लॉकडाउन में 84% तक गिरे टमाटर के भाव, मिट्टी में किसान की मेहनत

 

किसानों को परंपरागत फसलें छोड़कर फल-सब्जियां उगाने की सलाह बहुत दी जाती है। लेकिन इस साल टमाटर की जो दुर्दशा हुई है, उसे देखकर कोई भी किसान सब्जियां उगाने से पहले कई बार सोचेगा। हरियाणा सहित देश के कई राज्यों में टमाटर मिट्टी के मोल बिक रहा है तो कहीं मिट्टी में मिल रहा है। हालत ये है कि हरियाणा के भिवानी जिले के किसान लॉकडाउन के बीच अपने खेत में ही धरना देने को मजबूर हैं।

भिवानी जिले के खरकड़ी माखवान गांव में हफ्ते भर से धरने पर  बैठे किसानों में रमेश कुमार भी शामिल हैं जो कई वर्षों से टमाटर की खेती कर रहे हैं और बहुत से किसानों को इसके लिए प्रेरित कर चुके हैं। इस साल उन्हें नुकसान की भरपाई के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

आदर्श किसान माने जाने वाले रमेश कुमार असलीभारत.कॉम को दिल्ली की मंडी में बिके टमाटर की रसीद दिखाते हैं। उनका 131 कुंतल टमाटर 42 हजार रुपये में बिका। यानी 3.21 रुपये प्रति किलोग्राम। रमेश बताते हैं कि टमाटर की ढुलाई व अन्य खर्च जोड़ें तो प्रति किलोग्राम सिर्फ 1.82 रुपया हाथ में आया। छह महीने की मेहनत और प्रति एकड़ करीब 60 हजार रुपये की लागत का यह परिणाम किसी सदमे से कम नहीं है। ऐसे में धरने पर बैठने के अलावा उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझा। स्थानीय विधायक किरण चौधरी और इनेलो नेता अभय चौटाला ने धरनास्थल पर पहुंचकर इन किसानों को समर्थन दिया है। चौटाला कहते हैं कि वे इन मुद्दे को उठाएंगे।

हरियाणा के भिवानी जिले में टमाटर किसानों के धरने में पहुंचे इनेलो के नेता अभय चौटाला

नुकसान का गणित

टमाटर की खेती में नुकसान का गणित समझाते हुए किसान रमेश कुमार बताते हैं कि तुड़ाई, छंटाई और ढुलाई में ही करीब 4-5 रुपये प्रति किलोग्राम का खर्च आ जाता है। ऐसे में अगर मंडी में इतना ही भाव मिलेगा तो किसान खेतों से टमाटर तुड़वाएगा ही क्यों? यही हो रहा है। खरकड़ी माखवान क्षेत्र में करीब 600 एकड़ में टमाटर की खेती है, जिसमें से करीब 40 फीसदी फसल ही मंडी तक पहुंची और 15 फीसदी फसल ही बिक पाई। मजबूरी में किसानों को टमाटर की ट्रॉली वापस खेतों में ही खाली करनी पड़ी या फिर खड़ी फसल पर ट्रैक्टर चलाना पड़ा।

दिल्ली की मंडी में किसान रमेश की टमाटर बिक्री की रसीद

आधे से ज्यादा गिरे दाम

हरियाणा ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना से भी टमाटर के कौड़ियों के भाव बिकने की खबरें आ रही हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, हरियाणा में पिछले साल मई के महीने में टमाटर का औसत मंडी भाव 1514 रुपये प्रति कुंतल था जो इस साल मई में घटकर 773 रुपये प्रति कुंतल रह गया। यानी पिछले साल से आधा!

पिछले साल मई में मध्य प्रदेश में टमाटर का औसत भाव 1481 रुपये प्रति कुंतल था जबकि इस साल मई में औसत भाव 619 रुपये कुंतल है। यानी 58 फीसदी की गिरावट! यही हाल दिल्ली का है जहां पिछले साल मई में टमाटर का मंडी भाव 1570 रुपये प्रति कुंतल था जबकि इस साल मई में भाव रहा सिर्फ 720 रुपये। यानी 55 फीसदी से भी कम।

टमाटर का सबसे बुरा हाल तेलंगाना में है जहां पिछले साल मई में टमाटर औसत मंडी भाव 2729 रुपये प्रति कुंतल था जो इस साल मई में महज 435 रुपये कुंतल है। यानी 4.35 रुपये किलो!  पिछले साल से करीब 84 फीसदी कम। इसमें से खेती की लागत, ढुलाई और मंडी खर्च निकाल दें तो सोचिये किसानों को क्या बचा होगा?

स्रोत: https://agmarknet.gov.in

 

लॉकडाउन की मार

पिछले दो महीने से जारी लॉकडाउन के लिए देश भर में वस्तुओं की मांग और आपूर्ति प्रभावित हुई है। हालांकि, कृषि कार्यों और मंडियों को लॉकडाउन से छूट दी गई है लेकिन फिर भी सप्लई चेन प्रभावित हुई है जिसका असर टमाटर जैसी जल्द खराब होने वाली वस्तुओं पर ज्यादा पड़ रहा है। यही कारण है कि  फल-सब्जियां और फूल उगाने वाले किसानों का भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। जबकि खरीद सुनिश्चित होने की वजह से गेहूं, धान और गन्ना उगाने वाले किसानों  की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर है।

एक्सपर्ट कह सकते हैं कि टमाटर की खेती के साथ-साथ प्रोसिसंग यूनिट लगनी चाहिए। टमाटर के भंडारण की व्यवस्था होनी चाहिए। या फिर किसानों को सीधे उपभोक्ता तक पहुंच बनानी चाहिए। सुझाव के स्तर पर ये बातें अच्छी हैं लेकिन फिलहाल घाटा झेल रहे किसानों के किसी काम की नहीं हैं।

मंडियों से टमाटर वापस ले जाने को मजबूर किसान

टॉप और भावांतर दोनों फेल

केंद्र सरकार ने दो साल पहले टमाटर, आलू और प्याज के किसानों को कीमतों की मार से बचाने के लिए टॉप स्कीम का ऐलान किया था। लेकिन योजना बुरी तरह नाकाम रही है। हाल में कोराना राहत पैकेज के तहत टॉप स्कीम में सभी फल-सब्जियों को शामिल करते हुए 500 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है। अब देखना है रमेश जैसे किसानों को इस योजना से कितनी मदद मिल पाती है।

दूसरी तरफ, हरियाणा सरकार भी भावांतर योजना के तहत किसानों के नुकसान की भरपाई कर रही है। इस योजना के तहत टमाटर के लिए 500 रुपये कुंतल का भाव तय किया गया है। यानी इससे कम भाव मिलने पर अंतर की भरपाई राज्य सरकार करेगी। किसान एक्टिविट रमनदीप सिंह मान का कहना है कि भावांतर योजना का फायदा किसानों तक पहुंचने में कई दिक्क्तें हैं। ना तो सभी किसानों को योजना की जानकारी है और फिर भावांतर के लिए टमाटर का भाव सिर्फ 500 रुपये प्रति कुंतल तय किया गया है। जो बहुत कम है। इसके लिए भी रजिस्ट्रेशन और तमाम प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है।

मतलब किसान को अगर 400 रुपये कुंतल का दाम मिला तो बाकी 100 रुपये कुंतल की भरपाई राज्य सरकार करेगी। यह मदद सिर्फ एक रुपये किलो बैठती है। जबकि किसान का नुकसान इससे कहीं ज्यादा है। यही वजह है कि भावांतर से हरियाणा के टमाटर किसानों को कोई खास मदद नहीं मिल पा रही है।

किसानों से कौड़ियों के भाव बिकने के बावजूद उपभोक्ताओं को टमाटर 15-20 रुपये किलो मिल रहा है। कृषि संकट का यह ऐसा पहलू है जहां किसान जागरूक भी है। मंडी तक पहुंच भी है। लेकिन सही दाम न मिल पाने की वजह से बेबस है।