ही फसलों पर औसत लागत के मूल्यांकन की रिपोर्ट जारी की, जिसमें कुछ और ही तस्वीर निकल कर सामने आई. इस रिपोर्ट में लागत को ध्यान में रख कर ही एमएसपी को तय किया जाता है. रिपोर्ट के अनुसार खरीफ फसलों की लागत पर समग्र इनपुट मूल्य सूचकांक* में 6.8% की बढौतरी साल 2022-23 में हुई है.”
{*समग्र इनपुट मूल्य सूचकांक (कम्पोजिट इनपुट प्राइस इंडेक्स) में मानव श्रम, बैल श्रम, मशीन श्रम, बीज, उर्वरक, खाद, सिंचाई इत्यादि को जोड़ कर फसल की मूल लागत तय की जाती है, जिसके बाद ही सरकार फसलों पर एमएसपी निर्धारित करती है.}
रमनदीप सिंह मान ने बताया कि सरकार ने 14 फसलों की एमएसपी में से 12 फसलों की एमएसपी में 6.8% से कम की बढौतरी की है. यदि फसल उगाने में खर्च (समग्र इनपुट मूल्य लागत), सरकार द्वारा फसलों पर तय एमएसपी से ज्यादा है तो ऐसे में किसानों को ही नुकसान है.
इस को लेकर विपक्ष की कांग्रेस पार्टी ने सरकार पर हमला किया है. पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने 9 जून को आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने बयान में कहा कि एक बार फिर मोदी सरकार ने खरीफ फसलों के 2022-23 के समर्थन मूल्य घोषित करने में देश के किसानों के साथ घोर विश्वासघात किया है. किसान की आमदनी बढ़ाना तो दूर, किसान का दर्द सौ गुना बढ़ा दिया है. उन्होंने दावा किया कि एक तरफ सरकार पर्याप्त मात्रा में फसल नयूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर नहीं खरीद रही है, वहीं दूसरी ओर लागत बढ़ाकर किसानों की आमदनी को आधा कर दिया है.
रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि एनएसएसओ ने हाल ही में जारी रिपोर्ट में बताया था कि किसानों की औसत आमदनी 27 रूपए प्रतिदिन रह गई है और औसत कर्ज 74,000 रूपए हो गया है. मोदी सरकार को किसानों से सरोकार है तो सिर्फ समर्थन मूल्य घोषित करने की औपचारिकता का छलावा करने की अपेक्षा वह समर्थन मूल्य का कानून बनाए.