गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगा मोदी ने रिलायंस को कैसे फायदा पहुंचाया!
13 मई की शाम को भारत सरकार ने गेहूं के निर्यात पर अचानक प्रतिबंध लगा दिया था, जिसके लिए अधिकतर गेहूं के व्यापारी और किसान तैयार नहीं थे. लेकिन व्यापारियों में एक उल्लेखनीय अपवाद अरबपति मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज प्रतिबंध लगने के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक बन गई.
भारत के वाणिज्य मंत्रालय ने फैसला सुनाया कि केवल उन निर्यातकों को गेहूं निर्यात करने की अनुमति दी जाएगी जिनके पास बैंक गारंटी लेटर-एलसी (an irrevocable letter of credit -LC) है. इस प्रतिबंध के बाद देश के छोटे व्यापारियों को अपना कारोबार बंद करना पड़ा क्योंकि अधिकांश भारतीय निर्यातक आमतौर पर बैंक गारंटी लेटर-एलसी का उपयोग नहीं करते हैं.
भारत में बैंक गारंटी लेटर-एलसी का उपयोग करने वाली एकमात्र फर्मों में से एक भारत का सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक आईटीसी लिमिटेड है, लेकिन आईटीसी भी बैकफुट पर चला गया क्योंकि उसे अभी तक भविष्य के शिपमेंट के लिए बैंक गारंटी लेटर-एलसी प्राप्त नहीं हुआ.
13 मई को, हालांकि, एक कंपनी जिसके पास बैंक गारंटी लेटर-एलसी तैयार था, वह थी रिलायंस रिटेल. जिसके लिए लगभग 250,000 मीट्रिक टन गेहूं खरीदने के लिए 12 मई को ही बैंक गारंटी लेटर-एलसी जारी कर दिया गया था और उस बैंक गारंटी के साथ, रिलायंस ने पहली बार अनाज के व्यापार में एन्ट्री मारी.
सरकार ने अपनी अधिसूचना में कहा कि गेहूं के निर्यात को रोकने का कदम वैश्विक कीमतों में बढ़ोतरी के कारण आया है, जिसने भारत की “खाद्य सुरक्षा” को “जोखिम” में डाल दिया है, लेकिन निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के एक महीने बाद ही प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया को खिलाने के लिए भारतीय स्टॉक का उपयोग करने की पेशकश की क्योंकि यूक्रेन संकट से दुनिया में खाद्यान की कमी दिख रही थी.
भारत ने 22 मई के आसपास अपने निर्यात को फिर से शुरू किया और जिन कंपनियों के पास 13 मई या उससे पहले का बैंक गारंटी लेटर-एलसी था, सिर्फ उन कंपनियों को गेहूं निर्यात करने की अनुमति मिली. 16 अगस्त तक पोर्ट डेटा के अनुसार, 2.1 मिलियन टन गेहूं जो रवाना हो चुका है या भेजने की प्रक्रिया में है, उसमें से लगभग 334,000 मीट्रिक टन रिलायंस का है, जो आईटीसी के 727,733 मीट्रिक टन के बाद दूसरा है.
इस फैसले से किसानों और छोटे व्यापारियों दोनों को भारी नुकसान हुआ है. छोटे व्यापारी अंतरराष्ट्रीय बाजारों में लाभ पर बेचने की उम्मीद से बड़े प्रीमियम पर गेहूं खरीद रहे थे, और किसान यह सोचकर अपनी कुछ फसल को स्टॉक भी किए हुए थे कि कीमतें और बढ़ेंगी.
लेकिन एक झटके में किसानों और छोटे व्यापारियों की उन योजनाओं को चकनाचूर कर दिया गया, क्योंकि व्यावहारिक रूप से आईटीसी और रिलायंस सहित सभी बड़े निर्यातक अपने पुराने कॉन्ट्रैक्ट्स से मुकर गए और पहले से सहमत कीमतों पर गेहूं लेने से इनकार कर दिया.
रिलायंस का बढ़ता प्रभाव
ऐसा लगता है कि रिलायंस पिछले साल से खेतीबाड़ी के उत्पादों और अनाज निर्यात की तैयारी कर रही है. पहला संकेत पिछले अक्टूबर में एक स्टॉक एक्सचेंज फाइलिंग था जहां उसने कहा था कि उसने अबू धाबी में पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी रिलायंस इंटरनेशनल लिमिटेड को शामिल किया था, जिसमें कई दूसरे काम-धंधों के अलावा, कच्चे तेल और खेतीबाड़ी के उत्पादों का व्यापार करना शामिल था.
गेहूं के निर्यात प्रतिबंधों ने रिलायंस को घरेलू बाजार को भी प्रभावित करने का एक अवसर दिया है, क्योंकि कंपनी 15,000 से अधिक रिलायंस रिटेल दुकानों की अपनी चेन में बेचे जाने वाले अपने निजी-लेबल उत्पादों के लिए भारी मात्रा में अनाज खरीदता है.
पिछले हफ्ते, रिलायंस रिटेल हरियाणा और मध्य प्रदेश राज्यों से गेहूं स्टॉक खरीदने के लिए सबसे अधिक बोली लगाने में शुमार था. विशेषज्ञों का कहना है कि रिलायंस जैसी बड़ी फर्म के आने से अन्य तरीकों से व्यापार प्रभावित हो सकता है. वर्तमान में, भारत की गेहूं आपूर्ति श्रृंखला अव्यवस्थित है और इसमें कई छोटे व्यापारी शामिल हैं जो सामूहिक रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. ये खिलाड़ी, अपने आकार की प्रकृति से, आमतौर पर सीमित भंडारण क्षमता रखते हैं, जिसका अर्थ है कि वे बहुत कम फसल खरीदते हैं और शायद ही कभी बड़े मुनाफे कमा पाते हैं.
एस एंड पी के वैश्विक कृषि संपादक संपद नंदी कहते हैं, “एक नया बड़ा खिलाड़ी इस हिस्से पर कब्जा कर सकता है क्योंकि यह बेहतर कीमतों के साथ किसानों को आकर्षित करने और बेहतर भंडारण सुविधाओं सहित रसद में निवेश करने में सक्षम है.”