पोषाहार की कम मात्रा और अनियमित वितरण के बीच कुपोषण से लड़ता यूपी

 

लखनऊ: “मैं चार महीने की गर्भवती हूं. मुझे आंगनवाड़ी से हर महीने राशन मिलना चाहिए, लेकिन प‍िछले दो महीने में स‍िर्फ एक बार राशन मिला है. इतने में क्‍या होगा?,” लखनऊ के हबीबपुर गांव की रहने वाली रोशनी रावत (27) कहती हैं. रोशनी के दो बच्‍चे हैं, एक चार साल का और दूसरा एक साल का जो कि अतिकुपोषित है.

रोशनी को आंगनवाड़ी से हर महीने 1.5 किलो गेहूं दल‍िया, एक किलो चावल, एक किलो चना दाल और 500 मिलीलीटर खाद्य तेल मिलना चाहिए. हालांकि, रोशनी को अप्रैल के बाद जून में यह राशन मिल पाया, यानी दो महीने में एक बार. इसी तरह उनके एक साल के अतिकुपोष‍ित बच्‍चे को भी दो महीने में एक बार राशन मिला है.

बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग के मानक के अनुसार अतिकुपोषि‍त बच्‍चे को हर द‍िन 800 ग्राम कैलोरी और 20 से 25 ग्राम प्रोटीन मिलना चाहिए, लेक‍िन जब आंगनवाड़ी से अनुपूरक पुष्टाहार ही दो महीने में एक बार मिलेगा तो मानक कैसे पूरा होगा.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, भारत में 6 से 23 महीने के 89% बच्‍चों को पर्याप्‍त आहार नहीं मिलता. इस मामले में सबसे खराब स्थिति उत्‍तर प्रदेश (यूपी) और गुजरात की है. यूपी और गुजरात में सिर्फ 5.9% बच्‍चों को पर्याप्‍त आहार मिलता है.

उत्‍तर प्रदेश में कुपोषण दूर करने के उद्देश्य से आंगनवाड़ी के तहत सूखा राशन द‍िया जाता है, ज‍िसे अनुपूरक पुष्‍टाहार कहते हैं. यह पुष्‍टाहार 6 महीने से 6 साल तक के बच्‍चों, गर्भवती और स्‍तनपान कराने वाली महिलाओं, कुपोषि‍त बच्‍चों और 11 से 14 साल की किशोरियों को द‍िया जाता है. हालांकि प्रदेश में यह योजना अन‍ियमितताओं की श‍िकार है. इंड‍ियास्‍पेंड ने अलग-अलग जि‍लों की आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों से बात की तो जानकारी हुई कि लाभार्थियों की संख्या के मुकाबले राशन बहुत कम मात्रा में आता है और ऐसे में बहुत से लोग इससे वंचित रह जाते हैं.

डेटा इंट्री में लापरवाही का खामियाजा भुगत रहे लाभार्थी

यूपी में 1.89 लाख से ज्‍यादा आंगनवाड़ी केंद्र हैं. इंड‍ियास्‍पेंड के पास उपलब्‍ध बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग के आंकड़ों के मुताब‍िक, जुलाई 2021 में इन आंगनवाड़ी केंद्रों से करीब 1.59 करोड़ लाभार्थ‍ियों को सूखा राशन द‍िया जाता था. यह आंकड़ा हर कुछ महीने में कम-ज्‍यादा होता है. ऐसे में हर तीन महीने में नए लाभार्थी जोड़ने और अपात्रों को हटाने का काम किया जाता है और यहीं से द‍िक्‍कत शुरू होती है.

इस द‍िक्‍कत के बारे में यूपी के बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग की निदेशक डॉ. सारिका मोहन इंड‍ियास्‍पेंड से कहती हैं, “राशन की कमी नहीं है. हर तीन माह पर हम अपनी जरूरत का आंकलन करते हैं और सप्‍लायर को लाभार्थ‍ियों का आंकड़ा भेजते हैं. यह देखने में आता है कि कई ज‍िला कार्यक्रम अध‍िकारी डेटा इंट्री पर ध्‍यान नहीं देते, इसल‍िए द‍िक्‍क्‍त आती है. हमने ऐसे ज‍िलों को ल‍िख‍ित में कहा है कि एमपीआर (मास‍िक प्रगति रिपोर्ट) को अपडेट रखना है, क्‍योंकि राशन उसी हिसाब से मिलेगा. बार बार कहने के बावजूद भी कुछ जिले ऐसे हैं जो पूरी डेटा इंट्री नहीं करते, वहीं द‍िक्‍कत होती है.”

आंगनवाड़ी केंद्र से बंटने वाला अनुपूरक पुष्‍टाहार। फोटो: रणव‍िजय स‍िंह
आंगनवाड़ी केंद्र से बंटने वाला अनुपूरक पुष्‍टाहार. फोटो: रणव‍िजय स‍िंह

डॉ. सारिका मोहन की बात से जाहिर है कि अनुपूरक पुष्‍टाहार (सूखा राशन) की सप्‍लाई और लाभार्थ‍ियों की संख्‍या में अंतर होता है, इसल‍िए बहुत से लाभार्थी इससे छूट जाते हैं. बाल व‍िकास एवं पुष्‍टाहार व‍िभाग की ओर से अलग-अलग वर्ग के हिसाब से राशन का व‍ितरण किया जाता है, ज‍िसका व‍िवरण न‍िम्नल‍िख‍ित है.

  • 6 माह से 6 साल के अतिकुपोष‍ित बच्‍चे: 1.5 किलो गेहूं द‍ल‍िया, 1.5 किलो चावल, 2 किलो चना दाल, 500 मिलीलीटर खाद्य तेल
  • 6 माह से 3 साल के बच्‍चे: 1 किलो गेहूं दल‍िया, 1 किलो चावल, 1 किलो चना दाल, 500 मिलीलीटर खाद्य तेल
  • 3 से 6 साल के बच्‍चे: 500 ग्राम गेहूं दलिया, 500 ग्राम चावल, 500 ग्राम चना दाल
  • गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं: 1.5 किलो गेहूं दल‍िया, 1 किलो चावल, 1 किलो चना दाल, 500 मिलीलीटर खाद्य तेल
  • 11 से 14 साल की किशोरियां: 1.5 किलो गेहूं दल‍िया, 1 किलो चावल, 1 किलो चना दाल, 500 मिलीलीटर खाद्य तेल

अनुपूरक पुष्‍टाहार का यह मानक बच्‍चों और महिलाओं में प्रतिद‍िन की कैलोरी और प्रोटीन की जरूरतों को देखते हुए तय किया गया है. बाल व‍िकास एवं पुष्‍टाहार व‍िभाग की ओर से कैलोरी और प्रोटीन का प्रतिद‍िन का तय मानक न‍िम्‍नलिख‍ित है.

  • 6 माह से 6 साल तक के अत‍िकुपोष‍ित बच्‍चे: 800 ग्राम कैलोरी और 20-25 ग्राम प्रोटीन
  • 6 माह से 3 साल के बच्‍चे: 500 ग्राम कैलोरी और 12-15 ग्राम प्रोटीन
  • 3 से 6 साल के बच्‍चे: 200 ग्राम कैलोरी और 6 ग्राम प्रोटीन
  • गर्भवती और स्‍तनपान कराने वाली महिलाएं: 600 ग्राम कैलोरी और 18-25 ग्राम प्रोटीन
  • 11 से 14 साल की किशोरियां: 600 ग्राम कैलोरी और 18-25 ग्राम प्रोटीन

पर्याप्‍त पुष्‍टाहार की कमी से जूझते लाभार्थी

यूपी के आंगनवाड़ी केंद्रों पर इन्‍हीं मानक के अनुसार राशन द‍िया जाता है. हालांकि इंड‍ियास्‍पेंड को व्‍यापक तौर पर यह समस्‍या देखने को म‍िली कि आंगनवाड़ी केंद्र पर ज‍ितने लाभार्थी हैं, उससे कम राशन पहुंच रहा है. इसका सीधा असर लाभार्थ‍ियों पर देखने को मिलता है.

लखनऊ के हबीबपुर गांव की रहने वाली रोमा यादव (23) को आठ महीने पहले बच्‍ची हुई, जिसका नाम सृष्टि है. जन्‍म के वक्‍त सृष्‍टी का वजन सिर्फ 1.5 किलो था, जो कि जन्‍म के वक्‍त कम वजन (लो बर्थ वेट) माना जाता है. व‍िश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के अनुसार जन्‍म के वक्‍त बच्‍चे का वजन 2.5 किलो से कम होने पर उसे लो बर्थ वेट के तौर पर देखा जाता है. गांव की आंगनवाड़ी कार्यकत्री ने सृष्‍टी का कम वजन देखते हुए उसे अतिकुपोषि‍त की श्रेणी में रखा. आंगनवाड़ी के अनुपूरक पुष्‍टाहार के मानक के अनुसार सृष्‍टी को हर महीने 1.5 किलो गेहूं द‍ल‍िया, 1.5 किलो चावल, 2 किलो चना दाल, 500 ग्राम खाद्य तेल मिलना चाहिए. इंड‍ियास्‍पेंड की टीम जब सृष्‍टी के घर पहुंची तो उसकी मां रोमा ने बताया, “प‍िछले दो महीने में एक बार राशन मिला है. मई और जून का मिलाकर एक बार. आंगनवाड़ी दीदी कहती हैं कि ऊपर से राशन कम आ रहा है, पता नहीं क्‍या सच है.

लखनऊ के हबीबपुर गांव की रोमा यादव अपनी बच्‍ची के साथ। फोटो: रणव‍िजय सिंह
लखनऊ के हबीबपुर गांव की रोमा यादव अपनी बच्‍ची के साथ. फोटो: रणव‍िजय सिंह

रोमा की बात से साफ है कि सृष्‍टी को तय मानक के अनुसार जितना पुष्‍टाहार मिलना चाहिए वो नहीं मिल रहा, यानी सृष्‍टी को पर्याप्‍त आहार नहीं मिल पा रहा. सृष्‍टी की तरह भारत में 6 से 23 महीने के 89% बच्‍चों को पर्याप्‍त आहार नहीं मिलता.

बच्‍चों को पर्याप्‍त आहार न मिलना कुपोषण के स्‍तर को बढ़ाने का एक कारक हो सकता है. यूपी में पहले ही कुपोषण का स्‍तर बहुत ज्‍यादा है. पांचवे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताब‍िक, यूपी में पांच साल से कम उम्र के 39.7% बच्‍चे ठ‍िगनापन, 17.3% बच्‍चे दुबलापन और 32.1% बच्‍चे अल्‍पवजन के हैं. ठिगनेपन के मामले में यूपी देश के उन 10 राज्‍यों में शामिल है जहां सबसे खराब स्‍थ‍ित‍ि है. इस मामले में यूपी स‍िर्फ मेघालय और बिहार से बेहतर स्‍थ‍िति में है.

कार्यकत्रियों के लिए चुनौती भरा राशन बांटना

आंगनवाड़ी केंद्रों पर राशन कम आने से आंगनवाड़ी कार्यकत्र‍ियों को भी परेशान‍ियों का सामना करना पड़ रहा है. कम राशन और ज्‍यादा लाभार्थ‍ियों के बीच संतुलन बैठाने के ल‍िए आंगनवाड़ी कार्यकत्र‍ियां अलग-अलग तरीके आजमा रही हैं. इसके अलावा गांव वालों की नाराजगी भी झेल रही हैं.

“गांव में लोग सीधा आरोप लगाते हैं कि उनका राशन हम खा रहे हैं, लेकिन यह सच नहीं है. हमें ज‍ितना राशन मिलता है, हम बांट रहे हैं,” लखनऊ के हबीबपुर गांव की आंगनवाड़ी कार्यकत्री उर्मिला मौर्य कहती हैं. “मुझे मई महीने में 66 लोगों का राशन मिला, जबकि मेरे यहां 6 माह से 3 साल के 74 बच्‍चे, गर्भवती और स्‍तनपान कराने वाली 22 महिलाएं और अतिकुपोष‍ित 4 बच्‍चे हैं. कुल 100 लाभार्थी हैं. अब इसमें से किसे राशन दें और किसे न दें,” उर्मिला बताती हैं.

आंगनवाड़ी के सभी लाभार्थियों को एक साथ राशन मिल जाये इसलिए उर्मिला ने मई और जून में मिले राशन को एक साथ वितरित किया. इससे उर्मिला ने गांव वालों से व‍िवाद की संभावना को खत्‍म किया लेकिन लाभार्थियों को दो महीने में एक बार राशन मिल पाया है. लाभार्थ‍ियों के पूछने पर अब उर्मिला ऊपर से कम राशन आने की दुहाई दे रही हैं.

उर्मिला की तरह गोरखपुर जिले के छितौनी गांव की आंगनवाड़ी कार्यकत्री गीता पांडेय भी जैसे तैसे पुष्‍टाहार व‍ितरण को संभाल रही हैं. गीता पांडेय ने बताया कि उनके आंगनवाड़ी केंद्र पर 12 गर्भवती हैं जिसमें से सिर्फ 6 के लिए राशन आ रहा है. इसी तरह 6 माह से 3 साल के 60 बच्‍चे हैं, लेकिन 30 बच्‍चों का राशन आ रहा है. 3 साल से 6 साल के 48 बच्‍चे हैं, लेकिन 16 बच्‍चों का ही राशन आ रहा है.

गीता कहती हैं, “हम लोगों को गांव में बहुत द‍िक्‍कतों का सामना करना पड़ रहा है. हमें यह तय करना पड़ रहा है कि अबकी बार अगर किसी गर्भवती को राशन दे रहे हैं तो अगली बार किसी दूसरे को दिया जाए. इसके साथ सभी लोगों से यह बताना पड़ रहा है कि सरकार से कम राशन आया है.”

धीमी गति से चल रहा पोषाहार यून‍िट बनाने का काम

यूपी में आंगनवाड़ी के तहत सूखा राशन बांटने की योजना ज्‍यादा पुरानी नहीं है. दरअसल, पहले आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्‍चों को पुष्‍टाहार के रूप में अनाजों का मिश्रण देते थे, जिसे ‘पंजीरी’ कहा जाता है. इस पुष्‍टाहार के उत्पादन और वितरण में अनियमितताओं की शिकायतों के चलते प्रदेश के बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग ने पंजीरी की आपूर्ति करने वाली कंपनियों का करीब 29 साल का एकाधिकार खत्‍म करते हुए सितंबर 2020 में यह काम स्‍वयं सहायता समूह की महिलाओं से कराने का फैसला लिया.

नई व्यवस्था के तहत ज‍िलों में पोषाहार यून‍िट लगने थे, लेकिन इसमें करीब 2 साल का लंबा वक्‍त लगने वाला था. इसल‍िए विभाग ने इस दौरान आंगनवाड़ी केंद्रों के लाभार्थियों को सूखा राशन देने का फैसला किया.

बात करें पोषाहार यून‍िट की तो इसकी प्रगति भी बहुत अच्‍छी नहीं है. योजना के तहत यूपी के 43 जिलों में 204 यून‍िट लगनी हैं, जिसकी जिम्‍मेदारी ‘यूपी राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन’ को दी गई है. इंड‍ियास्‍पेंड ने स‍ितंबर 2021 में र‍िपोर्ट किया कि योजना शुरू होने के एक साल बीतने के बाद इन 204 यून‍िट में से सिर्फ दो यूनिट लग पाई हैं. यह दो यूनिट भी संयुक्त राष्ट्र के यूएन वर्ल्‍ड फूड प्रोग्राम ने अपने खर्च पर लगवाई हैं.

पोषाहार यून‍िट को लेकर डॉ. सारिका मोहन ने उस वक़्त (स‍ितंबर 2021 में) बताया था कि उनको मिली जानकारी के अनुसार सभी 43 जिलों में पोषाहार उत्पादन तीन से चार महीने में शुरू हो जाना चाहिए. लेकिन इस बार इस विषय पर बात करने पर उन्होंने कहा, “यूपी राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ने जो हमें र‍िपोर्ट दी है उसके हिसाब से जून के आख‍िर तक 34 पोषाहार यून‍िट शुरू हो जाएगी.” वहीं, राज्‍य ग्रामीण आजीविका मिशन की ओर से बताया गया कि फिलहाल फतेहपुर और उन्‍नाव जिले में दो यून‍िट लग पाई हैं. यह वही यून‍िट हैं जिन्‍हें यूएन वर्ल्‍ड फूड प्रोग्राम ने अपने खर्च पर लगवाया है. बाकी जगह यून‍िट लगाने का काम चल रहा है.

साभार- इंडियास्पेंड

(रणविजय सिंह इंडियास्पेंड के साथ प्रिंसिपल कोरेस्पोंडेंट हैं.)