कैसी आत्मनिर्भरता? खाद्य तेलों का आयात 8 फीसदी बढ़ा

 

कोरोना संकट के दौरान एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को आत्मनिर्भर बनाने और ‘लोकल के लिए वोकल’ होने का मंत्र दे रहे हैं, तो दूसरी तरफ किसानों के हितों पर चोट कर खाद्य तेल का आयात हो रहा है।

गत जून में खाद्य तेलों का आयात 8 फीसदी बढ़कर 11.62 लाख टन तक पहुंचा गया है जो पिछले 8 महीनों में सर्वाधिक है। पिछले साल जून में भारत ने 10.71 लाख टन खाद्य तेलों का आयात किया था। जबकि खाद्य तेल कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसका देश में उत्पादन ना हो सके।

खाद्य तेलों की प्रोसेसिंग से जुड़े उद्योगों के संगठन सॉल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार नवंबर, 2019 से जून, 2020 के दौरान खाद्य तेलों का आयात पिछले साल के मुकाबले 15 फीसदी कम रहा है। इसकी वजह पाम ऑयल के आयात में आई कमी है। लेकिन पिछले आठ महीनों में खाद्य तेलों का सर्वाधिक आयात जून में हुआ।

इस साल जनवरी में भारत सरकार ने पाम ऑयल के आयात पर कुछ पाबंदियां लगा दी थीं, तब से देश में पाम ऑयल का आयात घटने लगा है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि जब देश में आत्मनिर्भरता का शोर नहीं था तब तो खाद्य तेलों का आयात घट रहा था, लेकिन जून में जब आत्मनिर्भर भारत अभियान चलाया गया, तब खाद्य तेलों का आयात 8 फीसदी बढ़ गया।

खपत का 65 फीसदी खाद्य तेल विदेशी

भारत हर साल अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए बड़ी मात्रा में खाद्य तेलों का आयात करता है। इससे सबसे ज्यादा करीब 60 फीसदी हिस्सेदारी पाम ऑयल की है जो इंडोनेशिया और मलेशिया से आता है। इसके अलावा अर्जेंटीना, यूक्रेन और रूस से अन्य खाद्य तेल मंगाए जाते हैं।

पाम ऑयल का आयात घटा

साल 2018-19 के दौरान देश में खाद्य तेलों की घरेलू खपत करीब 230 लाख टन थी, जिसे पूरा करने के लिए 149 लाख टन खाद्य तेलों का आयात हुआ। लेकिन अब पाम ऑयल की बजाय सूरजमुखी और सोयाबीन के तेल का आयात ज्यादा हो रहा है। जून में पाम ऑयल का आयात 18 फीसदी गिरा जबकि सूरजमुखी के तेल का आयात 17 फीसदी और सोयाबीन ऑयल का आयात 13 फीसदी बढ़ गया। पाम ऑयल के अलावा अन्य खाद्य तेलों का आयात बढ़ने की वजह से जून में खाद्य तेलों का कुल आयात 8 फीसदी बढ़ गया है।

नब्बे के दशक से बढ़ती नीति

नब्बे के दशक की शुरुआत में भारत खाद्य तेलों के मामले में तकरीबन आत्मनिर्भर हो गया था। लेकिन विश्व व्यापार संगठन के दबाव और आर्थिक उदारीकरण की लहर में देश के दरवाजे सस्ते पाम ऑयल के लिए खोल दिए गए। 90 के दशक में अपनाई इस नीति के चलते तिलहन की खेती की उपेक्षा हुई और देश में खाद्य तेलों का आयात बढ़ता चला गया। अब कई साल बाद पाम ऑयल के आयात पर अंकुश लगा है लेकिन दूसरे खाद्य तेलों का आयात बढ़ने लगा है।

अगर किसानों को सही दाम और प्रोत्साहन दिया जाए तो लाखों टन खाद्य तेलों के आयात की बजाय यह पैसा देश के किसानों की जेब में जा सकता है। खेती और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किए बिना देश आत्मनिर्भर कैसे बनेगा?