डीएनटी वॉच: सपेरा जनजाति के बेघर परिवारों पर जीवन जीने का संकट!

बीती रात आए तेज अंदड की वजह से करनाल के कस्बे असन्ध में जींद बाईपास पर रह रहे सपेरा जनजाति की झुग्गी-झोपड़ियां तहस-नहस हो गईं. दिन के करीबन 11 बजे हैं और सुरजीत नाथ सपेरा अपनी पत्नी के साथ टुटी हुई झोपड़ी को ठीक करने में लगे हुए हैं.
सपेरा जनजाति के करीबन दस परिवार पिछले दो साल से इन झुग्गियों में रह रहे हैं इससे पहले सपेरा जनजाति के ये परिवार इसी कस्बे के दूसरे छोर पर रहते थे. वहां से हटा दिए जाने के बाद ये लोग जींद बाईपास के नए ठिकाने पर अपना ठोर-ठिकाना जमाए हुआ हैं.
अपनी झुग्गी ठीक कर रहे सुरजीत नाथ ने बताया, “एक महीने पहले कार में बैठकर एक सरदार जी और एक मैडम आई थीं. मैडम सर्वे कर के ले गई लेकिन अब तक तो हमे कुछ भी नहीं मिला.”
रोजगार के सवाल पर सुरजीत ने बताया, “हम लोग पहले बीन बजाकर गांव-देहात में सांप का खेल-तमाशा दिखाकर अपना रोजगार चलाते थे लेकिन सरकार ने सब बंद करवा दिया. सरकार ने नये कानून बना दिये. अब हम अपने साथ सांप नहीं रख सकते हैं और न ही साप का खेल-तमाशा दिखा सकते हैं. कुछ दिन पहले सांप रखने के आरोप में जंगल के गार्ड हमारे एक बंदे को उठाकर ले गए और 30 हजार रुपये जुर्माना लगा दिया.”
सुरजीत ने आगे बताया, “यहां रहने वाले सपेरा जनजाति के लोग अब कूड़ा बीनने का काम करते हैं. कूड़े में से कांच और प्लास्टिक की बोतलें निकालकर बेचते हैं उसी से दो सौ, तीन सौ रुपये की दिहाड़ी बन जाती हैं. अब कमाई का कोई और साधन नहीं रहा, सरकार ने सब खत्म कर दिया.”
नेताओं से मदद से सावल पर सुरजीत ने कहा, “सब वोट मांगने आते हैं. वोट लेने के बाद कोई नहीं पूछने आता. हमें यहां से भी हटने को कह रहे हैं. अब यहां से झुग्गी उठाकर कहीं और जाएंगे. सरकार से एक ही मांग है कि हम लोगों को रहने के लिए कोई जगह दे ताकि हम भी अपना घर बना सकें. बच्चों को स्कूल भेज सके. मेरे साथ बच्चे भी कूड़ा बीनने के लिए जाते हैं कोई रहने का पक्का ठिकाना होता तो हम भी अपने बच्चों को स्कूल भेज देते लेकिन अब क्या करें आज यहां है तो कल का पता नहीं कहां होंगे.”
वहीं सरकारी सुविधाएं मिलने के सवाल पर सुरजीत ने कहा, “राशन कभी-कभी मिलता है. पहले सरसों का तेल मिल जाता था अब वो भी नहीं मिलता है ऊपर से इतना महंगा हो गया है तो बताओ अब क्या खांए.”
दोपहर का वक्त है झोपड़ियों के अधिकतर लोग कूड़ा बीनने के लिए गए हुए हैं. सुरजीत के पास वाली झोपड़ी में रहने वाली प्रकाशो के पति पिछले कईं दिनों से बीमार हैं जिसके चलते वो अब कूड़ा बीनने नहीं जा रहे हैं. प्रकाशों ने बताया, “सरकार को हम लोगों के बारे में भी सोचना चाहिए. हम कब तक इस तरह की जिंदगी जीते रहेंगे. आंधी-तूफान, बारिश सब हमारे ऊपर से गुजर रही है. अब इस प्लॉट का मालिक भी हमें यहां से हटा रहा है. बोल रहा है या तो किराया दो वरना जगह खाली करो.”

ये लोग सरकार की हर योजना से महरूम है. सरकार की प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्के मकान बनाने की स्कीम भी उन लोगों तक पहुंच सकती है जिनके पास अपनी जमीन हो लेकिन इस समुदाय के पास तो अपनी जमीन तक नहीं है ऐसे में पक्का मकान कहां बनाएं.
रैनके कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार देशभर में विमुक्त घुमंतू जनजाति के 50 फीसदी से ज्यादा लोग बेघर और करीबन 90 फीसदी बिना किसी दस्तावेज के रह रहे हैं. सपेरा विमुक्त घुमंतू जनजाति है. हरियाणा में इनकी अच्छी खासी आबादी है, सपेरा जनजाति के कुछ लोगों के पास अपने मकान हैं लेकिन सुरजीत नाथ और प्रकाशों जैसे भी हैं जो आज भी सिर पर छत होने की उम्मीद लगाए बैठे हैं.
- Tags :
- करनाल
- डीएनटी
- सपेरा जाति
Top Videos

टमाटर बिक रहा कौड़ियों के दाम, किसानों को 2-5 रुपये का रेट!

किसानों ने 27 राज्यों में निकाला ट्रैक्टर मार्च, अपनी लंबित माँगों के लिए ग़ुस्से में दिखे किसान

उत्तर प्रदेश के नोएडा के किसानों को शहरीकरण और विकास क्यों चुभ रहा है

Gig Economy के चंगुल में फंसे Gig Workers के हालात क्या बयां करते हैं?
