डॉ. सुशील उपाध्याय
गांव की यादें और शहरों में अजनबी
शहर की जिंदगी धीरे-धीरे ये सिखाती है कि किसी के भरोसे नहीं रहना है, जो भी करना है अपने बूते पर करना है। ये मूल्य गांव की जिंदगी के खिलाफ है। वहां एक प्रकार कार ‘बाध्यकारी-सहकार’ होता है क्योंकि एक के बिना दूसरे का काम नहीं चल सकता है।
Aug 10, 2016गांव को याद करते गांव के अजनबी
रोजी रोटी की तलाश में गांव से विस्थापित होकर शहर में आए हम जैसे लोग अक्सर गांव के साथ अपने रिश्ते को वक्त-बेवक्त परिभाषित करने की कोशिश करते रहते हैं। इस कोशिश में अक्सर निराशा हाथ लगती है।
Jul 31, 2016