गेहूं खरीद में पंजाब सबसे आगे, लॉकडाउन में भी 77% खरीद पूरी

 

पूरी दुनिया कोरोना संकट से जूझ रही है। महामारी की रोकथाम के लिए लागू हुए लॉकडाउन ने काम-धंधे ठप कर दिए हैं। लेकिन ऐसी विकट परिस्थतियों में खेती और ग्रामीण अर्थव्यवस्था लोगों को सहारा दे रही है। देश के खाद्यान्न भंडार भरे पड़े हैं। यह संभव हो पाया है 60 के दशक में सुधरनी शुरू हुई सरकारी वितरण और खरीद प्रणाली के बूते।

लोगों को सस्ती दरों पर अनाज मुहैया कराने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की एजेंसियां किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर गेहूं व धान जैसी कई फसलों की खरीद करती हैं। इससे किसानों को फसल का उचित दाम और देश को खाद्य सुरक्षा मिलती है। इसमें राज्यों के साथ-साथ केंद्र सरकार की भी इसमें बड़ी भूमिका है।

इस साल जब महामारी फैलनी शुरू हुई तब गेहूं, धान व सरसों जैसे रबी फसलों की कटाई जोरों पर थी। लॉकडाउन के चलते सरकारी खरीद देर से शुरू हुई। हालांकि, कृषि और मंडी से जुड़े कामों को छूट दी गई थी। लेकिन जब सब कुछ बंद था तो फसल कटाई और सरकारी खरीद में भी कई अड़चनें आईं। फिर सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल भी रखना था।

आधी से ज्यादा गेहूं खरीद पूरी 

किसानों के साथ-साथ सरकारी खरीद तंत्र और मंडी व्यापारियों की तारीफ करनी होगी, जिनकी मदद से लॉकडाउन के बावजूद गेहूं खरीद का 56 फीसदी लक्ष्य पूरा हो चुका है। वह भी तब जबकि पूरा देश महामारी के खौफ, लॉकडाउन की मार और लेबर की किल्लत से जूझ रहा है।

चालू रबी सीजन के दौरान देश में 407 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें से 227 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी है। इसमें सबसे बड़ा योगदान पंजाब और हरियाणा का है। अब तक हुई गेहूं खरीद में इन दो राज्यों ने 70% योगदान किया है, जबकि देश के कुल गेहूं उत्पादन में इनकी हिस्सेदारी करीब 30% है।

लॉकडाउन के बावजूद पंजाब में 104 लाख टन गेहूं खरीदा गया है जो 185 करोड़ टन के अनुमानित उत्पादन का करीब 56% और 135 लाख टन के खरीद लक्ष्य का 77% है।

5 दिन बाद खरीद शुरू करने वाले हरियाणा में करीब 56 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है, जो 115 लाख टन के अनुमानित उत्पादन का करीब 49% और 95 लाख टन के खरीद लक्ष्य का 59% है।

दरअसल, पंजाब-हरियाणा की मजबूत खरीद प्रणाली और मंडी व्यवस्था ही इन्हें इस मामले में बाकी राज्यों से अलग करती है। यह इन राज्यों में किसानों के लंबे संघर्ष का नतीजा है। सरकारी खरीद की वजह से किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ मिल पाता है। ऐसे समय जब किसान अपनी उपज कौड़ियों के भाव बेचने को मजबूर है, सरकारी खरीद प्रणाली पर दारोमदार बढ़ जाता है।

यूपी पिछड़ा, बिहार जीरो  

देश में सबसे ज्यादा गेहूं पैदा करने वाले उत्तर प्रदेश में अब तक 11 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है जो राज्य के कुल उत्पादन का महज 3% और 55 लाख टन के खरीद लक्ष्य का करीब 20% है। इससे भी बुरा हाल बिहार का है जहां गेहूं की खरीद जीरो है।

यूपी में जूट बोरियों की कमी को खरीद पिछड़ने की वजह बतायाा जा रहा है। इस वजह को नजरअंदाज भी कर दें तो इस साल उत्तर प्रदेश ने 55 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य रखा है जो अनुमानित उत्पादन का सिर्फ 15% है। जबकि पंजाब में उत्पादन के मुकाबले 73% और हरियाणा में 83% गेहूं की खरीद का लक्ष्य रखा गया है। गेहूं खरीद के मामले में यूपी मध्य प्रदेश से भी पीछे है। 

मध्य प्रदेश में करीब 45 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी है जो 190 लाख टन के अनुमानित उत्पादन का 24% और 100 लाख टन के खरीद लक्ष्य का 45% है। उधर, राजस्थान में अभी तक केवल 2.5 लाख टन गेहूं खरीदा गया है जबकि इस साल राज्य में करीब 100 लाख टन गेहूं के उत्पादन का अनुमान है। राजस्थान में उत्पादन के मुकाबले सिर्फ 17% गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा गया और अब तक 3% गेहूं की खरीद भी नहीं हुई है।

सरकारी खरीद पर अंकुश के प्रयास 

पिछले कई वर्षों से सरकारी खरीद पर अंकुश लगाने की कोशिशें जारी है। साल 2015-16 से 2019-20 के बीच देश में गेहूं खरीद केंद्रोंं की संंख्या करीब 25% घटी है। जबकि इस दौरान गेहूं का उत्पादन बढ़ा है। सरकारी खजाने पर बोझ घटाने के लिए केंद्र सरकार राज्यों को गेहूं व धान पर बोनस देने से भी रोकती रही है।

मौजूदा आपदा ने सरकारी खरीद पर अंकुल लगाने की नीति को गलत साबित कर दिया है। सोचिए, अगर अनाज भंडार भरे न होते तो मास्क और सैनिटाइजर की तरह खाद्यान्न की कालाबाजारी भी शुरू हो जाती।