घुमंतू जनजातियों की ‘भांतू भाषा’ को बचाने के प्रयास में शुरू हुआ ‘नोमेड टाइम्स’!
विलुप्त होने की कगार पर खड़ी विमुक्त घुमंतू समुदाय की ‘भांतू’ भाषा को बचाने के प्रयास में यू-ट्यूब चैनेल ‘नोमेड टाइम्स’ की शुरुआत हुई है. अहमदाबाद के छारानगर में रहने वाले कुछ युवाओं ने मिलकर ‘नोमेड टाइम्स’ नाम से ‘भांतू’ भाषा में यू-ट्यूब चैनल शुरू किया है. नोमेड टाइम्स के जरिए घुमंतू जनजातियों से जुड़ी सामाजिक भेदभाव की कहानियों, लोक-गीत, नाटक, कला और समयसामयिक घटनाओं को कवर किया जाएगा.
डिनोटिफाइड ट्राइब्स की ‘भांतू’ भाषा को बचाने के लिए पहले से भी कईं प्रयास किए जा रहे हैं. डिनोटिफाइड ट्राइब्स से आने वालीं रोहिनी ने यू-ट्यूब चैनेल ‘नोमेड टाइम्स’ के लॉचिंग कार्यक्रम में कहा “भाषा से दूर होने के कारण आपसी मेलजोल कम होता है. ऐसे में अगर भाषा को बढ़ावा मिलेगा तो इन जनजातियों के लोग आपस में जुड़े रहेंगे. इसलिए हमारे लिए यह जरुरी है कि यह भाषा हमारे बीच जिंदा रहे. साथ ही इस चैनल के जरिए इन जनजातियों की महिलाओं को भी अपनी बात रखने को मौका मिलेगा”
भांतू भाषा को बढ़ावा देने के लिए इसी कड़ी में छारानगर से ‘बुद्धन थियेटर’ भी चलाया जा रहा है. बुद्धन थियेटर ने भांतू भाषा को नाटक के जरिए देश के अलग-अलग हिस्सों में लोगों के बीच ले जाने का कम किया है.
अपनी टीम के साथ मिलकर ‘नोमेड टाइम्स’ की शुरुआत करने वाले आतिष छारा ने बताया, ” नोमेड टाइम्स के जरिए घुमंतू जनजातियों के करोड़ों लोग आपस में जुड़ेंगे. नई पीढ़ी के बीच इस भाषा का प्रसार-प्रचार होगा. जिसके जरिए हमारी ‘भांतू’ भाषा जिंदा रह पाएगी. ‘नोमेड टाइम्स’ के जरिए हम घुमंतू जनजातियों से जुड़ी सामाजिक भेदभाव की कहानियों, लोकगीत, नाटक, कला और समयसामयिक घटनाओं को दिखाएंगे. इसके साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति और इऩ जनजातियों की अपनी जमीन के संघर्ष से जुड़ी घटनाओं को सामाज के सामने लेकर आने का प्रयास रहेगा.”
वहीं अपनी भाषा में चैनल शुरू करने की जरूरत क्यों पड़ी के सवाल पर आतिष ने कहा, “मुख्यधारा का मीडिया हमारी जनजातियों को हमेशा से गलत तरीके के पेश किया है. इसलिए हमें जरुरत महसूस हुई कि हमारी भाषा में ही अपना मीडियम होना चाहिए. नोमेड टाइम्स की टीम में डिनोटिफाइड ट्राइब्स से जुड़े लोग ही रहेंगे. हमारी टीम में कुल नौ सदस्य हैं जिनमें आतिष इन्द्रेकर छारा, कुशल बाटूंगे, अनीश गारंगे, रुचिका कोडकर, जयेन्द्र राठौड़, सिद्धार्थ गारंगे,स्नेहल बंगाली, हरिवंश गुमाने. साहिल बंगाली शामिल हैं.
भांतू भाषा बोलने वाली जनजातियां राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब से लेकर अंडमान निकोबार तक हैं. लेकिन पिछले कुछ दशकों से इस भाषा का दायरा सिकुड़ता जा रहा है और ‘भांतू’ बोलने और समझने वाली आबादी घटती जा रही है.
डिनोटिफाइड ट्राइब्स से आने वाली छारा,सांसी, कंजर, भाट, नट, भिली और अन्य कईं घुमंतू जनजातियां भांतू भाषा का प्रयोग करती हैं. भारत में भांतू बोलने वाले करीबन 30 लाख लोग हैं. वहीं इन घुमंतू जनजातियों की एक कोड लेंगवेज भी है. जिसको नारसी-पारसी के नाम से जाना जाता है.