क्यों अटके पड़े हैं हरियाणा के पंचायत चुनाव?
23 फरवरी 2021 को हरियाणा में ग्राम पंचायतों का कार्यकाल पूरा हो चुका है. सरकार ने सभी ग्राम पंचायतें भंग की हुई हैं. पंचायतों को भंग किए हुए साल से ऊपर हो चुका है. लेकिन अभी तक पंचायत चुनाव नहीं हुए हैं. कब होंगे इस सवाल का अभी कोई जवाब सरकार के पास नहीं है.
क्यों अटके हुए हैं पंचायत चुनाव?
हरियाणा सरकार ने 2020 में पंचायती राज अधिनियम में संशोधन किया था. इस संशोधन के तहत पंचायती राज में आठ फीसद सीटें बीसी-ए वर्ग के लिए आरक्षित की गई हैं और यह तय किया गया है कि एक पंचायत में इस वर्ग के लिए दो से कम सीटें नहीं होनी चाहिए. इसका मतलब है कि किसी भी पंचायत में कम से कम दो सदस्य तो बी सी-ए वर्ग से होने ही चाहिए. लेकिन यह कैसे लागू किया जायेगा इस पर सरकार ने अधिनियम में कुछ नहीं लिखा और न ही अभी तक बताया है. ग्राम पंचायत में किस प्रक्रिया के तहत यह आरक्षण लागू होगा, पंचायत समिति और जिला परिषद में कैसे? इस बारे में सरकार कुछ नहीं बता रही है. न ही इस बात को समझाया गया है कि यह 8% आरक्षण ब्लॉक स्तर पर तय होगा, जिला स्तर पर होगा या फिर राज्य स्तर पर.
सरकार ने कोर्ट में अर्जी दायर कर कहा है कि बीते दिनों कोरोना के प्रकोप के चलते चुनाव न करवाने का सरकार ने निर्णय लिया था. अब स्थिति बेहतर हो गई है इसलिए चुनाव करवाए जा सकते हैं. सरकार दो फेज में चुनाव करवाना चाहती है, पहले फेज में ग्राम पंचायत और दूसरे फेज में पंचायत समिति और जिला परिषद के चुनाव का प्रस्ताव है. कोविड को ध्यान में रखते हुए सरकार की ओर से कोर्ट में कहा गया था कि निकट भविष्य में सरकार चुनाव नहीं करवाएगी. ऐसे में अब चुनाव करवाने के लिए न्यायालय की अनुमति आवश्यक है.
दूसरी तरफ चुनाव आयोग का कहना है कि उनकी तैयारी पूरी है जैसे ही सरकार नोटिफ़िकेशन निकालेगी आयोग चुनाव करवा देगा.
सरकार ने कोर्ट से जल्द चुनाव की अनुमति मांगी थी जिसपर हाईकोर्ट ने सरकार को राहत नहीं दी थी. ऐसे में बिना हाईकोर्ट की अनुमति के चुनाव संभव नहीं है.
गुरुग्राम के प्रवीण चौहान व अन्य ने 15 अप्रैल 2021 को हरियाणा पंचायती राज अधिनियम 2020 में किए गए संशोधन को भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक बताते हुए कोर्ट में चुनौती दी थी. याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि अधिनियम में संशोधन कर अब सीटों का 8 प्रतिशत बीसी-ए श्रेणी के लिए आरक्षित कर दिया गया है और न्यूनतम 2 सीटों का आरक्षण अनिवार्य है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि बहुत सारे गांव ऐसे हैं जिनमें पंचायत सदस्यों की संख्या ही 4 से 5 हैं। अगर सरकार के नए कानून के हिसाब से चलें तो कम से कम दो सीट बीसी-ए वर्ग की होंगी, ऐसे में यह आरक्षण 8% न होकर 50% हो जायेगा और कुल आरक्षण 70% से भी ऊपर पहूंच जायेगा जो कानून सम्मत नहीं है. याचिककर्ताओं के अनुसार हरियाणा में 8 प्रतिशत के हिसाब से केवल छह जिले हैं, जहां 2 सीटें आरक्षण के लिए बचती हैं. 18 जिलों में केवल 1 सीट आरक्षित की जानी है जबकि सरकार नए प्रावधानों के अनुसार न्यूनतम 2 सीटे अनिवार्य हैं। हाईकोर्ट ने कहा था कि सरकार अगर चाहे तो आरक्षण के नए प्रावधान को निलंबित कर पुराने नियमों के तहत चुनाव करवा सकती है. लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं हुई. सरकार ने कोर्ट में अंडरटेकिंग दी है कि जब तक याचिका पर फैसला नहीं होता तब तक सरकार निकट भविष्य में चुनाव नहीं करवा रही है. कोर्ट ने सरकार को अंडरटेकिंग पर रुख स्पष्ट करने या पुराने नियमों के तहत चुनाव करवाने का आदेश दिया था. अभी 25 अप्रैल को कोर्ट में तारीख थी जिसमें कोई परिणाम नहीं निकला. अब हाई कोर्ट में अगली सुनवाई 4 मई को होगी. उम्मीद है इस सुनवाई के दौरान शायद कोई परिणाम निकले.
चुनाव नहीं होने से क्या दिक्कत आ रही है?
गाँव कोहला के एक बुजुर्ग किसान ने पंचायत चुनाव न होने पर कहा, “सरकार कोर्ट केस का बहाना बनाकर पंचयात चुनाव से बच रही है. चुनाव होंगे तो सरपंच बनेंगे और सरपंच बनेंगे तो सरकार को ग्रांट देनी पड़ेगी लेकिन सरकार ग्रांट देना नहीं चाहती, पिछले एक साल में सरकार बहुत सारा पैसा बचा चुकी है. इसकी वजह से गांवों का विकास कार्य रुका हुआ है. जब ग्रांट ही नहीं आएगी तो विकास कार्य कैसे होगा?”
गाँव नूरण खेड़ा के एक मनरेगा मजदूर ने बताया, “पंचायत चुनाव न होने से मनरेगा का काम भी प्रभावित हुआ है. कुछ तो पहले ही कम काम मिलता था अब और भी ज्यादा दिक्कत हो रही है. मज़दूरों को अगर काम चाहिए तो उसके लिए मनरेगा डिमांड फार्म सरपंच को देना होता है जिसे लेने के लिए सरपंच ही नहीं हैं. जब पुराने सरपंच के पास जाते हैं तो कहता है कि उसके पास चार्ज ही नहीं है. जब ब्लॉक में जाते हैं तो वो सरपंच का काम बताकर टाल देते हैं. ऐसे में काम के लिए बड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है. या तो सरकार पुराने सरपंच को चार्ज दे या फिर जल्द चुनाव करवाए.”
गांव गढ़ी सराय नामदार खां में सरपंच पद के उम्मीदवार विष्णु सैनी ने बताया, “चुनाव न होने की वजह से ग्राम पंचायत का पुराना फ़ंड भी गांव के विकास कार्यों में नहीं लग पा रहा है. हर साल गांव में गलियों एवं सरकारी भवनों की मरम्मत करनी होती है जो रुकी हुई है. इस से गलियों की निकासी भी प्रभावित है और अन्य विकास कार्य भी रुके हुए हैं.”