केवल रोजगार के आंकड़े काफी नहीं, रोजगार में गुणपूर्णता जरूरी!
बेहतर आर्थिक वृद्धि मौजूदा दौर के हर ‘राष्ट्र राज्य’ की पहली प्राथमिकता है। और इस प्राथमिकता को हासिल करने के लिए जरूरी है अर्थव्यवस्था का पहिया तेज गति से घूमे। पहिए की गति उत्पादन (प्रोडक्शन) पर निर्भर करती है। जितना अधिक उत्पादन होगा उतने ही अधिक गति से पहिया दौड़ेगा। उत्पादन मुख्यत दो कारकों पर टिका रहता है–पहला पूंजी और दूसरा मजदूर।
लेकिन मशीनें आ जाने के बाद उत्पादन के मामले में मजदूरों के पास सौदेबाजी की ताकत कम हो गई। अब मजदूरों के लिए काम मिलना जरूरी था। काम की कमतर गुणवत्ता और वेतन की कमी के बावजूद मजदूर के पास कोई विकल्प नहीं रहा।
कार्ल मार्क्स ने ऐसे मजदूरों को आत्मलोप की स्थिति से ग्रसित बताया था। भारतवर्ष में आज चहुंओर रोजगार की बात हो रही है। पर कैसा रोजगार? क्या केवल पदों का सृजन ही काफी है? क्या मौजूदा नौकरियों में गुणवत्ता युक्त काम है? आज के इस न्यूज़ अलर्ट में इसकी पड़ताल करेंगे।
पिछले कुछ वर्षों से आर्थिक आभामंडल में तनाव बढ़ रहा है। जाहिर है धीमी होती अर्थव्यवस्था की गाड़ी का प्रभाव रोजगार पर भी पड़ेगा। पर आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण की ओर से जारी आंकड़ों में रोजगार से जुड़े आंकड़े गुलाबी हैं।
सर्वेक्षण में मुख्यत: तीन तरह के आंकड़े होते हैं। पहला, जनसंख्या का ऐसा अनुपात जो ‘काम’ करना चाहता है (श्रम शक्ति भागीदारी दर)। दूसरा, जनसंख्या का ऐसा अनुपात जो किसी काम में संलग्न है(कामगार जनसंख्या अनुपात) । और तीसरा, काम करने के इच्छुक लोगों में से किसी भी काम में संलग्न लोगों को हटा दें, तब जो अनुपात आएगा उसे हम बेरोजगारी दर कहते हैं।
गौर कीजिए! यहां श्रम शक्ति भागीदारी दर और कामगार जनसंख्या अनुपात भी स्थिर है।
कृपया नीचे दिए गए ग्राफ को देखिए। (ग्राफ को मोबाइल में सही से देखने के लिए ग्राफ पर भार दीजिए फिर ओपन इमेज पर क्लिक कर दीजिए)
स्त्रोत: पीएलएफएस की वार्षिक रिपोर्ट जारी करते समय भारत सरकार की ओर से जारी प्रेस रिलीज। कृपया यहां क्लिक कीजिए
ग्राफ को भाषायी जामा!
श्रम शक्ति भागीदारी दर भी लगातार बढ़ रही है। वर्ष 2017–18 में यह 36.9 फीसदी थी। बढ़ते हुए 2018–19 में 37.5 फीसदी, 2019–20 में 40.1 फीसदी और वर्ष 2020–21 में 41.6 फीसदी।इसी तरह कामगार जनसंख्या अनुपात भी लगातार बढ़ रहा है। 2017–18 ने 34.7 प्रतिशत से बढ़ते हुए 2018–19 में 35.3 फीसदी, 2019–20 में 38.2 फीसदी और 2020–21 में 39.8 फीसदी हो जाता है।
गरीब आदमी के पास अधिक विकल्प मौजूद नहीं रहते हैं। आर्थिक तनाव के इस दौर में मौजूद विकल्प को स्वीकार कर, गुजारा करना पड़ता है।
काम की गुणवत्ता का महत्व तुच्छ हो जाता है। इसी दौरान मंत्रालय यह हवा बना देता है कि देश में रोजगारों का सृजन हो रहा है, बढ़ रहे हैं। इसलिए हमें बेरोजगारी, एलएफपीआर और कामगार जनसंख्या अनुपात के आंकड़ों से इतर देखना पड़ेगा!
काम की गुणवत्ता!
अंतर्राष्ट्रीय मजदूर संगठन का कहना है– बेकारी में कमी आ रही है। कमी का यह मतलब कतई नहीं है कि जो रोजगार मिल रहे हैं वो अदब वाले और लाभप्रद हैं। अदब वाले काम से तात्पर्य है शख्स अपनी इच्छा से उस काम को कर रहा है। उसे कार्यक्षेत्र में बेहतरीन वातावरण और सामाजिक सुरक्षा मिल रही हो। उस शख्स से जुड़े किसी भी प्रकार के मुद्दे पर निर्णय लेते समय उसकी सहमति ली जा रही हो।
भारत के संदर्भ में लाभजनक रोजगार पर McKinsey वैश्विक संस्थान ने “ए नोट ऑन गैनफुल एम्प्लॉयमेंट इन इंडिया” शीर्षक से एक रपट जारी की थी। इनके अनुसार लाभजनक रोजगार कई आयामों को शामिल करता है जैसे– बेहतर मेहनताना, आय की सुरक्षा, कार्य क्षेत्र में साफ–सफाई, काबिलियत के अनुसार काम और नौकरी में लचीलापन।कुल रोजगार के चमकते हुए आंकड़ों की चका चौंध से इतर सच्चाई की पड़ताल करना जरूरी है।
घरेलू उद्यमों में अवैतनिक मददगार!
मजदूर, जिन्हें रोजगार मिल जाता है। उन्हें मिले हुए रोजगार के आधार पर तीन भागों में बांटा जाता है। पहला, स्वनियोजित। दूसरा, दैनिक भत्ते या खास वेतन से नौकरी पर लगा हुआ। तीसरा, अनौपचारिक मजदूर।पहली श्रेणी के मजदूरों को दो सह श्रेणी में बांटा जाता है– १.खुद का व्यवसाय है। २. घरेलू उद्यमों में अवैतनिक मददगार|
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ग्राफ–2 दर्शाता है कि घरेलू उद्यमों में अवैतनिक मजदूरों का अनुपात बढ़ रहा है|
वर्ष 2018–19 में यह अनुपात 13.3 फीसदी था जो बढ़कर 2019–20 में 15.9 और 2020–21 में बढ़कर 17.3 फीसदी हो जाता है। अवैतनिक मजदूरों का बढ़ता यह अनुपात ही रोजगार के आंकड़ों को गुलाबी रंग दे रहा है। सरकारी भाषा में ये अवैतनिक मजदूर ‘सेल्फ इंप्लॉयड’ (स्वरोजगार) हैं। लेकिन ना इनकी तय मजदूरी है और ना ही नियमित आय का ठिकाना।अवैतनिक मजदूरों के खुद का कोई उद्यम नहीं होता है। वे किसी और के उद्यम में बिना वेतन के काम करते हैं।
इसी ग्राफ में यह दर्शाया गया है कि ऐसे मजदूर जिन्हें नियमित मेहनताना या वेतन मिलता था, का अनुपात घट रहा है। पीएलएफएस के सर्वे 2018–19 में नियमित वेतन या मजदूरी वालों का अनुपात 23.8 फीसदी था जो घटते हुए 2019–20 में 22.9 फीसदी और 2020–21 में और घटकर 21.1 फीसदी हो जाता है।
नियमित वेतन या मजदूरी प्राप्त करने वाले कर्मचारियों में संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों से ताल्लुक रखने वाले ऐसे कर्मचारी शामिल होते हैं। और इन्हें नियमित वेतन मिलता है।रोजगार की दुनिया में देखें तो यह वाला विकल्प उम्दा है, इसमें गुणवत्ता वाले रोजगार का भाव आता है (क्योंकि यह आय सुरक्षा प्रदान करता है)।
ग्राफ के अनुसार नैमित्तिक (कैजुअल) मजदूरों का कुल मजदूरों में अनुपात घट रहा है। पीएलएफएस सर्वे 2017–18 से घटते हुए 2020–21 के सर्वे तक 24.9 फीसदी से 23.3 फीसदी हो जाता है। संगठित और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले ऐसे मजदूर जिनका वेतन ठेकेदार की शर्तों पर निर्भर करता है, नैमित्तिक मजदूर कहलाते हैं।
ग्राफ–2 दर्शाता है कि घरेलू उद्यमों में अवैतनिक मजदूरों का अनुपात बढ़ रहा है। वर्ष 2018–19 में यह अनुपात 13.3 फीसदी था जो बढ़कर 2019–20 में 15.9 और 2020–21 में बढ़कर 17.3 फीसदी हो जाता है।
अवैतनिक मजदूरों का बढ़ता यह अनुपात ही रोजगार के आंकड़ों को गुलाबी रंग दे रहा है। सरकारी भाषा में ये अवैतनिक मजदूर ‘सेल्फ इंप्लॉयड’ (स्वरोजगार) हैं। लेकिन ना इनकी तय मजदूरी है और ना ही नियमित आय का ठिकाना।अवैतनिक मजदूरों के खुद का कोई उद्यम नहीं होता है। वे किसी और के उद्यम में बिना वेतन के काम करते हैं।
इसी ग्राफ में यह दर्शाया गया है कि ऐसे मजदूर जिन्हें नियमित मेहनताना या वेतन मिलता था, का अनुपात घट रहा है। पीएलएफएस के सर्वे 2018–19 में नियमित वेतन या मजदूरी वालों का अनुपात 23.8 फीसदी था जो घटते हुए 2019–20 में 22.9 फीसदी और 2020–21 में और घटकर 21.1 फीसदी हो जाता है।
नियमित वेतन या मजदूरी प्राप्त करने वाले कर्मचारियों में संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों से ताल्लुक रखने वाले ऐसे कर्मचारी शामिल होते हैं। और इन्हें नियमित वेतन मिलता है। रोजगार की दुनिया में देखें तो यह वाला विकल्प उम्दा है, इसमें गुणवत्ता वाले रोजगार का भाव आता है (क्योंकि यह आय सुरक्षा प्रदान करता है)।
ग्राफ के अनुसार नैमित्तिक (कैजुअल) मजदूरों का कुल मजदूरों में अनुपात घट रहा है। पीएलएफएस सर्वे 2017–18 से घटते हुए 2020–21 के सर्वे तक 24.9 फीसदी से 23.3 फीसदी हो जाता है। संगठित और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले ऐसे मजदूर जिनका वेतन ठेकेदार की शर्तों पर निर्भर करता है, नैमित्तिक मजदूर कहलाते हैं।
कार्य–दशा
सामान्यतः नियमित तनख्वाह या मजदूरी वाले कामगारों की कार्य दशा, स्वनियोजित और नैमित्तिक कामगारों की तुलना में बेहतर होती है। हालांकि, नियमित वेतन या मजूरी पाने वाला कर्मचारी भी संगठित क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारी के जितना लाभ नहीं प्राप्त कर पाता है।
टेबल नंबर 1 को देखिए! यहां नियत तनख्वाह या मजूरी वालों के तीन तरह के आंकड़े दिए गए हैं।
1) ऐसे नियत तनख्वाह या मजूरी वाले कर्मचारियों का अनुपात दिया गया है जिनके पास नौकरी का लिखित अनुबंध नहीं है।
2) ऐसे कर्मचारी (नियत तनख्वाह या मजूरी वाले) जिन्हें वैतनिक छुट्टी नहीं मिलती है।
3) ऐसे कर्मचारी (नियत तनख्वाह या मजूरी वाले) जिन्हें किसी भी तरह का सामाजिक लाभ नहीं मिलता है।
स्त्रोत: कृपया यहां क्लिक कीजिए
टेबल 1 बताती है कि नियत तनख्वाह या मजूरी वाले ऐसे कर्मचारी जिनके पास कोई लिखित अनुबंध नहीं है, संख्या घट रही है। पीएलएफएस 2017–18 में इनका अनुपात 71.1 फीसदी था जो घटकर पीएलएफस 2020–21 में 64.3 फीसदी हो जाता है। इसी तरह ऐसे कर्मचारियों का अनुपात भी घट रहा है जो वैतनिक छुट्टी लेने के योग्य नहीं हैं। पीएलएफएस 2017–18 में 54.2 फीसदी था जो घटकर 2020–21 के सर्वे में 47.9 फीसदी हो जाता है।
ऐसे कर्मचारी जो किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा के लाभ के योग्य नहीं हैं, का अनुपात निरंतर बढ़ रहा है। पीएलएफएस 2017–18 में 49.6 फीसदी था जोकि बढ़कर 2020–21 में 53.8 फीसदी हो जाता है।
अलग–अलग श्रेणी के मजदूरों का मेहनताना और पारितोषिक
गुणपूर्णता युक्त रोजगार की पहचान के सूचकों में एक है उक्त रोजगार से मिली आमदनी। पीएलएफएस की 2020–21 वाली रपट में नियत तनख्वाह या मजूरी वाले कर्मचारियों का औसत दैनिक मजदूरी या वेतन (रुपए में) वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (करेंट वीकली स्टेटस) में अनौपचारिक श्रमिक की तुलना में अधिक था।
हालांकि, स्वनियोजित कर्मचारियों का वेतन वर्तमान साप्ताहिक स्थिति प्रारूप में अनौपचारिक मजदूरों से अधिक था।
देखें चार्ट –3
Note: * Calculated by dividing ‘Average wage/ salary earnings (in Rs) during the preceding calendar month by the regular wage/ salaried employees in current weekly status during the survey period 2020-21’ by 30
** Calculated by dividing ‘Average gross earnings (in Rs.) during the last 30 days from self-employment work in current weekly status during the survey period 2020-21’ by 30
Source: Statements-17, 18 & 19, Annual Report on PLFS, July 2020-June 2021, released in June 2022, NSO, MoSPI, please click here to access
ग्राफ को भाषायी जामा पहनाएं तो सभी तिमाहियों में अनौपचारिक मजदूरों की औसत कमाई कम है।
गौर करने वाली बात है कि जब पीएलएफसी 2020–21 का सर्वे तैयार किया जा रहा था तब अप्रैल–जून 2021 की तिमाही को भी शामिल किया गया है, उस समय राज्यों ने अपने हिसाब से लॉकडाउन लगाया था।
सामान्य स्थिति दृष्टिकोण और साप्ताहिक स्थिति दृष्टिकोण–
पीएलएफएस की रिपोर्ट में तीन समय काल के आधार पर रोजगार के आंकड़े संग्रहित किए जाते हैं। पिछले 365 दिनों में रोजगार की स्थिति, पिछले सप्ताह में रोजगार की स्थिति और दैनिक रोजगार स्थिति।
सामान्य स्थिति दृष्टिकोण में श्रम बल के दो तरह के आंकड़े होते हैं। प्राथमिक स्थिति और सहायक स्थिति।
अगर सर्वे के समय पिछले 365 दिनों में कोई शख्स 6 माह या उससे अधिक समय तक श्रम बल का हिस्सा रहता है तो वह प्राथमिक स्थिति की श्रेणी में आएगा। वहीं अगर कोई शख्स सर्वे के समय पिछले 365 दिनों में 30 दिन या उससे अधिक किसी आर्थिक गतिविधि से जुड़ा रहता है तो वो सहायक स्थिति में गिना जाएगा।
साप्ताहिक स्थिति दृष्टिकोण में सर्वे के समय अगर कोई शख्स पिछले सात दिनों में 1 घंटे के लिए भी किसी काम से जुड़ा है तो वह रोजगार वाला गिना जाएगा।
सन्दर्भ यहाँ से-
Fourth Annual Report on Periodic Labour Force Survey (PLFS), July 2020-June 2021, released in June 2022, National Statistical Office (NSO), Ministry of Statistics and Programme Implementation (MoSPI), please click here to access
Third Periodic Labour Force Survey Annual Report (July 2019-June 2020), released in July 2021, NSO, MoSPI, please click here to access
Press release: Periodic Labour Force Survey (PLFS) – Annual Report [July, 2020 – June, 2021], released on 14 June, 2022, Press Information Bureau, Ministry of Statistics & Programme Implementation (MoSPI), please click here to access
Decent Work, International Labour Organisation, please click here to access [accessed on September 21, 2022]
A new emphasis on gainful employment in India – Jonathan Woetzel, Anu Madgavkar, and Shishir Gupta, published on June 13, 2017, McKinsey Global Institute, please click here to access [accessed on September 21, 2022]
News alert: Latest available PLFS data sheds light on unpaid helpers in self-employment & underemployment among various types of workers, Inclusive Media for Change, Published on Sep 2, 2021, please click here to access
Low Incomes Haunt India’s Growth -Subodh Varma, Newsclick.in, 18 September, 2022, please click here to access
Joblessness below pre-COVID levels: Finance Ministry, The Hindu, 17 September, 2022, please click here to access
Why the Rise in Workforce Participation During the Pandemic Points to Distress Employment -Shiney Chakraborty, Priyanka Chatterjee and Mitali Nikore, TheWire.in, 6 July, 2022, please click here to access
Our employment data should be interpreted cautiously -Himanshu, Livemint.com, 16 June, 2022, please click here to access
The Dramatic Increase in the Unemployment Rate -Prabhat Patnaik, Newsclick.in, 14 June, 2019, please click here to access